हिन्दू जनजागृति समिति का ‘आदर्श गणेशोत्सव अभियान !’
हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों की रत्नागिरी (महाराष्ट्र) के नगराध्यक्ष एवं मुख्याधिकारी से ज्ञापन प्रस्तुति कर मांग
रत्नागिरी : प्रदूषण के नामपर केवल हिन्दुओं के धार्मिक उत्सवों के समय जागनेवाले अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति जैसे संगठन बहते पानी में गणेशमूर्ति विसर्जन का विरोध करते हैं ! उनकी अनदेखी कर प्राचीन धार्मिक प्रथा-परंपरा के अनुसार श्री गणेशमूर्तियों की प्राकृतिक जलक्षेत्र में विसर्जन की परंपरा को जारी रखा जाए ! यहां के हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने नगराध्यक्ष श्री. प्रदीप उपाख्य बंडा साळवी एवं मुख्याधिकारी श्री. ठोंबरे को ज्ञापन प्रस्तुत कर उनसे यह मांग की।
इस अवसर पर श्री शिवप्रतिष्ठान हिन्दुस्थान, रत्नागिरी के अध्यक्ष श्री. राकेश नलावडे, श्री. देवेंद्र जापडेकर, श्री. सुशील कदम, श्री. ऋषिकेश पाष्टे, हिन्दू राष्ट्र सेना के श्री. रुपेश तावडे, रत्नागिरी ग्राहक पंचायत के संस्थापक-सदस्य श्री. जयंत आठल्ये; श्री कालिका मंदिर न्यास, मिरजोळे के श्री. श्रीराम नाखरेकर; शिवचरित्र कथाकार श्री. अरविंद बारसकर, श्री. प्रफुल्ल पोंक्षे, श्री. संकेत पोंक्षे, सनातन संस्था के श्री. चंद्रशेखर गुडेकर, हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. नीलेश नेने, श्री. पुरुषोत्तम वागळे एवं श्री. संजय जोशी उपस्थित थे।
इस ज्ञापन में कहा गया है कि, . . .
लोकलेखा समितिद्वारा प्रकाशित ब्यौरे के अनुसार नदीयां, तालाब आदि प्राकृतिक जलस्त्रोतों में प्रतिदिन लाखों लिटर गंदा पानी बिना किसी प्रक्रिया के छोडा जा रहा है ! राज्य के २१ सहस्र ८०० मेट्रिक टन सूखे कचरे में से १५ सहस्र सूखे कचरे का निःसारण नहीं किया जाता ! राज्य की सभी महापालिकाएं और नगरपालिकाओं को परिपूर्ण धोवन जल व्यवस्थापन और सूखे कचरे के व्यवस्थापन के निर्देश दिए जाकर भी उसकी आपूर्ति नहीं की गई है; परंतु तथाकथित पर्यावरणवादी साल में एक बार आनेवाले गणेशोत्सव के कारण प्रदूषण होने का ढिंढोरा पिटते हुए श्रद्धालुओं को बलपूर्वक गणेशमूर्तियां दान देने के लिए एवं उनका कृत्रिम कुंडों में विसर्जन करने के लिए जबरदस्ती करते हैं ! फिर वहां विसर्जित गणेशमूर्तियों को पत्थर की खदानों में, सूखे कुओं में अथवा निर्जन स्थलों पर फेंका जाता है ! इन मूर्तियों को नगरपालिका की कुढे-कचरे की गाडियों में डालकर ले जाया जाता है ! इसके कारण बडी मात्रा में गणेशमूर्तियों का अनादर होकर हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं ! अतः प्राचीन प्रथा-परंपरा के अनुसार प्राकृतिक जलस्त्रोतों में ही गणेशमूर्ति विसर्जन की परंपरा को अबाधित रखा जाए !
इस ज्ञापन में ऐसी भी मांग की गई है कि, कागज के लुगदे से बनाई जानेवाली गणेशमूर्तियों के कारण बडी मात्रा में जलप्रदूषण होता है, ऐसा प्रमाणित हुआ है ! अतः प्रशासन प्रदूषणकारी कागज के लुगदे से बनी मूर्तियों की प्रतिष्ठापना करने के लिए प्रोत्साहित न करें, साथ ही अपनी कार्यसीमा में कागज के लुगदे से बनी मूर्तियों के क्रय-विक्रय पर प्रतिबंध लगाएं और उस दृष्टि से एक निरीक्षण दल का गठन कर संबंधित लोगों के विरोध में कठोर कार्रवाई करें !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात