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ईराक में खुदाई के दौरान मिली भगवान राम और भक्त हनुमान की ६००० साल प्राचीन प्रतिमा

अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ और रामकथा की वास्तविकता और सार्थकता पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता है, परंतु भारत से हजारों किलोमीटर दूर इराक में कुछ ऐसा हुआ है जिसने ये प्रमाण दिया है कि भगवान श्रीराम और उनके भक्त हनुमान जी की कथा सत्य है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इराक के सिलेमानिया इलाके में मौजूद बैनुला बाईपास के पास खुदाई में भगवान राम और हनुमान जी की दुर्लभ प्रतिमाएं पाई गयी हैं। इन प्रतिमाओं के पाए जाने की पुष्टि खुद इराक सरकार ने की है। भारत द्वारा इस मामले पर मांगी गयी जानकारी के जवाब में इराक सरकार ने एक पत्र लिखकर इस बात की पुष्टि है। इतना ही नहीं इरान सरकार के पुरातत्व विभाग का दावा है कि ये प्रतिमाएं लगभग ६ हजार साल पुरानी हैं। प्रतिमाओं के मिलने के बाद भारत सरकार ने भी इन प्रतिमाओं से जुडी और जानकारी प्राप्त करने की इच्छा जाहिर की है । वही उत्तर प्रदेश के संस्कृति विभाग ने भी खासतौर पर अयोध्या शोध संस्थान ने इन प्रतिमाओं पर शोध करने की जरुरत बतायी है।

भारत के लिए अच्छी बात यह है कि इराक ने इस विषय के महत्व को समझते हुए भारत के शोधकर्ताओं, संस्कृति विभाग और अयोध्या शोध संस्थान को इस विषय पर शोध करने के लिए इराक आमंत्रित किया है और इस सम्बन्ध में पत्र भी लिखा है। उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही शोधकार्ताओं का दल इराक पहुंच कर भगवान राम से जुडे और तथ्यों की तलाशी करेंगे। प्रतिमाओं के मिलने से भगवान राम का अस्तित्व और पुख्ता होता नजर आ रहा है, जाहिर तौर पर देश के लिये ये खुशी की बात है कि हमारी संस्कृति पूरी दुनिया में फैली हुई है।

भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाने वालों के गाल पर है तमाचा

वही ये खबर जब अयोध्या पहुंची तो संतों में खुशी की लहर दौड गई। अयोध्या संत समिति के अध्यक्ष महंत कन्हैया दास ने कहा कि इसमें कोई चौकने वाली बात नहीं है कि इराक में भगवान राम की प्रतिमा मिली है, इराक ही नहीं और देशों में भी भगवान श्री राम के अस्तित्व के प्रमाण मिलेंगे। जगद्गुरु राम दिनेशाचार्य ने कहा कि ये जानकारी प्रसन्नता देने वाली है। ये उन लोगों के गाल पर तमाचा है जो भगवान राम को काल्पनिक बताते चले आये हैं और उनके अस्तित्व पर सवाल उठाते आये हैं। भारत सरकार को इस पर शोध कराना चाहिए। आचार्य सतेन्द्र दास ने कहा कि भगवान तो सर्वव्यापी थे। उस काल में कोई सीमा नहीं थी, न भारत न इरान। पूरा विश्व भगवान राम के पराक्रम को मानता था। प्रतिमा मिलने से स्पष्ट होता है कि भगवान राम के अनुयायी धरती के हर कोने पर हैं।

स्त्रोत : पत्रिका

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