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Watch Video : कश्मीर में भगवान शिवजी को समर्पित नारानाग के मंदिर

भारत का जम्मू-कश्मीर राज्य अपनी खूबसूरती के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहां की वादियां, ऊँचे-ऊँचे बर्फ से ढके बर्फ के पहाडों के नजारे हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। राज्य का एक-एक कोना पर्यटकों के अंदर एक अलग उत्साह उत्पन्न करता है। इन्हीं खूबसूरत वादियों में एक है गांदरबल जिले में बसा पर्वतीय पर्यटक स्थल, नारानाग।

खासकर की प्राकृतिक घास के मैदान, झीलों और पहाडों के लिए जाना जाने वाला यह खूबसूरत स्थल २१२८ मीटर की ऊंचाई पर स्थित, यह वंगथ झरने के बाएँ किनारे पर बसा हुआ है, जो आगे चलकर सिन्ध नाले में मिल जाता है। इस खूबसूरत परिदृश्य से वंगथ झील के साथ-साथ गडसर झील, विशनसर झील और किशनसर झील के लिए भी रास्ते निकलते हैं। चलिए चलते हैं, कश्मीर की वादियों से होते हुए नारानाग में इतिहास और प्रकृति के दर्शन करने !

नारानाग का मूल अर्थ नारानाग नाम का मूल अर्थ है ‘नारायणा नाग’। कश्मीरी भाषा में ‘नाग’ का अर्थ है ‘पानी का चश्मा’। अब आप सोच रहे होंगे कि, ये पानी का चश्मा क्या है ? वास्तव में कश्मीर में पानी का चश्मा ऐसी जगह है जहां जमीन में बनी दरार या छेद से जमीन के अंदर के किसी जलाशय का पानी अनायास ही बाहर बहता रहता है।

नारानाग के मंदिर

कश्मीर में पाये जाने वाले प्राचीनतम आर्य परंपरा के कई अवशेष आज भी इसके भव्य अतीत की झलक को प्रदर्शित करते हैं। उन्हीं में से कुछ प्राचीन मंदिर समूह के अवशेष नारानाग में भी उपस्थित हैं। प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण इस क्षेत्र की एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत भी है। यह पर्यटक स्थल प्रसिद्ध धार्मिक यात्रा जो हरमुख पर्वत तक संपन्न होती है का भी शुरुआती स्थल है।

रोमांच के साथ-साथ यहां का इतिहास एक अलग ही कहानी बुनता है। यहां पर स्थित मंदिर के अवशेष भारत के सबसे महत्वपूर्ण पुरातन-स्थलों में गिने जाते हैं। पुरातत्व विभाग के अनुसार इस जगह का प्राचीन नाम सोदरतीर्थ था, जो तत्कालीन तीर्थयात्रा स्थलों में एक प्रमुख नाम था। यहां स्थित मंदिर लगभग २०० मीटर की दूरी पर एक दूसरे की आेर मुख करके स्थित हैं। मंदिर के ये समूह दो भागों में बंटे हुए हैं। दोनों ही भाग भगवान शिव जी को ही समर्पित थे, पर कहा जाता है कि एक में ही केवल भगवान शिव जी की प्रतिमा है और दूसरे में भगवान भैरव की। इतिहासकारों के अनुसार शिव को समर्पित इन मंदिरों का निर्माण ८वीं सदी में कश्मीर-नरेश ललितादित्य ने करवाया था।

पहले भाग का द्वार किसी वजह से हाल में बंद कर दिया गया है, पर दूसरे भाग में मुख्य मंदिर जो प्रतिमाविहीन है, की बाईं ओर पत्थर पर तराशकर बनाया हुआ एक शिवलिंग अभी भी विद्यमान है। शेष बचे मंदिर के समूह पूरी तरह ध्वस्त हैं, किन्तु आस-पास बिखरे अवशेष ही इसके भव्य और गौरवमयी अतीत की कहानी बयां करते हैं। मंदिर के सामने ही पत्थर से बना जलसंचय पात्र है, जो संभवतः धार्मिक प्रयजनों में प्रयुक्त होता होगा।

मंदिर के उत्तर-पश्चिम भाग में एक प्राचीन कुंड भी बना हुआ है। पत्थरों से बनाये गए इसके दीवारों पर सुन्दर कलाकृतियां भी बनाई गई होंगी, जिनकी थोडी-थोडी झलक आज भी दिखाई देती है। जैसा कि आप सब जानते हैं कि कश्मीर की एक समृद्ध परंपरा रही है। भौगोलिक-ऐतिहासिक कारणों से यहां की सभ्यता में विभिन्नता साफ दिखाई देती है। खूबसूरत वादियों के साथ इतिहास के ये चिन्ह आपको एक अलग सफर में ले जायेंगे, जो आपने शायद ही की हो और यह सफर एक बार करने के बाद बार-बार करने की इच्छा होगी।

स्त्रोत : नेटीव प्लानेट

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