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कैथोलिक पंथ के पाद्री फ्रान्सिस दिब्रिटो को मराठी साहित्य सम्मलेन का अध्यक्ष चुने जाने का प्रकरण
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क्या, गोवा में ‘इन्क्विजिशन’ के अत्याचार, चर्च में यौन शोषण, बाइबिल में अवैज्ञानिक सिद्धान्त आदि के संबंध में पाद्री दिब्रिटो अपनी भूमिका स्पष्ट करेंगे ?
मराठी भाषा संवर्धन के लिए साहित्य सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं ! इन सम्मेलनों से मराठी भाषा का कितना भला हुआ है, यह एक अलग ही प्रश्न है; परंतु अब इस सम्मेलन का व्यासपीठ ही आजीवन ईसाई धर्म के प्रचारक का व्रत स्वीकारनेवाले पाद्री के हाथों में दिया जानेवाला है ! इसमें धर्म अलग होने का प्रश्न ही नहीं है, इसका कारण है संतसाहित्य के अभ्यासक डॉ. यु. म. पठाण को धर्म का विचार न करते हुए महाराष्ट्र की जनता ने साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में स्वीकार किया है; परंतु कैथोलिक पंथ के पाद्री फ्रान्सिस दिब्रिटो ने साहित्य के माध्यम से मराठी भाषा की सेवा की है या फिर ईसाई साहित्य मराठी में उपलब्ध करवा कर धर्मपरिवर्तन में सहायता की है, यह एक विचार करनेवाली बात है ! इसी समय यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि, राष्ट्रसेवा की दृष्टि से साहित्य की रचना करनेवाले हिन्दुत्वनिष्ठ साहित्यिकों के साथ ‘अस्पृश्य’ के समान व्यवहार किया गया है ! वर्ष १९७७ में भाषाप्रभु पु. भा. भावे को मराठी साहित्य सम्मेलन का अध्यक्षपद देने पर वह सम्मेलन बिखेरने का प्रयत्न हुआ था ! उसके उपरांत प्रसिद्ध साहित्यकार और वक्ता डॉ. सच्चिदानंद शेवडेजी को सम्मेलन के चुनाव में खडे रहने का विरोध किया गया था !
क्या इसका अर्थ पुरोगामी महाराष्ट्र में कैथोलिक पंथ के पैरों तक लंबे गाउन पहन कर विचार प्रस्तुत करनेवाले धर्मप्रचारक पाद्री चलेंगे; परंतु भगवे की सेवा करनेवाले हिन्दुत्वनिष्ठ विचारक नहीं चलेंगे ?, ऐसा स्पष्ट प्रश्न हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने उपस्थित किया है !
ठाणे का सम्मेलन केवल दादोजी कोंडदेव नामक प्रेक्षागृह में हुआ था, इसलिए विरोध किया गया, तो वर्ष २०१३ में चिपळूण में संपन्न सम्मेलन में भगवान परशुराम की प्रतिमा व्यासपीठ पर रखने के कारण सम्मेलन बिखेरने की धमकियां दी गई थीं ! पुरोगामीत्व का ढोल पीटनेवाले अब चुप है !
पाद्री फ्रान्सिस दिब्रिटो ने मराठी साहित्य से केवल ईसाई धर्म की ही सेवा की है ! उन्होंने ईसाइयों की अंधश्रद्धा, ईसाई धर्मगुरुओंद्वारा हो रहा यौन शोषण, बलपूर्वक किया जानेवाला धर्मपरिवर्तन, ‘विच हंट’ के नाम से डायन सिद्ध कर सहस्रों ईसाई महिलाओं को जीवित जलानेवाले चर्च की विकृति आदि पर एक शब्द भी नहीं कहा है ! इसके विपरीत केसरिया चंपा और सफेद चंपा इस रूपक के माध्यम से ऐसा दर्शाया है कि, ‘ईसाई धर्म कितना सहिष्णु और हिन्दुत्व कितना आक्रामक होता है !’ गोवा के इन्क्विजिशन के अत्याचार एवं आयरलैंड में बाइबिल पर आधारित कानून के कारण गर्भपात करना नकारने से डॉ. सविता हालप्पणवार एवं उनके गर्भ की चिकित्सालय में हुई मृत्यु के संबंध में क्या पाद्री दिब्रिटो क्षमा मांगेंगे ?
श्री शिंदे ने ऐसा भी कहा कि, कल यदि आतंकवाद के समर्थक जाकिर नाईक मराठी में कुरान एवं अन्य साहित्य लिखें तो उन्हें भी सम्मेलन का अध्यक्षपद मिलने पर ये पुरोगामी कभी आपत्ति नहीं उठाएंगे !