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दलित एवं मुसलमानोंको आंदोलनमें सम्मिलित करानेके लिए नक्सलवादियोंका नया षडयंत्र

चैत्र कृष्ण ७ , कलियुग वर्ष ५११४

 

 

जिस दिन नक्सलवादी एवं दलितोंके समझमें आएगा कि उनके माध्यमसे हिंदुओंको समाप्त करनेके उपरांत धर्मांध उन्हें भी नष्ट करेंगे, वह दिन उनके लिए सुदिन होगा !

 

मुंबई, १ अप्रैल – दलित एवं मुसलमानोंको नक्सलवादी आंदोलनोमें सम्मिलित करने हेतु प्रयास करनेवाले नक्सलवादियोंने अब प्रत्यक्ष कार्यमें नए षडयंत्र रचना आरंभ किया है । पुलिस एवं प्रशासनद्वारा होनेवाले कथित अत्याचारमें बलि जानेवाले दलित, मुसलमान इत्यादि घटकोंको एकत्र करनेकी नक्सलवादियोंकी नीति इस घटनासे स्पष्ट हो गई है । ( निद्रिस्त हिंदुओंके अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति स्वयंका अस्तित्व संजोए रखनेके लिए प्रयास कर रहा है । हिंदुओंको अपने अस्तित्वके विषयमें कोई लेना देना नहीं है । एक ओर जिहादी आतंकवादी एवं दूसरी ओर उनसे  जाकर मिलनेवाले नक्सलवादियोंको हिंदुओंको समाप्त करनेमे विलंब नहीं लगेगा । तथाकथित समर्थ हिंदुत्वनिष्ठ संगठन इस विषयमें निद्रिस्त ही हैं । ऐसे संगठन क्या कभी हिंदुओंकी रक्षा कर पाएंगे ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

१. गत चार दशकोंसे भारतके जंगलोमें कार्यवाही करनेवाले नक्सलवादियोंने अब नागरी क्षेत्रमें कार्यवाहियां बढानेका प्रयास किया है । ( राजनेताओंकी दुर्बलताके कारण देशका नक्सलवाद ४ दशकोमें नष्ट होनेकी अपेक्षा बढता ही जा रहा है । यदि यह स्थिति नहीं बदलेगी, तो इस देशमें जिहादी एवं नक्सलवादियोंका राज्य स्थापित होगा एवं उस समय भारत का अफगाणिस्तानमें रूपांतर होगा  ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

२. शहरोंमें कार्यवाहियां करनेके लिए अब नक्सलवादियोंको समाजके पीडित घटकोंको साथमें लेनेकी आवश्यकता प्रतीत हो रही है, इसलिए दलित एवं मुसलमानोंको साथमें लेनेका प्रयास गत कुछ वर्षोंसे किया जा रहा है ।

३. नक्सलवादियोंद्वारा दलित एवं मुसलमान समाजके विचारकोंको नक्सलवादी आंदोलनके समर्थनके लिए  काम करनेवाले संगठनोंको एक मंचपर लाकर बौद्धिक विचार-विमर्शके माध्यमसे इस घटकके साथ अपनापनस्थापित करनेका प्रयास नक्सलवादियोंने गत कुछ महीनोंसे आरंभ किया है । कुछ दिन पूर्व लक्ष्मणपुरी (लखनौ) की एक संस्थाद्वारा चंदीगडमें ’जातीप्रश्न एवं मार्क्स’ विषयपर आयोजित परिसंवाद इसी प्रयासका एक हिस्सा था, ऐसा गुप्तचर तंत्रोंका कहना है ।

४. पंजाब एवं उत्तरप्रदेशमें नक्सलवादी आंदोलनके लिए काम करनेवालोंने यह कार्यक्रम आयोजित किया एवं उस कार्यक्रममें डॉ.आंबेडकरकी जानबुझकर आलोचना की । सूत्रोंका कहना है कि नक्सलवादी इस देशका लोकतंत्र माननेके लिए तैयार नहीं है,  इसीलिए यह आलोचना की गई है ।

५. नक्सलवादी समर्थकोंने देशमें अन्य स्थानोंपर भी ऐसे कार्यक्रम निरंतर लेना आरंभ किया है । इसमें खैरलांजी हत्याकांडका विषय उपस्थित किया जा रहा है । पुलिस दलके वरिष्ठ अधिकारियोंका कहना है कि दलितोंको आंदोलनके साथ जोडनेके लिए ही इस प्रकारकी घटनाएं की जा रही हैं ।

६. दो महीने पूर्व नागपुरके समीप कामठीमें एक प्रार्थनास्थलको लेकर दलित एवं मुसलमानोंमें दंगा हुआ  । इस दंगेके पश्चात नक्सलवादियोंके समर्थक तत्काल वहां पहुंचे एवं उन्होंने दोनों समाजके नेताओंकी बैठक आयोजित कर विवादको मिटानेका प्रयास किया । बैठकमें इस प्रकारका उपदेश दिया गया कि अब एकत्र आनेका समय है । अतः विवाद समाप्त करें ।

७. मुसलमानोंको निकट करने हेतु गत वर्र्ष नक्सलवादियोंके समर्थकोंने भाग्यगरमें आयोजित बैठकके लिए कश्मीरके विघटनवादी नेता सय्यद गिलानीको आमंत्रित किया था । ( देशद्रोहियोंको साथमें लेनेवाले नक्सलवादी भी अब  देशद्रोही सिद्ध हो रहे हैं । देशकी प्रशासन व्यवस्थाके विरोधमें कार्य कर रहे हैं, ऐसा सूचित करनेवाले नक्सलवादी अपने मूल उद्देश्यसे दूर जा रहे हैं । ऐसे नक्सलवादियोंकी सहायता करनेवाले आदिवासी एवं अन्य हिंदुओंको क्या यह स्वीकार है ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

८. नक्सलवादियोंका आंदोलन माओवादियोंके  विचारोंपर निर्भर है । इसमें धर्म अथवा उससे निर्माण होनेवाले जिहादको स्थान नहीं है । अधिकारियोंका कहना है कि नक्सलवादियोंकी गतिविधियोंसे यही ध्यानमें आता है कि विघटनवादी आंदोलनोको एकत्र लानेका प्रयोग अब नक्सलवादियोंने आरंभ किया है । ( नक्सलवादी ऐसा प्रयास कर स्वयं अपने एवं देशके अस्तित्वपरही आंच लानेका काम कर रहे हैं । जिहादी आतंकवादी, विघटनवादी मुस्लिमके अतिरिक्त अन्य किसीको भी नहीं मानते । भारत उनके नियंत्रणमें आनेपर वे नक्सलवादियोंको भी जानसे मारेंगे, यह शत प्रतिशत सच है, यह जिस दिन नक्सलवादी ध्यानमें लेंगे, वह उनके लिए सुदिन होगा ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

९. गुप्तचरोंके सूत्रके अनुसार मुसलमानोंका आतंकवादी कार्यवाहियोंमें सहयोग  होनेका संदेह होनेके कारण उन्हें अलग दृष्टिसे देखा जाता है । इस कारण उनमें जो असुरक्षाकी भावना उत्पन्न हुई है, उससे लाभ उठानेका नक्सलवादियोंका प्रयास है । ( मुसलमान जिहादी आतंकवादका सार्वजनिक रूपसे कभी विरोध करते हुए नहीं दिखाई देते । अतः उनका मौन आतंकवादियोंको समर्थन दर्शाता है । यदि मुसलमान स्पष्ट रूपसे जिहादका विरोध करेंगे, तो जनताके मनमें कोई संदेह नहीं रहेगा; परंतु क्या मुसलमान ऐसा कर पाएंगे  ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )

स्त्रोत – दैनिक सनातन प्रभात

 

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