हिन्दू युवकों ने अपनी धर्म एवं परंपराओं का अभ्यास करना चाहिए ! – श्री. मनोज खाडये, पश्चिम महाराष्ट्र समन्वयक, हिन्दू जनजागृति समिति
कुडाळ : आज पाश्चात्त्य देशों में हिन्दू धर्म एवं भारतीय संस्कृति का महत्त्व ध्यान में लेकर उसको स्वीकारा जा रहा है; किंतु भारतीयों पर ब्रिटीशों की मैकॉलेप्रणित शिक्षाप्रणाली का प्रभाव होने से वे हिन्दू धर्म एवं भारतीय संस्कृति को पुराना मान रहे हैं ! हिन्दुओं को धर्मशिक्षा न मिलने का यह परिणाम है ! इसलिए हिन्दू युवकों ने अपनी धर्म एवं परंपराओं का अभ्यास करना चाहिए और उनके प्रति गर्व मनाना चाहिए, अन्यथा ‘जहां उगता है वहां बिकता नहीं’, ऐसी हमारी स्थिति बन जाएगी ! ऐसा न हो; इसके लिए हिन्दू जनजागृति समिति धर्मजागृति, धर्मशिक्षा, धर्मरक्षा, राष्ट्ररक्षा एवं हिन्दूसंगठन इस पंचसूत्रीपर कार्य कर रही है। युवा पीढी को समिति के इस कार्य का अभ्यास कर राष्ट्र एवं धर्मरक्षा हेतु क्रियाशील बनना चाहिए ! हिन्दू जनजागृति समिति के पश्चिम महाराष्ट्र समन्वयक श्री. मनोज खाडये ने ऐसा आवाहन किया।
हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से साळगांव के सावित्री लीला मंगल कार्यालय में हाल ही में जिलास्तरीय युवा शिविर का आयोजन किया गया था। इसमें श्री. खाडये ने उपस्थित युवावर्ग का मार्गदर्शन किया। इस अवसर पर सनातन के सद्गुरु सत्यवान कदमजी की वंदनीय उपस्थिति रही।
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श्री. खाडये ने आगे कहा, ‘‘अमेरिका जैसे देशों ने भारतीय संस्कृति का अध्ययन कर उनकी संसद का काम आरंभ होने से पहले वेदमंत्र का पाठ करना आरंभ किया; किंतु भारत के तथाकथित ‘बुद्धिजीवी वेद, ईश्वर इत्यादि कालबाह्य हो चुके हैं’, ऐसा बोल कर भारतीयों का बुद्धिभ्रम कर रहे हैं ! इसके फलस्वरूप देश के बहुसंख्यक हिन्दू नास्तिक बनते जा रहे हैं ! इसलिए उनको देवता, देश, धर्म और उनकी आस्था के केंद्रों का अनादर होने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं; उस पर उन्हें कुछ नहीं लगता ! समितिद्वारा ऐसे ही एक प्रकरण में तीव्रता के साथ उठाई गई आवाज के कारण एमेजॉन जैसे विदेशी प्रतिष्ठान को भारत से सार्वजनिक रूप से क्षमायाचना करनी पडी !
इस अवसर पर सनातन के डॉ. संजय सामंत ने ‘विज्ञान एवं अध्यात्म’ इस विषय पर मार्गदर्शन किया। अधिवक्ता श्रीमती कावेरी राणे ने कलियुग में किस प्रकार से साधना करनी चाहिए और साधना में तात्त्विक भाग की अपेक्षा प्रायोगिक भाग का कितना अधिक महत्त्व है, यह विशद किया। सद्गुरु सत्यवाद कदमजी ने ‘राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृति’, तो श्रीमती ज्योत्स्ना नारकर ने ‘स्वभावदोष निर्मूलन का महत्त्व और उसके विविध चरण’ इन विषयों पर मार्गदर्शन किया।
सायंकाल के सत्र में संपन्न गुटचर्चा में शिविरार्थियों ने वे धर्मकार्य में कैसे सहभाग ले सकते हैं, इस संदर्भ में बताया। उन्होंने स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया के प्रति रूचि दिखाकर उसके लिए क्रियाशील होने की सिद्धता दर्शाई ! कु. पूजा धुरी ने कार्यक्रम का सूत्रसंचालन किया। इस शिविर में जिले के लगभग १०० युवक-युवतियां सहभागी हुए थे !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात