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अपने पूर्वजों के आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष में पिंडदान करने भारत आते है विदेशी

हिन्दू धर्म की महानता

‘श्राद्ध’ पितृऋण चुकाने के लिए अत्यंत आवश्यक माना जाता है। श्राद्धविधि में किए जानेवाले मंत्रोच्चारण में पितरों को गति देने की सूक्ष्म शक्ति समाई हुई होती है। श्राद्ध में पितरों को तर्पण करने से वे संतुष्ट होते हैं। श्राद्धविधि करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और हमारा जीवन भी सुसह्य हो जाता है।

अपने पुर्वजों के लिए हिन्दू धर्म में किया जानेवाला ये विधी विदेशी लोगों को भी ज्ञात है और शायद यही कारण है कि, कई विदेशी लोग अपने पुर्वजों को मुक्ति दिलाने की यह विधी करने के लिए भारत आते है एवं पुरे श्रद्धा से यह विधी करते है। पिछले साल यह विधी करने के लिए रूस के नताशा सप्रबनोभआ, सरगे और एकत्रिना धर्मनगरी गया आकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था।

गया में पिंडदान करते रुसी नागरिक

इन लोगों ने ऐतिहासिक विष्णुपद मंदिर, फ्लगू के देवघाट, प्रेतशिला और रामशिला वेदी पर पिंडदान किया और पूर्वजों के लिए स्वर्गलोक की कामना की। इन लोगों ने विष्णुपद मंदिर में पूजा अर्चना की। मीडिया से बात करते हुए इन लोगों ने कहा कि, सनातन धर्म के बारे में पढा था जिसमें पिंडदान को काफी महत्वपूर्ण माना गया है और इस परंपरा को भारतीय वेशभूषा में संपन्न करने के बाद उनकी आकांक्षा आज पूरी हो गयी है !

बता दे कि, वर्ष २०१७ में मोक्ष स्थली गया में पितरों की मुक्ति के महापर्व पितृपक्ष मेला के दौरान देवघाट पर अमेरिका, रूस, जर्मनी और स्पेन के २० विदेशी नागरिकों ने अपने पितरों की मुक्ति की कामना को लेकर पिंडदान व तर्पण किया था। इनमें से एक जर्मनी की इवगेनिया ने कहा था कि, भारत धर्म और अध्यात्म की धरती है। गया आकर मुझे आंतरिक शांति की अनुभूति हो रही है। मैं यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने आई हूं।

यह भी पढें : पितृपक्ष में पितरों की शांति के लिए कैसे किया जाता है श्राद्धकर्म ?

इन विदेशीयों को हिन्दू धर्म के अनुसार आचरण करते देख, हिन्दू धर्म की महानता हमारे ध्यान में आती है। माता-पिता तथा अन्य निकट संबंधियों की मृत्युपरांत की यात्रा सुखमय एवं क्लेशरहित हो तथा उन्हें सद्गति मिले, इस हेतु किया जानेवाला संस्कार है ‘श्राद्ध’। श्राद्धविधि करने से पितरों की कष्ट से मुक्ति हो जाती है और हमारा जीवन भी सुसह्य हो जाता है। परंतु दुर्भाग्यवश आज हिन्दुआें को धर्म मे बताए गए एेसे विधी करना पिछडापन लगता है। उनके मॉडर्न जिवनशैली को श्राद्ध करने जैसे कृती अंधश्रद्धा लगती है।

हिन्दू समाज की यह दु:स्थिती धर्मशिक्षा का महत्त्व दर्शाती है। आज हिन्दूआें को धर्मशिक्षा न मिलने के कारण ही उनका इस प्रकार अध:पतन हो रहा है। आज एैसी स्थिती है कि, विदेशों से आकर श्रद्धालू हिन्दू धर्म तथा अध्यात्म के बारे में जानकारी प्राप्त कर हिन्दू धर्म के अनुसार आचरण करने लगे है। वही हिन्दू धर्म के उगमस्थान तथा पुण्यभूमी भारतवर्ष के कर्इ हिन्दूआें को ही आज धर्माचरण करना पिछडेपन जैसे लगता है।

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