श्रीक्षेत्र त्र्यंबकेश्वर में आयोजित २०वें ‘साधना एवं राष्ट्ररक्षा’ शिविर में शंकराचार्यजी का मार्गदर्शन
श्रीक्षेत्र त्र्यंबकेश्वर : व्यासपीठ (धर्मसत्ता) दिशादर्शन करनेवाला केंद्र है। आज देश में दिशादर्शन करनेवाले बहुत अल्प संख्या में हैं। आज भी देश में अंग्रेजों की कूटनीति का प्रभाव प्रतीत हो रहा है। विगत ७१ वर्षों में हिन्दुओं की दुर्गति हुई है। जो जनता से संवाद नहीं करता, वह जनता के लिए कुछ नहीं कर सकता और वह कुछ समय पश्चात मिट जाता है। ‘शंकराचार्य’ का पद शासनकर्ताओं पर शासन करनेवाला पद है ! रामराज्य की स्थापना तो होने ही वाली है; किंतु उसके लिए सभी ने साथ मिलकर कार्य करना अपेक्षित है ! इसके लिए सभी ने धर्म के लिए प्रतिदिन १ घंटा देकर धर्मसेवा करनी चाहिए। पुरी पीठाधीश्वर श्रीमद् जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने ऐसा मार्गदर्शन किया। यहां आयोजित २०वें ‘साधना एवं राष्ट्ररक्षा शिविर’ में वे मार्गदर्शन कर रहे थे।
व्यासपीठ (धर्मसत्ता) द्वारा राजतंत्र (राजसत्ता) का दिशादर्शन करने से ही रामराज्य की स्थापना होगी ! – सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे
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व्यासपीठ (धर्मसत्ता) द्वारा राजतंत्र (राजसत्ता) का दिशादर्शन करने से ही हमे अपेक्षित ऐसे रामराज्य की स्थापना होगी ! आज का शिक्षातंत्र हमें धर्म से दूर ले जानेवाला है ! हमें इस स्थिति में परिवर्तन लाना है। जिस प्रकार से व्यक्ति का मन होता है, उसी प्रकार से राष्ट्र का भी मन होता है ! राष्ट्र का मन यदि धर्मविरोधी विचारों से जुडा हुआ हो, तो वह राष्ट्र विनाश की ओर अग्रसर होगा ! समाज में भले ही अनिष्ट वृत्ति के लोग बढ रहे हों और हम संख्या में अल्प हों, फिर भी पांडवों की भांति वृत्ति रख कर संतों का मार्गदर्शन लेना, धर्म के पथ पर चलना, धर्म के पक्ष में संघर्ष की वृत्ति को जागृत रख कर धर्मरक्षा की योजना सिद्ध करनी आवश्यक है !
आज हमें शंकराचार्यजी से मार्गदर्शन मिला है; इसलिए हमें उसके अनुसार आचरण करना हमारा दायित्व है ! हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने ऐसा मार्गदर्शन किया। इस शिविर में वे ‘सशक्त भारत’ इस विषय पर संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर समिति के महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ राज्य के संगठक श्री. सुनील घनवट भी उपस्थित थे।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात