हाल ही में हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी का नेपाल संपर्क अभियान संपन्न हुआ । उन्होंने नेपाल के २० स्थानोंपर हिन्दुत्वनिष्ठों से भेंट की । इस अभियान में हिन्दुत्वनिष्ठों के साथ ३ बैठकों का भी आयोजन किया गया, साथ ही उन्होंने २ स्थानोंपर मार्गदर्शन भी किया । इसके साथ ही ३ समाचारवाहिनियों ने सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी के साथ भेंटवार्ताएं कर उन्हें राष्ट्र, धर्म, साधना और हिन्दू जनजागृति समिति के कार्य के संदर्भ में प्रश्न भी पूछे । इससे पहले हमने उनकी इस यात्रा से संबंधित कुछ गतिविधियों के संदर्भ में कुछ समाचार प्रकाशित किए थे, आज हम उनके इस संपर्क अभियान से संबंधित अन्य कुछ समाचार देखेंगे ।
स्वार्थ एवं आर्थिक लाभ हेतु हिन्दू धर्मांतरण कर रहे हैं ! – संतोष शहा, संस्थापक, इमर्जिंग लीडर्स एकॅदमी
काठमांडू (नेपाल) : १५ फरवरी को सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने ‘इमर्जिंग लीडर्स एकॅडमी’ के संस्थापक श्री. संतोष शहा से भेंट की । इस समय श्री. शहा ने कहा कि जब से नेपाल की राजसंस्था नष्ट हुई है, तब से ईसाईयों द्वारा हिन्दुओं के धर्मांतरण की घटनाएं बढ रही हैं । यहां केवल सामान्य लोग ही नहीं, अपितु राजनेता भी धर्मांतरित हो चुके हैं । श्रीलंका में बमविस्फोट होनेपर विश्व के सभी ईसाई राष्ट्र उनके लिए दौडे चले आए । नेपाल में केवल स्वार्थ और आर्थिक लाभ के लिए हिन्दू धर्मांतरित हो रहे हैं । इस अवसरपर सद्गुरु (डॉ.) पिंगळेजी ने श्री. संतोष शहा को नवम् अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का निमंत्रण दिया ।
नेपाल का हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन ‘विश्व हिन्दू महासंघ, नेपाल’ के कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन
पोखरा (नेपाल) : ‘विश्व हिन्दू महासंघ, नेपाल’, जनपद कासकी के कार्यकर्ता एवं पदाधिकारियों के लिए १७ फरवरी को सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी का मार्गदर्शन हुआ । इसमें उन्होंने कहा,
१. केवल मनुष्य ही नहीं, अपितु जो समस्त प्राणिमात्रों को शांति प्रदान कर सकता है, ऐसे हमारे धर्म को बाजू में रखकर आज धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था का स्वीकार किया गया है । केवल धर्म में ही सबको साथ लेकर चलने की क्षमता है । आज की शिक्षाप्रणाली केवल जीविका चलाने की शिक्षा देती है । यह व्यवस्था बच्चों में स्पर्धा, ईर्ष्या, अपेक्षा, विद्वेष और अहं की ओर ले जाती है । इसके कारण ही आज शिक्षित वर्ग में सर्वाधिक विवाहविच्छेद हो रहे हैं ।
२. राष्ट्र में सुख, शांति और आनंद उत्पन्न करने से पहले उन्हें पहले स्वयं में अंतर्भूत करना आवश्यक है और उसके लिए धर्माचरण और साधना करना आवश्यक है ।
३. धर्माचरण के संदर्भ में उन्होंने बताया कि हल्दी को चूने के पानी में मिलाने से कुमकुम बनता है । हल्दी की उपज भूमि में होती है, अतः उसमें पृथ्वीतत्त्व अधिक होता है । मनुष्य का शरीर पृथ्वीतत्त्व से बना है । इसलिए कुमकुम लगाने से हममें विद्यमान पृथ्वीतत्त्व के इर्द-गिर्द सुरक्षाकवच बनता है । हिन्दुओं को अपने शास्त्र, संस्कार और धर्मपरंपराओं की रक्षा करनी चाहिए । पाश्चात्त्य पद्धति के अनुसार जन्मदिवस के दिन केकपर नाम लिखकर उसे काटा जाता है, जिससे तंत्रविद्या के अनुसार गंभीर परिणाम होते हैं ।
मार्गदर्शन के आरंभ में विश्व हिन्दू महासंघ, नेपाल के श्री. शंकर खराल ने उपस्थित जिज्ञासुओं को सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी का परिचय करवाया । कासकी जनपदाध्यक्ष पर्वती पौडेल ने सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी का स्वागत किया । इस कार्यक्रम में ब्राह्मण समाज नेपाल के केंद्रीय उपाध्यक्ष श्री. पृथ्वी पौडेल उपस्थित थे ।
धर्म का मूलभूत तत्त्व समझकर लेना होगा ! – सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी
सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी (बाईं ओर) से चर्चा करते हुए पत्रकार परशुराम काफळे
काठमांडू : दैनिक ‘नेपाल पत्रिका’ के पत्रकार श्री. परशुराम काफळे ने स्वयंस्फूर्ति से सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी से मिलने की इच्छा व्यक्त की । इस भेंट में सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने कहा कि स्वयं में सनातन धर्म को समझकर लेने की क्षमता उत्पन्न होनी चाहिए । इस संदर्भ में उन्होंने सनातन संस्था द्वारा प्रकाशित शिवजी के चित्र का उदाहरण दिया । उन्होंने कहा, ‘शिवजी के चित्र में पहले उनके दाहिने कंधेपर नाग था; परंतु कुछ वर्ष पश्चात जब इस चित्र का पुनर्प्रकाशन हुआ, तब नाग उनके दाहिने कंधेपर था और जब इस चित्र का तिसरी बार पुनर्प्रकाशन हुआ, तब नाग शिवजी के मस्तकपर था ।
इस चित्र में हुए बदलावों का शास्त्र विशद करते हुए उन्होंने कहा कि साधना से साधक की पहले सूर्यनाडी शुद्ध होती है और आगे जाकर उन्नति होनेपर चंद्र नाडी शुद्ध होने लगती है । कुंडलिनी मूलाधार चक्र से जागृत होना आरंभ होनेपर वह सहस्रारचक्रतक पहुंचती है । चित्त की जितनी शुद्धि होती है, उस स्तर की अनुभूति होती है । त्रिकालज्ञानी बन जानेपर संतों को पूर्ण चक्र का ज्ञान होता है ।
सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने सनातन धर्म की विशेषता बताते हुए कहा कि मनुष्य का एक वर्ष पूर्वजों का एक दिन होता है; क्योंकि उच्चलोक में गति न्यून होती है । आज विज्ञान भी यही बताता है कि अंतरिक्ष में हम जैसे-जैसे उपर जाते हैं, वैसे-वैसे हमारी गति न्यून हो जाती है । संप्रदाय के तत्त्व सर्वत्र नहीं चलते; इसलिए हमें धर्म का मूलभूत तत्त्व को समझना होगा । समाज में शुद्ध शास्त्रों का प्रसार करने की आवश्यकता है । सनातन धर्म में दृष्टि देनेवाला कोई तो है और वही ईश्वर हैं ! मूर्ति हमारी रक्षा नहीं करती, तो मूर्ति में विद्यमान तत्त्व की भक्ति करने से वह तत्त्व हमारी रक्षा करता है ।
आज के युवकों में ज्ञान के अभाव के कारण आत्मबल नहीं है – सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी
हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी का नेपाल में संपर्क अभियान
चितवन (नेपाल) : यहां के कुछ हिन्दुत्वनिष्ठों ने सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी से भेंट की । तब एक बौद्ध लामा ने बताया कि मूलतः बौद्ध और हिन्दू एकत्रित थे । बौद्ध पंथ के हीनयान, महायान और वज्रयान इन उपपंथों के संदर्भ में बताते समय उन्होंने बौद्ध हिन्दुओं से कैसे अलग हैं, यह प्रामणित किया गया । उनमें विवाद उत्पन्न हो; इसके लिए मूल प्राचीन बौद्ध ग्रंथों में किस प्रकार से बदलाव कर उन्हें प्रकाशित किया जा रहा है, इसके कुछ उदाहरण दिखाकर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र चलाया जा रहा है, उसके संदर्भ में बताया । इस समय बौद्ध लामा ने यह बताते हुए चिंता व्यक्त की कि हिन्दू धर्म का विरोध करनेवाले लोग नेपाल में अपने पैर फैला रहे हैं ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा बताए अनुसार साधना कर सत्त्वगुरी बनने से राष्ट्रमन में सत्त्वगुणी विचार उत्पन्न होंगे ! – डॉ. माधव भट्टराई, अध्यक्ष, राष्ट्रीय धर्मसभा नेपाल
काठमांडू (नेपाल) : सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने १० फरवरी को राष्ट्रीय धर्मसभा नेपाल के अध्यक्ष डॉ. माधव भट्टराई तथा नेपाल की पूर्व मंत्री डॉ. कांता भट्टराई से भेंट की । इस अवसरपर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी साधना करने के लिए क्यों कहते हैं, इस संदर्भ में स्वयं का अनुभव बताते हुए डॉ. भट्टराई ने कहा, २० वर्ष पूर्व पुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजी ने मुझे बताया था, कार्य करें और उसके साथ साधना भी करें; क्योंकि साधना नहीं होगी, तो संगठन सफल नहीं होगा । होमियोपैथी के अनुसार मनुष्य के शरीर में बीमारी उत्पन्न होने से पहले उसके मन में बीमारी उत्पन्न होती है, उसी प्रकार से राष्ट्र के नागरिकों के मन में जब भोगवादी और अनावश्यक विचार होते हैं, तब राष्ट्र में अराजक उत्पन्न होता है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने साधना करें और सत्त्वगुणी बनें’, ऐसा बताया है । उससे राष्ट्रमन (नागरिकों के मन) में सत्त्वगुणी विचार उत्पन्न होंगे और उनका परिणाम होगा । सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने भट्टराई को नवम् अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का निमंत्रण भी दिया ।
सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने नेपाल के ‘फोरम ऑफ नेपालीज मीडिया’ के अध्यक्ष प्रा. निरंजन ओझा से की भेंट
काठमांडू : सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने नेपाल के ‘फोरम ऑफ नेपालीज् मीडिया’ (नेपाली प्रसारमाध्यम मंच) के अध्यक्ष प्रा. निरंजन ओझा से भेंट की, तब प्रा. ओझा ने विगत ७-८ वर्षों में नेपाल की युवा पीढीपर तीव्र गति से पश्चिमी संस्कृति का जो प्रभाव पड रहा है, उसके प्रति चिंता व्यक्त की । इसका उदाहरण देते हुए सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने कहा, श्री टेंब्येस्वामीजी के चरित्र ग्रंथ में पहले ही बताकर रखा गया है कि इस प्रकार की समस्याओं के पीछे आध्यात्मिक कारण होते हैं; परंतु जहां गुरुकृपा का कवच होता है, वहां इन शक्तियों का प्रभाव नहीं होता । प्रा. निरंजन ओझा ने काठमांडू के श्री शांति विद्या माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों के लिए ‘वर्तमान शिक्षाप्रणाली’ विषयपर सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी के मार्गदर्शन का आयोजन किया ।
श्री शांति विद्या माध्यमिक विद्यालय में शिक्षकों के लिए मार्गदर्शन
शिक्षक व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के निर्माण की प्रक्रिया चलाते हैं ! – सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी
श्री शांति विद्या माध्यमिक विद्यालय में शिक्षकों के लिए आयोजित मार्गदर्शन में सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने कहा, शिक्षक केवल शिक्षा नहीं देते, अपितु वे व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के निर्माण की प्रक्रिया चलाते हैं । शिक्षा का उद्देश्य क्या है ?, यह स्पष्ट होना चाहए । शिक्षा का पहला उद्देश्य मनुष्य को मनुष्य के रूप में जागृत करना और उसे देवत्व की एर लेकर जाना है । मनुष्य जबतक मनुष्य नहीं बनेगा, तब वह दूसरों का विचार नहीं करेगा और तबतक संघर्ष होता रहेगा । प्रत्येक बात के पीछे अध्यात्मशास्त्रीय कारणमीमांसा है । साधना और उपासना करने से चित्तशुद्धि होती है और उसमें विश्लेषण करने की क्षमता उत्पन्न होती है ।
इस अवसरपर शिक्षकों ने ‘अध्यात्म एवं धर्म में क्या अंतर है ?’, ‘क्या मंदिर जाने से ही मनुष्य धार्मिक बन जाता है, ऐसा है ?’ आदि विविध प्रश्न पूछकर अपनी शंकाओं का निराकरण करवाकर लिया । मार्गदर्शन के आरंभ में प्रा. निरंजन ओझा ने सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी का परिचय करवाया, साथ ही गोवा के सनातन आश्रम में उन्हें हुए अनुभवों को उपस्थित शिक्षकों के सामने रखा ।
विश्व हिन्दू महासंघ नेपाल के अध्यक्ष डॉ. रामचंद्र अधिकारी एवं वरिष्ठ उपाध्यक्ष भरतराज पौडेल को नवम् अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का निमंत्रण
सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने विश्व हिन्दू महासंघ नेपाल के अध्यक्ष तथा पूर्व मंत्री डॉ. रामचंद्र अधिकारी तथा महासंघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष भरतराज पौडेल से भेंट कर उन्हें नवम् अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का निमंत्रण दिया । इस अवसरपर डॉ. रामचंदद्र अधिकारी ने विश्व हिन्दू महासंघ की ओर से सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी को सनातन धर्म-संस्कृति से संबंधित अंतरराष्ट्रीय महासम्मेलन का निमंत्रण दिया । श्री. भरतराज पौडेल ने महासम्मेलन का अच्छा आयोजन कैसा हो, इसके लिए मार्गदर्शन तथा सहायता करने का अनुरोध किया । सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने हिन्दू जनजागृति समिति भारतभर में अधिवेशनों के माध्यम से राष्ट्र-धर्म के प्रति कर्तव्य के प्रति हिन्दुओं को कैसे जागृत कर रही है, इस संदर्भ में बताया ।