हमीरपुर (हिमाचल प्रदेश) : माता टौणी देवी का मंदिर ३०० वर्ष पुराना है ! यहां चौहान वंश की कुलदेवी माता टौणी देवी की याद में हर साल मेले का आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि, माता टौणी देवी को सुनाई नहीं देता था इसलिए जब भी कोई मन्नत मांगता है तो वहां रखे पत्थरों को आपस में टकराता है और उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है !
ऐसी है मान्यता
मान्यता है कि, माता टौणी देवी के भाइयों ने उनकी याद में मंदिर की स्थापना की थी जोकि आज भव्य रूप धारण कर चुका है ! माता के दरबार में पंजाब, हरियाणा, देहली, राज्यस्थान, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों से भी चौहान वंश के लोग दर्शन करने आते हैं। यहां पर आने से हर इंसान की मनोकामना पूर्ण होती है। यहां पर कई सालों से कमेटी काम कर रही है जोकि श्रद्धालुओं के रहने के लिए हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध करवाती है !
चौहान वंश के १२ भाइयों ने ली थी यहां शरण
गौरतलब है कि, ३०० साल पुराने इस मंदिर में मुगलों का कब्जा हो गया तो उन्होंने राजपूतों की मां-बहनों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। जब राजपूतों के जनेऊ उतार कर धर्म परिवर्तन करवाने लगे तो चौहान वंश के १२ भाइयों ने इस पहाडी दुर्गम क्षेत्र में शरण ली थी ताकि वह अपने धर्म और परिजनों की रक्षा कर सकें ! उनके साथ उनकी बहन भी थी, जिसे सुनाई नहीं देता था !
आधारशिला रखते ही फूट पडी थी खून की धारा
परिवार के मुखिया ने बाकर कुनाह और पुंग खड्ड के केंद्र पर भवन की योजना बनाई लेकिन जिस जगह पर आधारशिला रखी गई वहां पर खून की धारा निकलने पर सब हैरान हो गए ! इस पर जब कुल पुरोहित से बात की गई तो उन्होंने इसके लिए घर की कुंवारी कन्या को दोषी बताया। घर की महिलाओं ने माता टौणी देवी पर आरोप लगाए, जिस पर माता ने इस स्थान पर घोर तपस्या की और आषाढ़ मास के १० प्रविष्टे को अंतर्धान हो गईं !
स्त्रोत : पंजाब केसरी