फाल्गुन शुक्ल १४ , कलियुग वर्ष ५११४
मुंबई – मुंबईके निकट अंबरनाथ स्थित एक गिरिजाघरमें अलग-अलग धर्मोंके लोग हर महीनेके पहले सप्ताहमें प्रार्थना करने हेतु आते हैं । यहां प्रार्थना करनेसे रोगसे पीडितोंको अच्छा लगता है । इसके पश्चात् इन लोगोंको धर्मपरिवर्तनके बारेमें बताया जाता है । उनमेंसे कई लोग; विशेष करके हिंदू, ईसाई धर्मका स्वीकार करते हैं ।
( गिरिजाघरमें प्रार्थना करनेसे क्या वास्तवमें अनुभूति होती है, जिनपर धर्मपरिवर्तनका भूत संवार है, उन धर्मोपदेशकोंके मनमें क्या सच-मुच नई-नई कल्पनाएं आती रहती हैं, इसे भी नि:पक्ष रूपसे जांचना चाहिए । – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) लोगोंकी ऐसी उनकी धारणा होती है कि गिरिजाघरमें जानेके कारण हम ठीक हुए हैं । गिरिजाघरके अधिकारियोंके अनुसार यह धर्मपरिवर्तन नहीं, मनपरिवर्तन है ।
( ईसाई धर्मोपदेशकोंका केवल ऊपरी दिखावा ! मनपरिवर्तन कर धर्मपरिवर्तन करवानेवाले ईसाई धर्मोपदेशकोंसे हिंदुअोंको सतर्क रहना चाहिए ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
इस गिरिजाघरके ‘हिलींग’ की (रोग दूर करनेके लिए की जानेवाली प्रार्थना) प्रार्थनामें सहभागी होनेके कारण कर्करोगसे छुटकारा मिलनेकी बात विश्वासपूर्वक कहकर वसंत पटेल नामक, हिंदू व्याक्तिद्वारा ईसाई धर्मका स्वीकार किया गया । इस गिरिजाघरके मुख्य प्रचारक जॉन्सन आल्मेदा कहते है, ‘यदि आप लोग येशू खिस्तपर विश्वास नहीं रखोगे, तो आपको रोगसे मुक्ति नहीं मिलेगी ।’ ( इससे यही स्पष्ट होता है कि, ‘ हिलींग ’प्रार्थनाका उद्देश धर्मपरिवर्तन ही होता है । जब इसका ज्ञान होता है कि हमे ठगाया गया है, तब तक धर्मपरिवर्तनका कार्य पूरा हुआ होता है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
स्त्रोत – दैनिक सनातन प्रभात