रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः।।
अर्थ : राम, रामभद्र, रामचंद्र, वेधा (सृष्टिकर्ता), रघुनाथ, नाथ आदि जिनके नाम हैं, ऐसे सीतापति प्रभु श्रीराम को प्रणाम करता हूं !
अयोध्या की श्रीरामजन्मभूमि के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के ५ न्यायमूर्तियों ने ९ नवंबर को जो निर्णय दिया उसे ‘ऐतिहासिक’, ही कहना होगा ! यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय ने ‘रामलला विराजमान’ के पक्ष में देते हुए निर्माेही आखाडा और सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि, ‘प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि का विभाजन नहीं हो सकता है !’ स्कंदपुराण में रामजन्मभूमि स्थल का माहात्म्य का वर्णन करते हुए बताया गया है कि, रामजन्मस्थान के दर्शन मोक्षदायी हैं ! इसलिए प्रभु श्रीराम का जन्मस्थान रामभक्तों के लिए महत्त्वपूर्ण है और वह रामभक्तों को मिला है ! उसका यदि विभाजन करते तो वह अन्याय ही होता ! न्यायालय ने इस स्थान पर राममंदिर के निर्माण का मार्ग भी प्रशस्त किया और उसकी रूपरेखा बनाने के लिए ३ माह की समयमर्यादा भी सरकार को दी है, जो इस निर्णय की महत्त्वपूर्ण भूमिका है ! रामजन्मभूमि के लिए हिन्दुओं का संघर्ष स्वतंत्रता मिलने के पश्चात से नहीं, अपितु वर्ष १५२८ से है ! सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से अब उस संघर्ष का अंत हुआ है !
रामजन्मभूमि का विवाद, हिन्दुओं की अस्मिता का प्रश्न था ! इस जन्मभूमि के लिए इससे पूर्व ७० बार संघर्ष हुआ था। इसके लिए अनेक लोगों ने अपना बलिदान दिया। इन ७० बार किये गये संघर्षाें का इतिहास भी उपलब्ध है; परंतु इस इतिहास से यह भूमि प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि है, यह सिद्ध न कर पाने से वह न्यायालय में प्रमाण नहीं बन सका होगा ! इसीलिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय अनुसार रामजन्मभूमि को तीनों पक्षों में बांटा गया था। यह तो भगवान प्रभु श्रीराम की ही कृपा है कि, सर्वोच्च न्यायालय में इस निर्णय में सुधार हुआ !
वर्ष २०१४ में देश में नरेंद्र मोदी की सरकार आई। इस सरकार से हिन्दुओं से संबंधित कुछ सूत्रों पर निर्णय होने की आशा थी। प्रथम ५ वर्षाें में यह निर्णय न होने से हिन्दुओं में थोडी निराशा निर्माण हुई; परंतु फिर भी उसके बाद के चुनावों में जनता ने मोदी सरकार पर ही विश्वास दर्शाया और तदुपरांत एक-एक राष्ट्रहितकारी निर्णय होने लगे ! कश्मीर में ३७० धारा हटाना, यह पूर्णतः सरकार का निर्णय था और ऐसा निर्णय लेकर मोदी सरकार ने पहली जीत हासिल की ! नागरिक पंजीयन, समान नागरी कानून की दृष्टि से ली गई मौखिक तलाक रहित करने का निर्णय, ये भी कुछ प्रशंसनीय निर्णय थे; परंतु रामजन्मभूमि का प्रकरण न्यायप्रविष्ट होने से सरकार उसके संदर्भ में कुछ विशेष कर नहीं सकती थी। अब यह निर्णय राममंदिर निर्माण के लिए अनुकूल हुआ है ! इसलिए अब मोदी सरकार शीघ्रा ति शीघ्र राममंदिर का निर्माण कर दूसरी जीत हासिल कर सकती है ! इसके लिए प्रभु श्रीराम का आशीर्वाद और समस्त हिन्दुओं का समर्थन सरकार को मिलेगा !
धार्मिक समरसता !
सनातन धर्म ने विश्व को सभी क्षेत्रों में अनेक हितकारी बातें दी हैं ! उसीप्रकार जगभर में मान्यता है कि, प्रभु श्रीराम परमश्रद्धेय हैं ! प्रभु श्रीराम का चरित्र आदर्श है ! बुद्धिप्रामाण्यवादी प्रभु श्रीराम को संकुचित दृष्टि से देखते हैं और उन्हें प्रभु श्रीराम में भी त्रुटियां दिखाई देती हैं ! बुद्धि की मर्यादा भी इसका एक कारण हैं ! इंडोनेशिया, थायलैंड, मलेशिया जैसे मुस्लिम बहुसंख्यक देशों में प्रभु श्रीराम आदर और श्रद्धा स्थान पर विराजमान हैं, इन देशों के मुसलमानों का कहना है कि, हमारा धर्म इस्लाम है; परंतु हमारी संस्कृति में प्रभु श्रीराम का आदरयुक्त स्थान है ! ९० प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्यावाले इंडोनेशिया के चलन पर प्रभु श्रीराम का चित्र अंकित किया जाता है ! यहां १ मास शासन की ओर से प्रभु श्रीरामलीला प्रस्तुत की जाती है ! बौद्ध धर्मीय थायलैंड का प्रत्येक राजा स्वयं को प्रभु श्रीराम का वंशज मानता है, इसलिए उनके नाम के सामने वे ‘रामा’ लगाते हैं ! ऐसा होते हुए भी हिन्दूबहुसंख्यक भारत में प्रभु श्रीराम के जन्मस्थान के संदर्भ में विवाद निर्माण होना ठीक नहीं था ! सर्वोच्च न्यायालयद्वारा दिया गया वर्तमान का निर्णय भी भारत में सभी को मान्य होगा, ऐसा नहीं है ! ‘हम न्यायालय के निर्णय पर संतुष्ट नहीं’, ऐसी प्रतिक्रियाएं निर्णय के उपरांत व्यक्त भी हुईं ! न्यायालय के निर्णय के उपरांत सामाजिक वातावरण बिगड सकता है, यह ध्यान में रख सरकार को जो भी सुरक्षा की तैयारी करनी पडी, उसका कारण ढूंढने पर ध्यान में आएगा कि, सरकार को भी मान्य है कि, यह कभी समाप्त न होनेवाला विवाद है ! ऐसा होते हुए भी वर्तमान के इस निर्णय के कारण देश की बहुसंख्य समझदार और श्रद्धालु जनता की दृष्टि से तो रामजन्मभूमि विवाद का अंत हो गया है !
प्रमाण और कानून !
निर्णय देते समय पुरातत्व विभाग के दावों को खंडपीठ ने मान्यता दी। उत्खनन से मिले प्रमाणों के अनुसार मस्जिद खाली जगह पर बनाई थी, परंतु मस्जिद के निचे की संरचना इस्लामी नहीं थी ! इसके साथ ही पुरातत्व विभाग यह सिद्ध नहीं कर पाया कि, मंदिर उद्ध्वस्त कर मस्जिद बनाई गई थी ! ये निरिक्षण वास्तविक हैं, परंतु संभ्रम में डालनेवाले हैं ! न्यायालय में तर्क नहीं, अपितु प्रत्यक्ष प्रमाण लगता है, इसीलिए ऐसे निरिक्षण आते हैं ! मस्जिद की रचना इस्लामी नहीं थी, उत्खनन में हिन्दू संस्कृति के अनुसार अवशेष मिले, फिर भी मंदिर उद्ध्वस्त कर मस्जिद बनाई गई थी, यह अपने कानून के अनुसार न्यायालय में प्रमाणित नहीं हो सकता !
प्रभु श्रीरामचंद्र की विजय !
वर्ष १५२८ से वर्ष १९४९ तक रामजन्मभूमि के लिए अनेक बार संघर्ष हुआ। वर्ष १९४९ में एक सुरक्षारक्षक को आकाश से एक दिव्य प्रकाश, अब जहां ‘रामलला विराजमान’ हैं, वहां जाता हुआ दिखाई दिया और वहीं से ‘रामलला’ प्रकट हुए ! यह भले ही चमत्कारिक लग रहा हो परंतु असत्य है, ऐसा कोई भी सिद्ध नहीं कर सका है !
तब से श्रद्धालुओं ने ‘रामलला विराजमान’की पूजाअचर्ना आरंभ कर दी। वर्ष १९८९ में ‘रामलला विराजमान’ को वादी बनाकर जन्मभूमि के लिए न्यायालय में वाद प्रविष्ट किया गया। सर्वोच्च न्यायालय में प्रविष्ट हुई याचिका में भी ‘रामलला विराजमान’ वादी थे और सर्वोच्च न्यायालय ने अन्य पक्षकारों के दावे खारिज कर उन्हें ही भूमि दी है ! ऐसा कहना पड़ेगा कि, स्वयं प्रभु श्रीराम को ही अपनी जन्मभूमि पाने के लिए रामलला के माध्यम से प्रकट होना पडा !
यह किसी समाज की नहीं, अपितु अंतिमतः सत्यवचनी प्रभु श्रीराम की ही विजय हुई ! ‘रामो राजमणिः सदा विजयते।’ अर्थात राजाओं के राजा शिरोमणी प्रभु श्रीराम सदा विजयी होते हैं, यही सत्य है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात