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मेकॉले शिक्षापद्धतिद्वारा हिन्दुओं के मन से हटाया गया धर्म आज पुनः सीखाने की आवश्यकता ! – श्री. आनंद जाखोटिया

देश एवं धर्म हेतु अच्छी भावना से कार्य करनेवाले भी आज धर्म का आचरण नहीं कर रहे हैं; इसलिए भ्रष्ट हो रहे हैं। हिन्दुओं का तेज पुनः आज जागृत करने के लिए उन्हें धर्मशिक्षा के माध्यम से धर्म सीखाने की आवश्यकता है !

श्री. आनंद जाखोटिया

जयपुर : भानपुर कलां के ‘राहुल चंदीजा आईटीआयई महाविद्यालय’ में संघ परिवार की ओर से संपन्न कार्यक्रम में हिन्दू जनजागृति समिति के राजस्थान एवं मध्यप्रदेश समन्वयक श्री. आनंद जाखोटिया मार्गदर्शन कर रहे थे। उस समय उन्होंने ऐसा प्रतिपादित किया कि, ‘मेकॉले शिक्षापद्धतिद्वारा हिन्दुओं के मन में अंकित धर्म दूर किया गया। दुर्भाग्यवश स्वतंत्रता के पश्चात आजतक यही शिक्षापद्धति चल रही है ! अतः उपासना, धर्म का आचरण, धर्म की सीख से हिन्दु दूर जा रहे हैं ! देश एवं धर्म हेतु अच्छी भावना से कार्य करनेवाले भी आज धर्म का आचरण नहीं कर रहे हैं; इसलिए भ्रष्ट हो रहे हैं। हिन्दुओं का तेज पुनः आज जागृत करने के लिए उन्हें धर्मशिक्षा के माध्यम से धर्म सीखाने की आवश्यकता है !’

इस कार्यक्रम के लिए १५० युवक उपस्थित थे। उस समय व्यासपीठ पर ‘राहुल चंदीजा आईटीआयई महाविद्यालय’ के संचालक श्री. भंवरलालजी, श्री. अजय गुर्जर उपस्थित थे। मार्गदर्शन के पश्चात ‘शंका समाधान’ इस सत्र में युवकों ने उनकी शंकाओं का निरसन करा लिया।

वीर हिन्दु राजाओं के जीवन में भी धर्म को अनन्यसाधारण महत्त्व !

श्री. जाखोटिया ने आगे कहा कि, ‘वीर राजाओं ने भी उपासना एवं धर्म को प्रथम स्थान दिया। मेवाड नरेश राणा कुंभा ने युद्धविजय के पश्चात चित्तोड के किर्तीस्तंभ में अपनी स्वयं की नहीं, तो देवता के प्रतिमा की प्रतिष्ठापना की ! आमेर का गड आज ‘युनेस्को विश्व वारसा’ में है ! उसकी सुरक्षा दिवारों के प्रवेश द्वार पर ऐसा लिखा गया है कि, ‘जहां धर्म वहां है, वहां विजय निश्चित है !’ अतः ‘वीरता अवश्य प्रस्तुत करें; किंतु धर्म के अधिष्ठान का विस्मरण न हों !’ यही इस महापराक्रमी राजाओं के चरित्र से हमें सीखना चाहिए।

धर्माचरण एवं साधना के माध्यम से हम यह अधिष्ठान प्राप्त कर सकते हैं !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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