कंबोडिया, वह देश है जिसकी राष्ट्रभाषा कभी संस्कृत थी। इतिहास में इसका उल्लेख है। यहां पर ६वी शताब्दी से लेकर १२ वी शताब्दी तक देवभाषा संस्कृत को राष्ट्र भाषा का दर्जा प्राप्त था। कंबोडिया का प्राचीन नाम कंबुज था।
वैसे तो कंबोडिया के उस समय इंडोनेशिया, मलय, जावा, सुमात्रा, कम्बुज, ब्रह्मदेश, सियाम, श्रीलंका, जापान, तिब्बत, नेपाल आदि देशों से उसके राजनीतिक और व्यापारिक संबंध थे। इन देशों से अपनी समन्वयी संस्कृति और संस्कृत के आधार पर कंबोडिया ( कंबूज) वर्षों से भारत के संपर्क में था। जिसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है।
कंबुज देश के संस्कृत शिलालेख
शोधकर्ता भक्तिन कौन्तेया अपनी ऐतिहासिक रूपरेखा में लिखते हैं कि, ‘प्राचीन काल में कम्बोडिया को कंबुज देश कहा जाता था। ९ वी से १३ वी शती तक अङ्कोर साम्राज्य पनपता रहा। राजधानी यशोधरपुर सम्राट यशोवर्मन ने बसाई थी।’
अङ्कोर राज्य उस समय वर्तमान के कंबोडिया, थायलेण्ड, वियतनाम और लाओस सभी को आवृत्त करता हुआ विशाल राज्य था। संस्कृत से जुडी भव्य संस्कृति के प्रमाण इन अग्निकोणीय एशिया के देशों में आज भी विद्यमान हैं।
कंबुज देशों में संस्कृत का महत्त्व
कंबुज शिलालेख जो खोजे गए हैं वे कंबुज, लाओस, थायलैंड, वियेतनाम इत्यादि विस्तृत प्रदेशों में पाए गए हैं। कुछ ही शिला लेख पुरानी मेर में मिलते हैं। जबकि बहुसंख्य लेख संस्कृत भाषा में ही मिलते हैं।
संस्कृत उस समय की दक्षिण पूर्वअग्निकोणीय देशों की सांस्कृतिक भाषा थी। कंबुज, मेर ने अपनी भाषा लिखने के लिए भारतीय लिपि अपनायी थी। आधुनिक मेर भारत से ही स्वीकार की हुई लिपि में लिखी जाती है।
वास्तव में ग्रंथ ब्राह्मीश ही आधुनिक मेर की मातृ.लिपि है। कंबुज देश ने देवनागरी और पल्लव ग्रंथ लिपि के आधार पर अपनी लिपि बनाई है। आज कंबुज भाषा में ७० प्रतिशत शब्द सीधे संस्कृत से लिए गए हैं, यह कहते है जिसे कौंतेय कहते हैं।
वास्तव में संस्कृत यहां की न्यायालयीन भाषा थी, एक सहस्रों वर्षों से भी अधिक समय तक के लिए उसका चलन था।सारे शासकीय आदेश संस्कृत में होते थे।
भूमि के या खेती के क्रय- विक्रय पत्र संस्कृत में ही होते थे। मंदिरों का प्रबंधन भी संस्कृत में ही सुरक्षित रखा जाता था। १२५० ई. में शिलालेख उसमें से बहुसंख्य संस्कृत में लिखे पाए जाते हैं।
स्रोत : नर्इ दुनिया