दत्तात्रेय के नामजपद्वारा पूर्वजों की पीडा से रक्षा कैसे होती है ?
कलियुग में अधिकांश लोग साधना नहीं करते, अतः वे माया में फंसे रहते हैं। इसलिए मृत्यु के उपरांत ऐसे लोगों की लिंगदेह अतृप्त रहती है। ऐसी अतृप्त लिंगदेह मर्त्यलोक में फंस जाती है। (मर्त्यलोक, भूलोक एवं भुवलोक के बीच में है।) मर्त्यलोक में फंसे पूर्वजों को दत्तात्रेय के नामजप से गति मिलती है; वे अपने कर्मानुसार आगे के लोक की ओर अग्रसर होते हैं। अतः स्वाभाविक ही उनसे संभावित कष्ट घट जाते हैं।
दत्तात्रेय के नामजप से निर्मित शक्तिद्वारा नामजप करनेवाले के आसपास सुरक्षा-कवच का निर्माण होता है।
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पूर्वजों के कष्टों की तीव्रता के अनुसार किया जानेवाला दत्तात्रेय का नामजप
वर्तमान काल में लगभग सभी को पूर्वजों का कष्ट है, इसलिए ‘श्री गुरुदेव दत्त।’ नामजप प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन १ से २ घंटे करना आवश्यक है। मध्यम स्वरूप के कष्ट के लिए यह नामजप प्रतिदिन २ से ४ घंटे करें। तीव्र स्वरूप का कष्ट हो, तो यह नामजप प्रतिदिन ४ से ६ घंटे करें।
पितृपक्ष में दत्तात्रेय देवता का नाम जपने का महत्त्व
पितृपक्ष में श्राद्धविधि के साथ-साथ दत्तात्रेय का नामजप करने से पूर्वजों के कष्ट से रक्षा होने में सहायता मिलती है। इसलिए पितृपक्ष में दत्तात्रेय का नामजप प्रतिदिन न्यूनतम १ से २ घंटे (१२ से २४ माला) तथा संभव हो तो अधिकाधिक निरंतर करें।