आधुनिक विज्ञान के साथ-साथ प्राचीन धर्मग्रंथों का अध्ययन करना भी आवश्यक ! – डॉ. विजय जंगम (स्वामी), संस्थापक-संचालक, ब्रह्मांड वेदिक इन्स्टिट्यूट ऑफ साईन्स
मुंबई : हमारे प्राचीन ग्रंथों में दिए गए मार्गदर्शक तत्त्व आज के विज्ञानयुग में भी अचूकता से लागू होते हैं । उनके व्यापक अध्ययन के लिए ऐसे पाठ्यक्रमों की आवश्यकता है । भारतीय प्राचीन विज्ञान सदासर्वकाल श्रेष्ठ ही है, यही इससे प्रमाणित होता है । इसके लिए ही आधुनिक विज्ञान के साथ-साथ प्राचीन धर्मग्रंथों का अध्ययन करना भी उतना ही आवश्यक है । डॉ. विजय जंगम ने ऐसा प्रतिपादित किया ।
फलज्योतिष एवं वास्तुशास्त्र इन विषयों का पाठ्यक्रम सफलतापूर्वक पूर्ण कर परीक्षा में उत्तीर्ण सभी छात्रों को ब्रह्मांड वेदिक इन्स्टिट्यूट ऑफ साईन्स संस्था की ओर से सम्मानित किया गया । इस अवसरपर छात्रों को ज्योतिर्विद्यालंकार, ज्योतिष विशारद और वास्तुविशारद इन उपाधियों से सम्मानित किया गया । दादर के नवनीत सभागृह में १६ फरवरी को यह कार्यक्रम संपन्न हुआ । इस अवसरपर हिन्दू जनजागृति समिति के प्रवक्ता वैद्य उदय धुरी और समिति के मुंबई समन्वयक श्री. बळवंत पाठक प्रमुख अतिथि के रूप में उपस्थित थे ।
ज्योतिषशास्त्र को साधना से जोडना चाहिए ! – वैद्य उदय धुरी, प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति
ज्योतिषशास्त्र के संवर्धन हेतु महर्षि अध्यात्म विश्वविद्याल की ओर से परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में शोधकार्य चल रहा है । इस शोधकार्य की विशेषता यह है कि यह शोधकार्य आध्यात्मिक विषयोंपर हो रहा है । इस कार्य में सर्वत्र के ज्योतिषाचार्य सहयोग दे सकते हैं । ज्योतिषियों को साधना करना आवश्यक है । इसके कारण ज्योतिषशास्त्र को वेदांग ज्योतिष भी कहा जाता है । इसके लिए ही ज्योतिषशास्त्र को साधना से जोड देना चाहिए । ऐसा किया गया, तो ज्योतिषी उत्तम फलादेश कथन कर सकते हैं ।