Menu Close

पुरातत्व विभाग में कार्यरत ‘औरंगजेब’ ?

पुरातत्व विभाग देहली में स्थित औरंगजेब के शीश महल का २.५ करोड रुपए खर्च कर नवीनीकरण करनेवाला है । इसी महल में औरंगजेब को सिंहासनपर बिठाकर बादशहा घोषित किया गया था । पुरातत्व विभाग ने बताया कि पहली बार ही किसी प्राचीन स्मारक (?) का बडे स्तरपर नवीनीकरण किया जा रहा है । पुरातत्व विभाग के इस निर्णय और स्पष्टीकरण के संदर्भ में किसी भारतीय को ‘हंसे अथवा रोएं ?’, ऐसा लगा, तो उसमें आश्‍चर्य कैसा ? पुरातत्व विभाग निश्‍चितरूप से क्या काम करता है ? अथवा पुरातत्व विभाग का क्या कार्य है ?, ऐसे प्रश्‍न जागरूक भारतीयों के मन में आते हैं । किसी भुवन के संबंध में कोई घटना होनेपर अथवा किसी प्राचीन मंदिर के नवीनीकरण का प्रश्‍न आनेपर ही लोगों को इस विभाग का स्मरण होता है । अन्य समयपर पुरातत्व विभाग का कोई आता-पता ही नहीं होता । पुरातत्व विभाग द्वारा कोई बडा काम हो, ऐसी अपेक्षा होते हुए भी पुरातत्व विभाग को अकस्मात् ही क्रूरकर्मी औरंगजेब इतना प्रिय कैसे लगने लगा ?, यह न सुलझनेवाली पहेली है । नई देहली में औरंगजेब के नाम की सडक का नाम बदल दिया गया और महाराष्ट्र में उसके नाम से प्रचलित एक जनपद का नाम बदलने की चर्चा हो रही है । इससे पुरातत्व विभाग ने भारतभर के हिन्दुओं के साथ अत्याचार करने में कोई कसर न छोडनेवाले औरंगजेब की भारत से संबंधित स्मृतियां मिटाने की प्रयासों में बाधाएं उत्पन्न की है, ऐसा ही कहना पडेगा ।

भुवनों के संवर्धन की उपेक्षा

कुछ वर्ष पूर्व महाराष्ट्र में शिवसैनिकों ने रायगढपर शिवजयंती मनाने की योजना बनाई थी । तब राज्य में कांग्रेस का शासन था । तब पुरातत्व विभाग ने रायगढपर शिवजयंती मनाना संभव न हो; इसके लिए विविध नियमों की ढाल बनाकर इस योजना को तोड डाला । तब शिवसेनाप्रमुख स्व. बाळासाहेब ठाकरेजी ने शिवसैनिकों को पुरातत्व विभाग को रायगढ की तलहटीपर दफन कर शिवजयंती मनाने का आदेश दिया और उसके कारण रायगढपर बडे धूमधाम के साथ शिवजयंती का उत्सव मनाया जा सकता । आज छत्रपति शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज्य के साक्षी अनेक भुवनों की उपेक्षा की जाने से उनके केवल अवशेष ही बचे हैं । कुछ भुवन गिर गए हैं, तो कुछ गिर रहे हैं । इन भुवनों की स्थिति ‘जैसे थे’ ही है । हाल ही के कुछ वर्षों में हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी रायगढ के संवर्धन काम आरंभ हुआ है । तबतक यह भुवन भी उपेक्षित ही था । अनेक भुवनोंपर पराक्रमी इतिहास की जानकारी देनेवाली व्यवस्था नहीं है । इसलिए लोग इन भुवनोंपर समय बिताने अथवा मौजमस्ती करने आते हैं और उससे भुवन के परिसर में कचरा और प्लास्टिक की बोतलें फेंककर भुवन की पवित्रता भंग करते हैं ।

मंदिरों के वैभव की उपेक्षा !

औरंगजेब और अन्य मुघल आक्रांताओं ने भारत के सहस्रों मंदिरों को गिराकर वहांपर मस्जिदें बनाईं । इन मंदिरों में से कुछ मंदिर प्राचीन हैं । पुरातत्व विभाग को ‘इन मंदिरों के संदर्भ में शोधकार्य कर वास्तविक इतिहास जनता के सामने लाना चाहिए’, ऐसा क्यों नहीं लगता ? ओडिशा सरकार ने सडक चौडाईकरण के नामपर प्राचीन मंदिरों को गिराने की योजना बनाई है । इस कार्रवाई के अंतर्गत अनेक मंदिरों को तोडा जा रहा है । उनमें से एक छोटे श्री गणेश मंदिर तो कुछ शतक पूर्व बनाया गया मंदिर है । उसके बाजू से भी सडक निकाली जा सकती है; परंतु सडक को और चौडा बनाने हेतु इस मंदिर को गिराया जा रहा है । ‘ओडिशा के ये प्राचीन मंदिर हमारी सांस्कृतिक धरोहर है, हिन्दू संस्कृति की विरासत और इतिहास है । हिन्दुओं के मन में यह प्रश्‍न आता है कि पुरातत्व विभाग इसके संदर्भ में कुछ भी क्यों नहीं करता ? कोल्हापुर की श्री महालक्ष्मीदेवी की मूर्ति की कुछ मात्रा में घिसन होनेपर हिन्दुत्वनिष्ठ एवं धर्म अधिकारियों के विरोध की अनदेखी कर मूर्तिपर रासायनिक लेपन करने की प्रक्रिया इसी पुरातत्व विभाग ने की । इसका ध्वनिचित्रीकरण भी किया गया । ‘यह ध्वनिचित्रीकरण, तो एक बम ही है’, ऐसा तात्कालीन जिलाधिकारी ने बताया था । श्री महालक्ष्मी मंदिर की बाजू में ही मनकर्णिका कुण्ड है । इस कुण्ड को ढंककर उसपर शौचालय बनाया गया था । यह कुण्ड भक्तों के दर्शन के लिए खोलने हेतु और उसकी सुशोभीकरण करने हेतु पुरातत्व विभाग ने प्रधानता नहीं ली । तब कुछ स्थानीय लोगों ने ही जाकर शौचालय को गिरा दिया, तो अब जाकर कहीं मनकर्णिका कुंड के सुधार का काम आरंभ किया जानेवाला है । जो अपने विभाग के स्वामित्व का क्षेत्र नहीं है, वहां जाकर गडबही करना और जो करना आवश्यक है, उसे नहीं करना; क्या यही पुरातत्व विभाग की कार्यपद्धति है ?

ताजमहल का विषय बहुत चर्चा में है । महाराष्ट्र के ऋषितुल्य पु.ना. ओक ने अनेक प्रमाणों के आधारपर ताजमहल एक शिवमंदिर होने की बात स्पष्ट की है । इस संदर्भ में सामाजिक प्रसारमाध्यमोंपर ऐतिहासिक संदर्भ भी उपलब्ध हैं । पुरातत्व विभाग इस संदर्भ में निष्पक्ष शोधकार्य कर लोगों के सामने सच्चाई क्यों नहीं लाता ? बाबरी ढांचे की खुदाई में पुरातत्व विभाग के निर्देशक के.के. मोहम्मद को वहां कुछ अवशेष मिले । उन्होंने उन अवशेषों के मंदिरों से संबंधित होने के और उनका मुसलमानों से संबंधित किसी भी बात से मेल न होने के संदर्भ में स्पष्टता से बता दिया । एक मुसलमान होते हुए भी के.के. मोहम्मद खुदाई की सच्चाई बता सकते हैं, तो पुरातत्व विभाग के हिन्दू अधिकारी हिन्दुओं के सहस्रों मंदिरों के संदर्भ में क्यों नहीं बताते ? भारत को लाखों वर्षों की सांस्कृतिक, स्थापत्य, कला इत्यादि की गौरवशाली विरासत प्राप्त है । मुघल आक्रांताओं, ब्रिटीश कार्यकाल और काल के प्रवाह के कारण कुछ प्रतीक मिट गए हैं, अपितु आज भी उनके अवशेष बचे हैं । अतः इस संदर्भ में पुरातत्व विभाग का दायित्व हिमालय के समान विशाल है । देशवासियों में यह भावना है कि पुरातत्व विभाग द्वारा इस दायित्व का निर्वहन नहीं किया जाता । यह विभाग यदि इतनी अकार्यक्षमता से ग्रस्त है, तो उसकी स्वच्छता कर उसमें राष्ट्र और संस्कृतिप्रेमियों को स्थान देकर पुरातत्व विभाग को एक नई चमक दी जाए, यह राष्ट्रप्रेमियों की इच्छा है !

Related News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *