नई दिल्ली – सबरीमाला केस में पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केस सात जजों की बेंच के पास भेज दिया है। बेंच ने यह फैसला 3:2 से किया। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि अंतिम फैसले तक उसका पिछला आदेश बरकरार रहेगा। अदालत ने 28 सितंबर 2018 को 4:1 के बहुमत से मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी दी थी। फैसले पर 56 पुनर्विचार समेत 65 याचिकाएं दायर की गई थीं। इन पर 6 फरवरी को अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पुनर्विचार याचिकाएं चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली 5 जजों की बेंच में दायर की गई थीं। चीफ जस्टिस, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस एएम खानविलकर ने केस बड़ी बेंच को भेजने का फैसला दिया। जस्टिस फली नरीमन और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इसके खिलाफ फैसला दिया।
‘याचिका दायर करने वाले का मकसद धर्म और आस्था पर वाद-विवाद शुरू कराना’
पुनर्विचार याचिकाओं पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा- यह याचिका दायर करने वाले का मकसद धर्म और आस्था पर वाद-विवाद शुरू कराना है। महिलाओं के धार्मिक स्थलों में प्रवेश पर लगा प्रतिबंध सिर्फ सबरीमाला तक सीमित नहीं, यह दूसरे धर्मों में भी प्रचलित है। सुप्रीम कोर्ट को सबरीमाला जैसे धार्मिक स्थलों के लिए एक सार्वजनिक नीति बनानी चाहिए। सबरीमाला, मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश और फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन से जुड़े धार्मिक मुद्दों पर बड़ी बेंच फैसला करेगी।
बेंच की इकलौती महिला जज ने कहा था – धार्मिक मुद्दों को नहीं छेड़ना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी देते हुए कहा था- दशकों पुरानी हिंदू धार्मिक प्रथा गैरकानूनी और असंवैधानिक थी।
जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा था- धर्मनिरपेक्षता का माहौल कायम रखने के लिए कोर्ट को धार्मिक अर्थों से जुड़े मुद्दों को नहीं छेड़ना चाहिए।
जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था- शारीरिक वजहों से मंदिर आने से रोकना रिवाज का जरूरी हिस्सा नहीं। ये पुरूष प्रधान सोच दर्शाता है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था- महिला को माहवारी के आधार पर प्रतिबंधित करना असंवैधानिक है। यह मानवता के खिलाफ है।
स्त्रोत : दैनिक भास्कर