भुवनेश्वर (ओडिशा) : इंडियन नैशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एन्ड कल्चरल हेरिटेज’ (इंटैक) की ओर से १४ फरवरी को आयोजित किए गए वार्षिक राज्य संयोजक परिषद में विविध संयोजकों ने ओडिशा राज्य के मंदिरों में बडी संख्या में प्राचीन मूर्तियों की होनेवाली चोरी की गंभीर घटनाओंपर चिंता व्यक्त की ।
१. हाल ही में प्राची घाटी का ब्यौरा देनेवाली श्री. अनिल धीर के मतानुसार उनके सर्वेक्षण में विविध स्थानोंपर ३०० से भी अधिक मूल्यवान मूर्तियों के गायब होने की घटनाएं सामने आई हैं । विगत दशक में प्राची घाटी के पुलिस थानों में मूर्तिचोरी के लगभग ४८ अपराध प्रविष्ट किए गए । उनमें से केवल एक ही मूर्ति मिल पाई । विगत दशक में मौल्यवान जैन एवं बौद्ध मूर्तियों की चोरी हुई हैं ।
२. श्री. धीर ने कहा कि मूर्तियों के अवैध व्यापार को रोकने हेतु अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधारपर उचित पद्धतियां अपनाई जानी चाहिएं । धातु की मूर्तियों के संदर्भ में ऐसी मूर्तियां स्वामित्व के प्रमाण के रूप में लेसरचिन्हित होनी चाहिएं । चोरी होनेपर प्रमाण के रूप में उनका उपयोग होगा । पत्थर की मूर्तियोंपर धातुपर मंदिर का नाम और उस स्थान का काम कलाकारी कर लिखा होना चाहिए । ऐसे कई उदाहरण मिले हैं, जिन में चोरी की गई मूर्तियों के मिल जानेपर भी उन्हें उनके मूल स्थानपर भेजना संभव नहीं हुआ है और ऐसी मूर्तियां पुलिस थानों और पुरातत्व विभाग की गोदाओं में धूल खाते हुए पडी हुई हैं ।
३. धीर ने कहा कि अवैध मूर्तियों के निर्यात के लिए ओडिशा एक बडा केंद्र बन गया है; क्योंकि कंटेनर शिपमेंट में चोरी की गई वस्तुएं और मूर्तियों को इन नई मूर्तियों के साथ भेजकर उनकी तस्करी करना सरल हो रहा है । क्या सभी मूर्तियों की निर्यात के लिए सक्षम अधिकारियों द्वारा सहमति प्रमाणपत्र मिला है न ?, इसकी अधिकारियों को आश्वस्तता करनी चाहिए ।
४. इंटैक के राज्य संयोजक तथा ओडिशा के पूर्व पुलिस महानिदेशक अमिया भूषण त्रिपाठी ने यह कहते हुए दुख व्यक्त किया कि ओडिशा राज्य के लगभग २२ सहस्र प्राचीन धार्मिक स्थलों में पत्थर और धातु की मूर्तियों की किसी प्रकार की संगणकीय प्रविष्टि नहीं की गई हैं । इन मंदिरों की ९५ प्रतिशत से भी अधिक प्राचीन मूर्तियां वैधानिक दृष्टि से संज्ञानित न होने के कारण स्मारक और प्राचीन वस्तुओं का राष्ट्रीय अभियान अधूरा रह गया है ।
स्त्रोत : उडिशा डायरी