कर्नाटक राज्यके दत्तपीठपर हुए मुसलमानी आक्रमणका किया गया विरोध


 

 

 

ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष सप्तमी से दशमी, कलियुग वर्ष ५११४ (१० से १४.६.२०१२) की अवधिमें रामनाथी, गोवामें हिंदू अधिवेशन संपन्न हुआ । उसमें अनेक अतिथियोंने विविध विषयोंपर मार्गदर्शन कर सबमें राष्ट्र और धर्मजागृति की । श्रीराम सेनाके श्री. प्रमोद मुतालिकने अखिल भारतीय हिंदू अधिवेशनमें पहले दिन ‘मंदिर सरकारीकरण' विषयपर जो भाषण किया, उसे हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं ।
 

१. केरलीय क्षेत्र परिपालन समितिके श्री. नायरने हिंदुओंके लिए लडनेवाले ‘सनातन प्रभात’की प्रशंसा करना

         ‘नमस्कार ! ‘मंदिर सरकारीकरण’ विषयपर बोलनेका मुझे अवसर मिला है । मुझसे पहले बोलते हुए श्री नायरने (श्री. पी.पी.एम. नायर, केरलीय क्षेत्र परिपालन समिति, मुंबई) कहा कि हिंदुओंका पक्ष प्रस्तुत करनेवाला एक भी समाचारपत्र नहीं है; किंतु मुझे लगता है, ‘पूरे देशमें हिंदुत्वकी बात करनेवाला, हिंदुओंका पक्ष रखनेवाला एक ही समाचारपत्र है और वह है, ‘सनातन प्रभात' ! एक और बात है, हिंदुओंके लिए चलाई जानेवाली ‘श्री शंकर’ नामकी दूरचित्रवाहिनी (चॅनल) । अब इस वाहिनीका नाम प्रसिद्ध हो रहा है । इसका भी कार्य अच्छा है; परंतु यह और बढाना चाहिए, ऐसा मुझे लगता है ।
 

२. हिंदुओंकी दुखद स्थिति – हिंदुओंके लिए एक भी केंद्र नहीं !   

२ अ. मसजिद और चर्चमें ही विविध निर्णय लिया जाना और चर्चा होना; परंतु हिंदुओंके लिए ऐसा एक भी केंद्र न होना

         मसजिद मुसलमानोंका (इस्लामका) केंद्र है । जो भी निर्णय लेना है, जो भी चर्चा करनी है, वह सब मसजिदमें होती है । उसी प्रकार, ‘चर्च’ ईसाईयोंका केंद्र है । कोई निर्णय अथवा चर्चा चर्चमें ही की जाती है । किसको मतदान करना है, इसका भी अंतिम निर्णय चर्चमें होता है । किंतु, हिंदुओंके लिए इस प्रकारका एक भी केंद्र नहीं है ।
 

२ आ. हिंदुओंके लिए हिंदू भवन होना आवश्यक !

         इसके लिए हमने एक प्रयोग किया, किंतु हमें इसमें विशेष सफलता नहीं मिली । हिंदुओंके लिए एक ऐसा हिंदू-भवन हो, जिसमें जाति, पंथ, दल, भाषा आदि भेदभाव न हो । इस हिंदू भवनमें  हिंदुओंके लिए, चर्चा, निर्णय, धर्मादेश निकालना हो, तो यह सब हिदू भवनमें हो, ऐसी एक कल्पना लेकर हमने कार्य प्रारंभ किया है । आप भी अपने-अपने राज्यमें अपने- अपने क्षेत्रमें इस ‘हिंदू भवन’ का प्रयोग कर सकते हैं ।
 

३. मंदिरोंका पैसा शासनके कोषमें जमा हो रहा है, उसके विरुद्ध आंदोलन करना चाहिए !

         आजकल मंदिरोंका राष्ट्रीयकरण, सरकारीकरण हो रहा है, यह बडे दुख की बात है, दुर्भाग्यकी बात है । मंदिरोंके पैसेका उपयोग मार्ग बनानेके लिए किया जाता है । अभी आंध्रप्रदेश शासन तिरुपति मंदिरका ५० प्रतिशतसे अधिक धन लेकर राज्यका कामकाज चला रहा है । इन्हीं रुपयोंसे गंदे पानी निकालनेके लिए नालियां बनाना, मार्ग-निर्माण, पेयजल व्यवस्था, इत्यादि कार्य किए जाते हैं । हम जो पैसा श्रद्धा भक्तिसे दानपेटीमें डालते हैं, वह सब शासनके राजकोषमें चला जाता है । शासनके इस कृत्यका देशके सभी हिंदुओंको मिलकर एकस्वरमें विरोध करना चाहिए ।' शासनको हिंदुओंकी ओरसे कडा संदेश जाना चाहिए कि यदि आपने हिंदुओंके मंदिरपर हाथ डाला,  तो उसे जला दिया जाएगा, आपका शासन उलट दिया जाएगा', ऐसा मुझे लगता है ।
 

४. दत्तपीठ और इस्लामीकरण

४ अ. टिपू सुलतानाने भारतमें प्रवेश कर म्हैसूरका राज्य जीतना एवं ‘दत्तपीठ' स्थानका पूर्णतः इस्लामीकरण होना

         कर्नाटकमें चिकमंगलूर जनपदसे ३० कि. मी दूर ‘दत्तपीठ’ नामक एक स्थान है । वहां ४००० फुटकी उंचाईपर एक पर्वत है । उस पर्वतकी जिस गुफामें भगवान दत्तात्रेयने तप किया था, उसे दत्तपीठ कहा जाता है । टिपू सुलतानने जब भारतमें प्रवेश कर म्हैसूर राज्यको जीत लिया था, उसी कालमें दत्तपीठका इस्लामीकरण हुआ । टिपू सुलतानने इस स्थानपर आक्रमण कर वहां कब्र बांधी और उस स्थानको कब्रिस्तान बनाया । इसमें स्थित दीपस्तंभ और कमंडल, पादुका आदि सब वस्तुएं वहांसे हटा दीं और भीतर एक कब्र बांधकर उसका नाम ‘बाबा गुडन’ रखा । उनके नामसे वहां उर्स कार्यक्रम चालू किया । इस प्रकार उस स्थानका पूर्णतः इस्लामीकरण हुआ ।

४ आ. संजीवनी पर्वतकी आख्यायिका (चंद्रद्रोण)

         ऐसा कहा जाता है कि जिस समय हनुमानजी संजीवनी पर्वत लेकर श्रीलंका जा रहे थे, उस समय उस पर्वतका एक टुकडा इस स्थान पर गिरा । संजीवनी पर्वतपर जो फल और औषधियां मिलती हैं, वे सब इस पर्वतपर भी मिलते हैं । इस प्रमाणसे सिद्ध होता है कि यह टुकडा संजीवनी पर्वतका ही भाग है । इसको चंद्रद्रोण पर्वत भी कहते हैं, ऐसा इतिहास और पुराणमें लिखा हुआ है ।    
 

४ इ. दत्तपीठका इस्लामीकरण होनेके विरुद्ध किए गए आंदोलनसे संपूर्ण कर्नाटक राज्य आंदोलित होना, उसी कालमें हुए दंगोंके कारण न्यायालयमें दावा प्रविष्ट होना और इस आंदोलनसे गांव-गांवमें अच्छी जनजागृति होना

         वर्ष १९९८ में चिकमंगलूरके कार्यकर्ताओंने हमें यह बात बताई की, हिंदुओंके उस पवित्र स्थानका इस्लामीकरण हो चुका है । उस समयसे हम लोगोंने वहां आंदोलन आरंभ किया है । वर्ष २००४ से हम वहां बहुत अच्छे ढंगसे आंदोलन कर रहे हैं । इस आंदोलने पूरे कर्नाटक राज्यको झकझोर दिया था । रथयात्रा निकाली । उस समय दंगे भी हुए । अभियोग प्रविष्ट हुए । मुझपर भी, दत्तपीठके उन दंगोंसे संबंधित २० अभियोग प्रविष्ट हैं । वर्तमानमें, मुझपर ८० अभियोग हैं । शीघ्र ही मैं अभियोगोंका शतक बनाने जा रहा हूं । दत्तपीठ आंदोलनके कारण कर्नाटकमें जो दंगे हुए, उसके कारण गाव-गावमें बहुत अच्छी जागृति हुई । फलस्वरूप, वर्ष २००४ के विधानसभी चुनावमें भाजपाने ७० स्थान जीते । उनमें ३२ स्थान दत्तपीठ आंदोलनके कारण प्राप्त हुए थे ।
 

४ ई. राज्यमें भारतीय जनता पार्टीका शासन आनेपर दत्तपीठको हिंदुओंका  स्थान घोषित करेंगे, यह बात भारतीय जनता पार्टीके भूतपूर्व मुख्यमंत्री येडीयुरप्पाने कहना; किंतु सत्ता प्राप्त होनेपर भूल जाना

         वर्ष २००८ में हुए चुनावमें भारतीय जनता पार्टी कर्नाटकमें पुनः विजयी होकर सत्तामें आयी, वह भी दत्तपीठ आंदोलनके कारण हुई हिंदूजागृतिके कारण ! चुनावके समय विरोधी दलके रूपमें भारतीय जनता पार्टी और भूतपूर्व मुख्यमंत्री येडीयुरप्पाने चिकमंगलूरमें आयोजित एक सभामें कहा था, ‘कर्नाटकमें भारतीय जनता पार्टीका शासन आनेपर हम दत्तपीठको हिंदुओंका स्थान घोषित करेंगे ।’ किंतु दुर्भाग्यकी बात यह है कि उन्होंने सत्तामें आनेके पश्चात अपने वचनको भुला दिया । उन्होंने दत्तपीठ हिंदुओंको नहीं दिया । इसका शाप उन्हें भोगना पडा, येडीयुरप्पा सत्ताच्युत हुए । इतना ही नहीं, उन्हें कारावास भी भोगना पडा ।

४ उ. राममंदिर आंदोलनके कारण सत्तामें आनेके पश्चात रामको भूलजानेवाले अटलजीका ‘एन.डी.ए’ शासन !

         मैं तो सार्वजनिकरूपसे कहता हूं, ‘‘येडीयुरप्पा और भाजप शासनने सत्तामें आनेसे पूर्व दत्तपीठ हिंदुओंको लौटाएंगे’, यह बात कही थी । किंतु, उसने हिंदूद्रोह किया ।’’ केंद्रमें अटलजीके ‘एनडीए’ शासनने इसी प्रकारका आचरण किया । जिस राममंदिर आंदोलनके कारण वे सत्तामें आए, सत्ता पानेके पश्चात उसी रामको भूल गए । उन्हें भी रामका शाप लगा और वे सत्ताच्युत हुए ।

४ ऊ. आंदोलन और दत्तमाला व्रत चालू रखना

         हमारा यह आंदोलन अभी भी जारी है । हम वर्षमें दो बार दत्तपीठ जाते हैं । केरलके अय्यप्पा स्वामीके व्रतकी भांति हमलोग दत्तमालाव्रत धारण करते हैं और भगवे कपडे पहनकर एक सप्ताहका यह व्रत रखते हैं । अक्षरशः सहस्रों युवक और भक्त २० किलोमीटर चलकर दत्तपीठस्थानपर आते हैं । हमलोग वहां वर्षमें दो बार – एकबार अक्टूबरमें दत्तमाला और दूसरी बार दिसंबरमें दत्तजयंतीके समय जाकर आंदोलन करते हैं ।
 

५. कर्नाटक उच्च न्यायालयने दत्तपीठके संदर्भमें दिए हुए धर्मनिरपेक्ष निर्णयके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालयमें जाना और ‘दत्तपीठपर भगवा झंडा फहरानेवाला निर्णय अवश्य आएगा’, यह दृढ विश्वास व्यक्त करना

         दुर्भाग्यकी बात यह कि इस संदर्भमें कर्नाटक उच्च न्यायालयने एक धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) निर्णय दिया, जिसमें कहा गया है कि ‘दत्तपीठ, इस्लाम और हिंदुओंका पवित्र स्थान है । अतः, वहां मुसलमानोंको उर्स करनेकी और हिंदुओंको दत्तजयंती मनानेकी अनुमति दी जाती है ।’ उच्च न्यायालयके इस निर्णयके विरुद्ध हम सर्वोच्च न्यायालय गए हैं । हमें विश्वास है कि सर्वोच्च न्यायालयका निर्णय हमारे पक्षमें आएगा । दत्तपीठ हिंदुओंका है । अतः, दत्तपीठपर भगवा झंडा फहरेगा, ऐसा ही वह निर्णय होगा । नमस्कार !’

– श्री. प्रमोद मुतालिक, कर्नाटक (श्रीराम सेनाके संस्थापक और अध्यक्ष)

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