नई दिल्ली – नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के मुद्दे पर अपने सदस्यों द्वारा बहस और फिर मतदान की प्रक्रिया पर यूरोपियन यूनियन (European Parliament) की संसद ने खुद को अलग कर लिया है। EU प्रवक्ता ने कहा कि यूरोपीय संसद और उसके सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई राय ‘यूरोपीय संघ की आधिकारिक स्थिति नहीं हैं।’ अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार फ्रांसीसी राजनयिक सूत्रों ने कहा कि फ्रांस नए नागरिकता कानून को ‘भारत का आंतरिक राजनीतिक मामला’ मानता है और यूरोपीय संसद एक संस्था है जो ‘सदस्य राज्यों से स्वतंत्र’ है।
रिपोर्ट के अनुसार एक ईमेल के जवाब में, विदेश मामलों और सुरक्षा नीति के लिए यूरोपीय संघ की प्रवक्ता वर्जिनी बट्टू-हेनरिकसन ने कहा- ‘यूरोपीय संसद वर्तमान में भारत सरकार द्वारा अपनाए गए कानून पर एक बहस आयोजित करने की योजना बना रही है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय वर्तमान में इस कानून की संवैधानिकता का आकलन कर रहा है। एक प्रक्रियाृ के अनुसार, यूरोपीय संसद ने ड्राफ्ट को प्रकाशित किया। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि ये केवल यूरोपीय संसद में विभिन्न राजनीतिक समूहों द्वारा बनाए गए ड्राफ्ट हैं।’
उन्होंने कहा है, ‘मैं आपको यह भी याद दिलाती हूं कि यूरोपीय संसद और उसके सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई राय यूरोपीय संघ की आधिकारिक स्थिति का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं। ईयू भारत के साथ अपने रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के उद्देश्य से ब्रसेल्स में 13 मार्च 2020 को भारत के साथ 15वें शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा। भारत यूरोपीय संघ के लिए वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने और बहुपक्षीय व्यवस्था के नियमों को संयुक्त रूप से बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार है।’
क्या है EU के प्रस्ताव में ?
बता दें कि ईयू संसद सीएए के खिलाफ कुछ सदस्यों द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव पर बहस और मतदान करेगी। संसद में इस सप्ताह की शुरुआत में यूरोपियन यूनाइटेड लेफ्ट/नॉर्डिक ग्रीन लेफ्ट (जीयूई/एनजीएल) समूह ने प्रस्ताव पेश किया था जिस पर बुधवार को बहस होगी और इसके एक दिन बाद मतदान होगा।
प्रस्ताव में कहा गया है, ‘सीएए भारत में नागरिकता तय करने के तरीके में खतरनाक बदलाव करेगा। इससे नागरिकता विहीन लोगों के संबंध में बड़ा संकट विश्व में पैदा हो सकता है और यह बड़ी मानव पीड़ा का कारण बन सकता है।’
सीएए भारत में पिछले साल दिसंबर में लागू किया गया था जिसे लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। भारत सरकार का कहना है कि नया कानून किसी की नागरिकता नहीं छीनता है बल्कि इसे पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों की रक्षा करने और उन्हें नागरिकता देने के लिए लाया गया है