हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी की नेपाल यात्रा
काठमांडू (नेपाल) : धर्म के शुद्ध स्वरूप को जान लें । हिन्दुओं के पास संख्याबल और बाहुबल भी है; परंतु यह कार्य आत्मबल और धर्मबल के आधारपर ही होता है । इसलिए सभी को साधना कर आत्मबल एवं धर्मबल जागृत करना चाहिए । हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने नेपाली जनता से यह आवाहन किया ।
यू ट्यूब समाचारवाहिनी ‘फरकस देश डॉट कॉम’ के सचिव श्री. महेंद्र पोखरेल ने १२ अप्रैल २०१९ को सद्गुरु (डॉ.) पिंगळेजी से वार्तालाप किया । इसमें श्री. पोखरेल द्वारा नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाए जाने की बात कहनेपर सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने कहा, ‘‘नेपाल एवं भारत भले ही दो भिन्न देश हों; किंतु उनकी संस्कृति और धर्म तो एक ही है । नेपाली जनता धर्मपरायण और धर्म से प्रेम करनेवाली है । नेपाली जनता को लगता है कि नेपाल में धर्माधिष्ठित राज्यव्यवस्था हो । जहां धर्म नहीं होगा, वहां अधर्म ही होगा । धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का अर्थ अधर्मसापेक्ष राष्ट्र होता है ।’’
भारत में चल रहे धर्मांतरण के विषय में बोलते हुए सद्गुरु (डॉ.) पिंगळेजी ने कहा, ‘‘हिन्दू सर्वधर्मसमभाव मानते हैं; किंतु अन्य पंथियों का क्या ? क्या वे सर्वधर्मसमभाव मानते हैं ? और यदि समभाव है, तो वे धर्मांतरण क्यों करते हैं ?, जिहाद क्यों करते हैं ? भारतीय संविधान में धर्मांतरणपर प्रतिबंध है । संविधान की धारा ४८ के अनुसार व्यक्तिगत जीवन में धर्माचरण की तथा समाज को धर्म के विषय में बताने की अनुमति दी गई है । ‘राईट टू प्रोपोगेट रिलिजन’ (धर्मप्रसार का अधिकार) का अर्थ ‘राईट टू कन्वर्ट’ (धर्मांतरण का अधिकार) नहीं है ।’’
जनता को जागृत किए बना किया गया आंदोलन सफल नहीं होता ! – सद्गुरु (डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी
काठमांडू (नेपाल) : हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने १४ अप्रैल २०१९ को सनातन धर्म संरक्षण अभियान के केंद्रीय समन्वयक श्री. राजेंद्र ओझा से भेंट की । इस अवसरपर ‘हिन्दू राष्ट्र स्थापना हेतु आंदोलन की दिशा कैसी होनी चाहिए ?’, इस विषयपर मार्गदर्शन करते हुए सद्गुरु (डॉ.) पिंगळेजी ने कहा, ‘‘जनता किसीपर निर्भर होती है । वह स्वयं निर्णय करने की स्थिति में नहीं होती । अतः जनता को जागृत करने की आवश्यकता है;क्योंकि जनता को जागृत किए बिना किया जानेवाला आंदोलन असफल होता है । ईसाई और मुसलमान संगठितरूप से सरकार के पास अपनी मांगें रखती हैं और सत्ताधारी सत्ता देनेवालों का तुष्टीकरण करते हैं । यदि हिन्दू जागृत हो गए, तो केवल कांग्रेस ही नहीं, अपितु वामपंथी में हिन्दुओं के साथ आएंगे । जबतक जनता जागृत नहीं होगी और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष नहीं करेगी, तबतक ऐसे सभी प्रयास असफल होंगे ।’’
‘नेपाल सनातन धर्म संस्कृति’ संगठन के कार्यकर्ताआें का मार्गदर्शन
काठमांडू (नेपाल) : ‘जय सगत’ के संस्थापक तथा राष्ट्रीय धर्मसभा नेपाल के सचिव श्री. पुष्पराज पुरुष द्वारा ‘नेपाल सनातन धर्म संस्कृति’ संगठन के कार्यकर्ताओं के लिए सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी के मार्गदर्शन का आयोजित किया ।
इस अवसरपर उपस्थित कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन करते हुए सद्गुरु (डॉ.) पिंगळेजी ने कहा –
१. आदि शंकराचार्यजी ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा है कि जिससे व्यक्ति की भौतिक आध्यात्मिक उन्नति संभव होती है, साथ ही समाजव्यवस्था उत्तम रहती है, वह धर्म होता है । इस व्याख्या के अनुसार देखा जाए, तो धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की अपेक्षा करनेवालों को व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति, साथ ही अच्छी समाजव्यवस्था नहीं चाहिए, यह अर्थ निकलता है ।
२. आत्यंतिक त्यागी वृत्ति से ही धर्म का कार्य हो सकता है । पद की लालसा संगठन खडा करने में बाधा है । निरपेक्ष, निस्वार्थ भाव और निष्पक्ष लोग ही संगठन खडा कर सकते हैं ।
३. निद्रिस्त जनता राजनेताओं की शक्ति है, तो जागृत जनता लोकतंत्र की शक्ति है ।
४. भारत का संविधान लिखनेवाले डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने स्वयं धर्मनिरपेक्षता का विरोध किया था, इसकी प्रविष्टि है ।
५. जिनके पास हाऊस ऑफ लॉर्ड्स एवं हाऊस ऑफ कॉमन्स हैं, वे आज हमें समानता और स्पृश्य-अस्पृश्यता सिखाने निकले हैं ।
६. जिन्होंने ३० लाख रेड इंडियन लोगों का नरसंहार कर अमेरिका बसाई, वे लोग आज हमें मानवता सिखाने निकले हैं ।
७. आज हमारे अज्ञान के कारण विकृत जातिवाद बढ रहा है । सनातन धर्म में जाति का संघर्ष कभी नहीं था । उसमें केवल धर्म-अधर्म का संघर्ष था ।
८. आप को ज्ञात किसी भी १० ऋषियों के नाम लें और उनमें से कितने ऋषी ब्राह्मण थे, यह देखें । जातिवाद तो केवल हिन्दुओं को विभाजित करने के लिए उत्पन्न किया गया ।
क्षणिका : उपस्थित कार्यकर्ताओं में से एक कार्यकर्ता ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सद्गुरु (डॉ.) पिंगळेजी में विद्यमान प्रेमभाव के कारण वे नेपाल के ही हैं, ऐसा लगता है ।
संपूर्ण विश्व को बचाने की क्षमता केवल सनातन धर्म में ही है ! – सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी
काठमांडू (नेपाल) : राजनीतिक दल से जोडकर हिन्दू राष्ट्र की कल्पना की जाती है । ऐसा न कर उसे सनातन धर्म से जोडकर की जानी चाहिए । राज्यव्यवस्था धर्मपरंपरा के अनुसार होनी चाहिए । हिन्दू राष्ट्र स्थापना की प्रक्रिया ३ पीढीयों की है । सनातन धर्म सभी प्राणिमात्राओं के लिए है । संपूर्ण विश्व कोप् बचाने की क्षमता केवल सनातन धर्म में है । सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने ऐसा प्रतिपादित किया ।
नेपाल का एकमात्र हिन्दी मासिक ‘हिमालिनी’ की डॉ. श्वेता दीप्ती ने १४ अप्रैल २०१९ को सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी से वार्तालाप किया । इस अवसरपर हिन्दू धर्म की दयनीय स्थिति का कारण बताते हुए सद्गुरु (डॉ.) पिंगळेजी ने कहा, ‘‘ईसाईयत का उदय होने के पश्चात केवल ५० वर्षों में ही संपूर्ण युरोप ईसाई बना । इस्लाम के उदय के पश्चात केवल ३० से ५० वर्षों में ही अरब इस्लाममय हो गया । लगभग १२०० वर्षोंतक निरंतर आघात झेलकर भी हिन्दू धर्म टिका रहा; किंतु भारत की स्वतंत्रता के पश्चात धर्म की उपेक्षा की गई । अपना ज्ञान और परंपराएं अगली पीढी को सौंपने की जिस प्रक्रिया की आवश्यकता थी, उसमें हम न्यून पड गए । हम दूसरों से नहीं, अपितु अपनों से ही हार रहे हैं । हम स्वधर्म को त्यागकर पाश्चिमात्य बनते जा रहे हैं ।’’
‘हिन्दू राष्ट्र में राजतंत्र होगा अथवा लोकतंत्र ?’ इस संदर्भ में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए सद्गुरु (डॉ.) पिंगळेजी ने कहा, ‘‘धर्मपरंपरा के अनुसार राजतंत्र एवं वर्तमान परंपरा के अनुसार लोकतंत्र है; किंतु वास्तव में आज लोकतंत्र का अस्तित्व ही नहीं है । हमपर जो लोकतंत्र थोपा गया है, वह इंग्लैंड के प्रोटेस्टंस ईसाईयत को संरक्षण देता है । इंग्लैंड में केवल प्रोटेस्टैंट ईसाई ही प्रधानमंत्री बन सकता है अथवा राजवंश से जुड सकते हैं । जर्मन और फ्रान्स ये कैथोलिक राष्ट्र हैं । अरब देश इस्लाम को संरक्षण देते हैं । युरोप के अधिकांश देशों में राजतंत्र है और लोकतंत्र भी है । हमें सनातन हिन्दू धर्म, परंपरा, वेद, पुराण, यहां का धार्मिक एवं प्राचीन इतिहास को संरक्षण देनेवाली व्यवस्था अपेक्षित है । राज्यकर्ता धर्मनिष्ठ तथा प्रजा का पुत्र के समान पालन करनेवाला होना चाहिए । हमारी परंपरा राजा से जुडी हुई है । यदि कोई नई राज्यव्यवस्था उत्पन्न होती हो, जिस में राजनिष्ठ व्यक्ति ही प्रधानमंत्री बन रहा हो और यदि वह जनता, धर्म, संस्कृति एवं राष्ट्र का पालन करनेवाला हो, तो वह भी संभव है । अब नेपाल की जनता को यह सुनिश्चित करना है कि उन्हें किस प्रकार की व्यवस्था चाहिए ।’’
क्षणिका : ‘हिमालिनी’ मासिक के संपादक श्री. सच्चिदानंद मिश्रा ने सद्गुरु (डॉ.) पिंगळेजी से उनका मासिक और पोर्टलपर प्रकाशित करने हेतु हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में धार्मिक जानकारी उपलब्ध कराने का अनुरोध किया ।