आज देशमें हिन्दू ही हिन्दुआेंके बैरी हैं । हिन्दू अपने धर्मबन्धुआेंके प्रति असंवेदनशील हैं । इसलिए इस देशकी ही नहीं अपितु सम्पूर्ण हिन्दू धर्मकी स्थिति दयनीय हो गई है । इसपर एक ही उपाय है, वह है हिन्दू अपने धर्मबन्धुआेंको जहां एवं जिसप्रकार बने सहायता करें । यह मेरा धर्मबन्धु है, इस निरपेक्ष भावसे हिन्दुआेंकी सहायता करें ।
१. वस्तुएं क्रय करते समय अथवा अन्य लेनदेन करते समय यह देखें कि धर्मबन्धुको ही लाभ मिले !
यदि आपको वस्तुएं क्रय करनी हों, तो आपकी खरीदसे आपके धर्मबन्धुको ही पैसे मिलेंगे, व्यवसाय मिलेगा, यह भान रखकर अपने धर्मबन्धुसे ही क्रय करें । आपको रिक्शा अथवा टैक्सीसे जाना हो, तो धर्मबन्धुकी टैक्सीको ही प्राथमिकता दीजिए । उसमें भी ऐसे वाहनमें बैठें, जहां धर्मपालन हो रहा हो, उदा. वाहकने मस्तकपर तिलक लगाया हो, वह वाहनमें चित्रपट गीत नहीं अपितु भजन लगा रहा है इत्यादि ।
२. यह जान लीजिए कि धर्मबन्धुआेंकी सहायता करना आपका प्रथम कर्तव्य है !
राजस्थानी समाजके व्यक्ति अपने समाजके व्यक्तिको व्यवसायमें सहायता करते हैं । पूंजीके लिए अनेकोंको इस समाजसे सहायता मिलती है । कर्नाटकका एक समाज होटल व्यवसायमें उनके समाजके व्यक्तियोंको ऐसी सहायता करता है । ये तो अपने धर्मकी बातें हैं । मुसलमानोंमें जमात होती है । यह जमात गांव-गांवमें भ्रमणकर धर्मबन्धुआेंकी सहायताकी आवश्यकता देखती है तथा प्रत्यक्षमें सहायता भी करती है, उदा. घर क्रय करनेके लिए ब्याजमुक्त ऋण देना । यही बात ईसाइयोंमें भी है । चर्चसे बडी मात्रामें ईसाइयोंको सहायता मिलती है, उदा. धर्म-परिवर्तन किए हुए ईसाई व्यक्तिको ईसाई व्यापारी नौकरी देते हैं ।
यदि यह सर्व है, तो हम हिन्दू होते हुए भी प्रत्येक स्थानपर हिन्दुआेंको प्राथमिकता देनेमें क्यों लजाएं ? हम हिन्दू हैं । अपने धर्मबन्धुआेंकी सर्व प्रकारसे सहायता करना हमारा प्रथम कर्तव्य है । उस कर्तव्यका पालन करनेसे हम क्यों चूकें ? अपने इस कर्तव्य पालनके लिए हमें समाज अथवा कानूनसे सम्बन्धित कोई बन्धन नहीं है ।
३. किसके साथ लेनदेन करना है अथवा किससे नहीं करना है, इसका निर्णय लेनेकी स्वतन्त्रता प्रत्येक नागरिकको है !
इस देशके स्वतन्त्रतासंग्रामका मूलमन्त्र वन्दे मातरम् था । आज वन्दे मातरम् गीतको राष्ट्रगीतका सम्मान नहीं है । यदि कोई व्यक्ति वन्दे मातरम् कहनेसे मना कर सकता है अथवा वन्देमातरम्का प्रतिसाद वन्देमातरम् से नहीं देता है, तो हमें यह स्वतन्त्रता है कि हम उसके साथ कोई भी लेनदेन नहीं करें । सब्जी विक्रेताको यदि हम वन्दे मातरम् कहते हैं तथा उससे हमें वैसा ही प्रतिसाद न मिले, तो उससे सब्जी क्रय न करनेकी स्वतन्त्रता हमें है । हमें उस स्वतन्त्रताका उपयोग करना चाहिए । जो व्यक्ति जय श्रीरामकी घोषणाका प्रतिसाद जय श्रीरामसे नहीं देता है, उसके साथ किसी भी प्रकारका लेनदेन न करनेका निर्णय लेनेकी स्वतन्त्रता भी हमें है ।
४. भारतीयत्व छोडकर लेनदेन करनेवाले प्रतिष्ठानोंका सभी राष्ट्राभिमानियोंको बहिष्कार करना चाहिए !
जो प्रतिष्ठान भारतीयत्वको छोडकर लेनदेन करते हों, उदा. अपने निवासस्थानका नाम ड्रिमिंग ऑफ अरेबिया रखते हों तथा विज्ञापनोंमें भारतीयत्व अथवा हिन्दुत्वको हीन दर्शाकर विदेशी संस्कृतिकी प्रशंसा करते हों, ऐसे प्रतिष्ठानोंका बहिष्कार करनेका अधिकार हमें है । हमें यह करना चाहिए । जो प्रतिष्ठान स्वधर्मके व्यक्तियोंको नौकरियां देते हैं अथवा स्वधर्मके व्यक्तियोंसे लेनदेनको प्राथमिकता देते हैं, उनके साथ सामाजिक लेनदेन करते समय हम भी उसी नियमका पालन करें, तो उसमें चूक क्या है ? हमें ऐसा करनेका पूर्ण अधिकार है तथा हमें आजसे ही उस अधिकारका उपयोग करना है ।
५. हिन्दू धर्मपर आघात करनेवाले प्रसारमाध्यमोंका बहिष्कार करें !
आज हम देखते हैं कि हिन्दू धर्मपर आघात करनेवाले प्रसारमाध्यम गर्वमें हैं । एक अंग्रेजी समाचारपत्रके पत्रकार एवं सम्पादक हिन्दू धर्मपर प्रहार करनेमें सबसे आगे रहते हैं । इनका धिक्कार करना हो, तो इन समाचारपत्रों तथा प्रसार माध्यमोंका बहिष्कार करनेका हमें पूर्ण अधिकार है । हमें भूलसे भी ये समाचारपत्र नहीं पढना चाहिए, उनके जालस्थल, दूरचित्रप्रणाल नहीं देखने चाहिए । जो हिन्दू आर्थिक दृष्टिसे सक्षम है, जिनका व्यवसाय बडा है, वे हिन्दू विरोधी दूरचित्रप्रणालोंको विज्ञापन देना बन्द करें ।
६. शत्रुराष्ट्रके उत्पादोंका बहिष्कार करें !
पाकिस्तानसे आनेवाली एक भी वस्तुकी ओर हम नहीं देखेंगे, फिर वह कितनी भी सस्ती अथवा अच्छी हो । वह वस्तु पाकिस्तानसे आई है, इसलिए हमें वह नहीं चाहिए, क्योंकि हमारे सैनिकोंको मारनेवाला पाकिस्तान हमारा शत्रु है । ऐसे वस्तुआेंपर बहिष्कार होते हुए भी यदि इस देशमें वह वस्तुएं कोई ले रहा हो, तो वह भी हमारा शत्रु ही है, यह मानना चाहिए ।
स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात