वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने यह आवाहन किया है कि, निर्भया के साथ अमानुषिक बलात्कार करनेवाले सभी दोषियों को उसकी मां द्वारा क्षमी की जाए और उनके लिए मृत्युदंड की शिक्षा की मांग न की जाए । इस प्रकरण में दोषियों को दंडि मिलने हेतु लंबी न्यायालयीन लडाई लडी गई । अब जब इस दंड का समय निकट आया है, तभी अधिवक्ता जयसिंह को यह बुद्धिमानी कैसे सुझी ? इसके लिए हमें अधिवक्ता जयसिंह की पृष्ठभूमि का अध्ययन करना पडेगा । वे वामपंथी विचारधारावाली हैं । अधिवक्ता जयसिंह और उनके पति आनंद ग्रोवर ने लॉयर्स कलेक्टिव नाम का अधिवक्ताओं का संगठन बनाया है । यह संगठना (कु) प्रसिद्ध है अलग कारणों के लिए ! इस संगठन ने सोहराबुद्दीन झडप झूठी होने की बात करते हुए सोहराबुद्दीन को न्याय (?) दिलाने हेतु अभियोग लडा, कथित मानवाधिकारी कार्यकर्त्री तिस्ता सेटलवाड, साथ ही इस संगठन ने कोरेगांव-भीमा प्रकरण में बंदी बनाए गए शहरी नक्सलियों का भी पक्ष लिया । केवल इतना ही नहीं, अपितु मुंबई के बमविस्फोट के प्रकरण में आतंकी याकूब मेमन को फांसी न हो; इसके लिए मध्यरात्रि को जिन महान अधिवक्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था; उनमें से एक अधिवक्ता ग्रोवर थे । विदेशों से चंदा लेने के प्रकरण में भाजपा सरकार ने इस संगठनपर प्रतिबंध लगाया था । अधिवक्ता जयसिंह विदेशों से मिलनेवाली धनराशि का विनियोग कैसे हो रहा था, यह बताने के लिए तैय्यार नहीं हैं । इस पृष्ठभूमि को समझकर लिया, तो अधिवक्ता जयसिंह की मानसिकता हमारे ध्यान में आएगी । आतंकी, शहरी नक्सली, कुख्यात गुंडें और देशद्रोहियों के मानवाधिकारों के प्रति अधिवक्ता जयसिंह जागरूक हैं; परंतु उसके लिए कार्य करते समय पीडित लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है, उसका क्या होगा ?
क्षमा अथवा दंड ?
व्यक्तिगत अथवा सामाजिक स्तरपर किसी अपराध के लिए दंड भुगतने का व्यक्ति का मन नहीं होता । बचपन में भी चूक होनेपर अनुशासनप्रिय और कठोर पिता का सामना करने के स्थानपर अपनी चूक को छिपानेवाली अपनी मां उसे निकट की लगती है । भले ही ऐसा हो; परंतु उचित संस्कार मिलने हेतु तथा सदाचारी व्यक्ति बनने हेतु दंड का भय आवश्यक ही होता है । एक प्रचलित कहावत है, ‘विश्व दंडपर चलता है’। सामाजिक स्तरपर दंडनीति को अपनाने से समाज बिखर नहीं जाता । अतः किसी समूह अथवा व्यक्ति कोई चूक अथवा अपराध करता है, तो उसकी तीव्रता के अनुसार उसे दंड मिलना ही चाहिए । ऐसा नहीं किया, तो अपराधी उद्दंड होकर अधिकाधिक अपराध करने का साहस दिखाता है और उससे समाज की शांति, सुरक्षितता और अखंडता संकट में आती है ।
अधिवक्ता जयसिंह एक अलग ही विश्व में विहार करती हुई दिखाई देती हैं । जिस प्रकार सोनिया गांधी ने उनके पति राजीव गांधी के हत्यारों को क्षमा की, उसी प्रकार निर्भया की मां को दोषियें को क्षमा करनी चाहिए, ऐसा उनका मानना है । हमें यह सिखाया जाता है कि दंड देनेवाले की अपेक्षा क्षमा देनेवाला बडा है जिसने हमारे साथ अन्याय अथवा अत्याचार किया, उसका प्रतिशोध लेना, तो नैसर्गिक भावना है । ऐसा होते हुए भी प्रतिशोध लेनेवाले की अपेक्षा क्षमा करनेवाला अधिक श्रेष्ठ है, यह हमारे मनपर अंकित किया जाता है । उसके लिए मोहनदास गांधी का आदर्श हमारे सामने रखा जाता है; परंतु उनके द्वारा अन्याय करनेवालों के साथ दिखाई गई करुणा क्षमाशीलता थी अथवा सद्गुणों में विद्यामान विकृति ?, इसपर चिंतन करने के लिए कोई तैय्यार नहीं है । क्षमाशीलता निश्चितरूप से एक गुण है; परंतु जिसे क्षमा करनी है, वह व्यक्ति उसके लिए पात्र होना चाहिए । क्या निर्भया के साथ नृशंस अत्याचार करनेवाले क्षमा के पात्र हैं ? सोनिया गांधी ने अपने पति राजीव गांधी के हत्यारों को क्षमा कर बडा पाप ही किया है; क्योंकि राजीव गांधी केवल उनके पति नहीं थे, अपितु वे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री थे । सोनिया गांधी के इस निर्णय के कारण विश्वभर में भारत के प्रति भारत में आतंकी गतिविधियां करनेपर फांसीपर लटकाया नहीं जाता, यह संदेश जाकर विश्वभर में ऐसे संदर्भ में भारत बहुत सहनशील है, यह प्रतिमा बन गई । इसके लिए कौन उत्तरदायी है ?
हिन्दुत्वनिष्ठों के प्रति द्वेष क्यों ?
अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह सोनिया गांधी की निकटवर्ती मानी जाती हैं । उनके कारण ही संयुक्त मोर्चा के सरकार के कार्यकाल में इंदिरा जयसिंह को देश के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल का पद प्रदान किया गया था । अधिवक्ता जयसिंह को सोनिया गांधी को क्षमाशीलता की मूर्तिके रूप में प्रस्तुत करने की जो जल्दी है, वह इसी कारण से है ! यहां प्रश्न यह है कि राजीव गांधी के हत्यारों को क्षमा कर क्षमाशीलता का दर्शन करानेवाली सोनिया गांधी जिन्हें अपराधी कहती हैं, उन नथुराम गोडसे को क्षमा क्यों नहीं करती ? गोडसे को फांसी देकर अनेक वर्ष बीत गए; परंतु उसके पश्चात भी कांग्रेसवालों का गोडसेद्वेष अल्प क्यों नहीं होता ? हिन्दुत्वनिष्ठ आतंकवादी तो नहीं ही हैं; परंतु यदि कांग्रेसियों के अनुसार यदि वो आतंकी हैं, तो उन्हें क्षमा करने का बडप्पन सोनिया गांधी और उनके समर्थक क्यों नहीं दिखाते ? कांग्रेसवालों से उठते-बैठते हिन्दुत्वनिष्ठों को नीचा दिखाने का जो घिनौना प्रयास चल रहा है, वह अल्प क्यों नहीं हो रहा ? क्षमाशीलता यदि वृत्ति है, तो वह सभी व्यक्तियों के प्रति दिखनी चाहिए; परंतु सोनिया गांधी के संदर्भ में ऐसा नहीं दिखाई देता । अतः अपनी प्रतिमा ऊंची करने हेतु उन्होंने राजीव गांधी के हत्यारों को क्षमा करने का नाटक किया, ऐसा कहने का अवसर बनता है ।
आजकल सामाजिक शांति प्रस्थापित करने के संदर्भ में बहुत कुछ बोला जाता है; परंतु वास्तव में सामाजिक शांति स्थापित करनी हो; तो उससे पहले अधिवक्ता जयसिंह जैसे घातक शांतिदूतों को सही मार्गपर लाना होगा !