ढाई हजार साल पहले भारतीय मनीषियों ने तन और मन को स्वस्थ रखते हुए आध्यात्मिक उत्थान की जिस विद्या को विकसित किया, आज दुनिया में उसके बने प्रभाव का ही यह परिणाम है कि संयुक्त राष्ट्र ने हर वर्ष २१ जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस” के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि १७७ देश इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र महासभा में आए प्रस्ताव के सह-प्रायोजक बने। इस प्रस्ताव में रेखांकित किया गया कि योग स्वास्थ्य एवं खुशहाली का समग्र दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है।
हालांकि योग के प्रति आकर्षण गुजरे दशकों में पूरी दुनिया (खासकर पश्चिमी देशों) में तेजी से बढ़ा है, इसके बावजूद इसे संयुक्त राष्ट्र की मान्यता मिलना महत्वपूर्ण है। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जाना चाहिए, जिन्होंने इस वर्ष सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन को संबोधित करते हुए विश्व योग दिवस मनाने का सुझाव रखा था। संयुक्त राष्ट्र का संरक्षण मिलने से इस विद्या की प्रामाणिकता अधिक व्यापक रूप से स्थापित होगी।
बहरहाल, इस मौके पर बीकेएस आयंगर और अन्य योगियों के योगदान को भी अवश्य याद किया जाना चाहिए, जिनकी साधना और विश्व से संवाद की क्षमता के कारण न सिर्फ योग से बाकी देशों का परिचय हुआ, बल्कि आधुनिक काल में एक तरह से भारत में भी इसका पुनर्जन्म हुआ। २०वीं सदी में स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत का उदय और भारतीय विद्याओं, प्राचीन ज्ञान तथा शास्त्रीय संगीत का पुनरुत्थान एक-दूसरे से जुड़ी परिघटनाएं रही हैं। आज योग जिस मुकाम पर है, उसे इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
बहरहाल, गर्व के इस अवसर पर भी यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि आधुनिक दौर में योग के नाम पर जो लोकप्रिय हुआ है, वह असल में योग का सिर्फ एक अंग यानी आसन है। योग के समग्र दर्शन के सात ऐसे और अंग हैं। फलसफा यह है कि अगर व्यक्ति यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि के पायदान चढ़े तो आत्मा के परमात्मा से योग (मिलन) की अवस्था आती है। इस दर्शन के १९६ सूत्र श्रुति परंपरा में विकसित हुए, जिन्हें तकरीबन ४०० ईस्वी पूर्व ऋषि पतंजलि ने लिपिबद्ध किया।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आगे चलकर यह उत्कृष्ट दर्शन आम जनमानस से दूर होता गया। लेकिन यह संतोष की बात है कि १९-२०वीं सदियों में इसकी पुन: प्रासंगिकता स्थापित हुई। चूंकि योगासन का संबंध शारीरिक स्वास्थ्य से है, अत: इसका भौतिक जीवन से नाता बना और इसके प्रति बड़ी संख्या में लोग आकर्षित हुए। लेकिन योग के पूरे दर्शन के प्रति जागरूकता लाने का कार्य अभी भी हमारे सामने है।
आशा की जानी चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र से योग को मिली मान्यता से इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अनुकूल स्थितियां बनेंगी। यह अवसर बताता है कि विद्या चाहे कहीं भी उत्पन्न हो, अंतत: वह पूरी मानवता की थाती बन जाती है। योग आज ऐसी ही थाती है।
स्रोत : नई दुनिया