कहाँ गया सेक्युलरिज़्म ? हिन्दू से ईसाई बनने के लिए लोगों को विशेष प्रोत्साहन दे रही है केरल सरकार !
केरल सरकार ने हिन्दू से ईसाई बननेवाले लोगों की विशेष देखभाल करने के लिए एक पूरी कंपनी खोल रखी है ! ऐसे में यह सवाल उठता है कि, एक ‘सेक्युलर’ संविधान, उससे चलने वाली सेक्युलर सरकार आखिर किसी एक मज़हब से दूसरे में मतांतरण के लिए प्रोत्साहित कैसे कर सकती है ? कैसे आस्था के आधार पर भेदभाव किया जा सकता है कि, इस नौकरी के लिए न केवल किसी एक मज़हब के ही लोग आवेदन करें, बल्कि……
केरल सरकारद्वारा जारी की गई एक राजपत्र अधिसूचना सोशल मीडिया पर उसकी छीछालेदर करा रही है ! अगस्त २०१९ में जारी इस राजपत्र में असिस्टेंट सर्जन और कैजुयलिटी मेडिकल अधिकारी के आवेदन माँगे गए हैं- केवल उन अनुसूचित जाति के लोगों के, जिन्होंने ईसाई धर्म अपनाया [Scheduled Caste Converts to Christianity (SCCC)] !
इस अधिसूचना का मतलब है कि, केरल की सरकार अलग से उन लोगों को प्राथमिकता दे रही है जिन्होंने हिन्दू धर्म छोड़कर ईसाई पंथ अपनाया है !
पद भरने की तीसरी कोशिश, मोटा वेतन- आखिर क्यों नहीं कम होंगे हिन्दू ?
यह पहली बार हुआ हो, ऐसा भी नहीं है। इसी SCCC श्रेणी के लिए विशेष तौर पर जारी यह तीसरी अधिसूचना है- क्योंकि, SCCC वर्ग के लोग, यानि आदिवासी और जनजातीय लोग, जो हिन्दू से ईसाई बने हों, उतने हैं ही नहीं, जितने सरकार चाहती है ! इससे पहले भी, इन्हीं रिक्तियों को भरने के लिए सरकार दो बार अधिसूचना जारी कर चुकी है और तब भी उनमें इस विशेष बिंदु का उल्लेख था-कि, आवेदक हिन्दू धर्म छोड़ कर ईसाई बना हो ! इस पद को भरने के लिए पहली नोटिफिकेशन साल २०१४ के दिसंबर में आई थी, दूसरी २०१६ में और तीसरी अब फिर आई अगस्त २०१९ में !
हिन्दू धर्म छोड़ कर ईसाई बननेवालों के लिए विशेष तौर पर सुरक्षित किए गए इन पदों का वेतन ₹४५,८०० से ₹८९,००० तक है !
विभाग है या कंपनी ?
अब इस मामले के प्रकाश में आने के बाद लोगों ने आवाज उठानी शुरू की है कि, आखिर कैसे केरल सरकार आस्था और उपासना-पद्धति के आधार पर भेदभाव कर रही है और कैसे नौकरी की भर्तियों में उन लोगों को प्राथमिकता दे रही है, जो हिन्दू से ईसाई बन गए ! लेकिन और गहराई में झाँकने पर पता चलेगा कि, इस मामले में चौंकने जैसा कुछ नहीं है- क्योंकि, केरल सरकार में तो ऐसे लोगों के ‘कल्याण’ के लिए पूरा एक विभाग है जिन्होंने हिंदू धर्म त्यागकर ईसाई पंथ अपनाया ! इस विभाग का नाम “केरल राज्य अनुसूचित जातियों और अनुशंसित समुदायों से ईसाई विकास निगम” ! निगम– यानि कम्पनी, जैसे NTPC (राष्ट्रीय ताप-विद्युत ऊर्जा निगम) सरकारी कंपनी है, ONGC सरकारी तेल कंपनी है !
सही पढ़ा आपने- केरल सरकार ने हिन्दू से ईसाई बनने वाले लोगों की विशेष देखभाल करने के लिए एक पूरी कंपनी खोल रखी है !
सरकारद्वारा संचालित इस विभाग (या कंपनी ?) ने अपने घोषित लक्ष्य में बताया है :
‘‘केरल के कोटय्यम में साल १९८० में कंपनी एक्ट १९५६ के अंतर्गत केरल राज्य अनुसूचित जातियों और अनुशंसित समुदायों से ईसाई विकास निगम की स्थापना की गई थी। इसका प्रमुख लक्ष्य अनुसूचित जातियों और अनुशंसित समुदायों से ईसाई पंथ में मतांतरित लोगों के व्यापक समाज, शैक्षिक, सांस्कृतिक और आर्थिक उत्थान एवं अन्य जीवन स्थितियों को बढ़ावा देना है !”
हालाँकि, यह विभाग एक सरकारी उपक्रम है, लेकिन इसकी स्थापना कंपनी अधिनियम १९५६ के तहत करना सवाल खड़े करता है ! आमतौर पर ऐसे विभागों को ‘सोसाइटी एक्ट’ और ‘स्पेशल एक्ट’ के अंतर्गत स्थापित किया जाता है। करने को वैसे तो कंपनी एक्ट की धारा ८ के अंतर्गत सरकारी उपक्रम को स्थापित किया जा सकता है, लेकिन सोसाइटी की जगह कंपनी के तौर पर इसकी स्थापना की मंशा पर उठे सवाल केवल इतने से नहीं दबाए जा सकते कि, यह किसी कानून के किसी पेंच से संभव है ! आखिर इस विभाग को केरल सरकार ने सोसाएटी के अन्तर्गत न रखकर कंपनी एक्ट के तहत क्यों रखा है ? ऐसा कौन सा व्यवसाय है, जिसे ये विभाग कंपनी एक्ट के तहत कंपनी बन कर कर रहा है ?
इसके बारे में राज्य सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर भी जानकारी मौजूद है !
केरल सरकार की वेबसाइट के अनुसार इस विभाग/कंपनी में RTI कानून के तहत सूचना अधिकारियों (PIOs) की भी नियुक्ति की गई है। यानि यह तो पक्का है कि, यह विभाग या कंपनी सरकारी ही है, निजी नहीं !
वेबसाइट के अनुसार इस विभाग योजनाएँ हैं :
मतलब कि, चाहे ज़रूरत जमीन खरीददारी की हो या फिर विदेशी रोजगार की, शादी के लिए लोन चाहिए हो या निजी लोन- हिन्दू से ईसाई बनने को प्रोत्साहित करने के लिए केरल सरकार ढेरों योजनाएँ चला रही है ! साल २०१० में SCCC श्रेणी के लोगों को ₹१५९ करोड़ की ऋण माफी भी दी गई थी ! द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार केरल के SC/ST और पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के मंत्री एके बालन ने इसकी सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी।
२०१० की इस स्कीम में हिन्दू से ईसाई बननेवालों को ३१ मार्च, २००६ की डेडलाइन के कर्ज़ों में ₹२५,००० तक का तो कृषि कर्ज पूरी तरह माफ़ कर दिया गया, और जिनका कर्ज इससे अधिक का था, उन्हें जुर्माने के तौर पर वसूली जानेवाली सूद की राशि से मुक्त कर दिया गया ! इस योजना की ‘पीठ’ एंग्लिकन चर्च ऑफ़ इंडिया के आर्चबिशप वटप्परा ने भी थपथपाई थी !
केरल में SCCC बाकायदा अलग वर्ग है
केरल में यह SCCC एक विशिष्ट वर्ग है, जिसे केरल सरकार अलग से आरक्षण देती है !
केरल के पिछड़ा वर्ग विकास आयोग की वेबसाइट के हिसाब से हिन्दू से ईसाई बनने वाले लोग पिछड़े वर्ग के भीतर ही एक अलग वर्ग हैं, जिन्हें राज्य सरकार की नौकरियों में विशेष आरक्षण प्राप्त होता है। यह एंग्लो-इंडियंस और लैटिन कैथोलिकों से अलग, और इनके अलावा एक विशेष आरक्षण है ! “हिन्दू से ईसाई बने अनुसूचित जनजाति के लोग” वर्ग को राज्य की ओबीसी सूची में भी स्थान मिला हुआ है !
कई पद केवल हिन्दू धर्म छोड़ने को प्रोत्साहित करने के लिए
एक नहीं, कई-कई पद, कई-कई बार हिन्दू से ईसाई बननेवालों के लिए केरल सरकार ने विशेष तौर पर सुरक्षित रखे हैं ! जून २०१९ में सहायक जेल अधिकारी के पद के लिए भी हिन्दू से ईसाई बने अनुसूचित जनजाति के लोगों से ही आवेदन माँगे गए थे !
इसके अलावा लेक्चरर,जल प्राधिकरण के सर्वेयर, जैसे पदों के लिए भी केवल SCCC अभ्यर्थियों से ही आवेदन माँगे गए।
कहाँ गया सेक्युलरिज़्म ?
ऐसे में यह सवाल उठता है कि, एक ‘सेक्युलर’ संविधान, उससे चलनेवाली सेक्युलर सरकार आखिर किसी एक मज़हब से दूसरे में मतांतरण के लिए प्रोत्साहित कैसे कर सकती है ? कैसे आस्था के आधार पर भेदभाव किया जा सकता है कि, इस नौकरी के लिए न केवल किसी एक मज़हब के ही लोग आवेदन करें, बल्कि, उस मज़हब के अंदर भी नए-नए आए लोग ही आवेदन करें, पुराने ईसाई नहीं ? केरल सरकार की यह नीति सेक्युलरिज़्म, अनुसूचित जनजातियों से साथ सामाजिक न्याय आदि कई सारे सिद्धांतों का उल्लंघन है !
(नूपुर शर्मा की मूलत: अंग्रेजी में प्रकाशित इस रिपोर्ट का हिंदी रूपांतरण मृणाल प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव ने किया है।)
स्त्रोत : ऑप इंडिया