कहा – धर्म का पालन करना व्यक्तिगत पसंद
- धर्म का पालन करना, यह व्यक्तिगत पसंद है, फिर भी लालच दिखाकर अथवा जबरन धर्म परिवर्तन करने पर यदि कोई बाध्य करता है, तो उसपर नियंत्रण होना आवश्यक है, ऐसे हिन्दुओं को लगता है ! इस प्रकार का धर्म परिवर्तन रोकने हेतु हिन्दुओं को न्यायालय का ही आधार लगता है ! अब न्यायालय ने ही ऐसा निर्णय दिया हों, तो हिन्दुओं ने किसकी ओर आशा से देखें ?
- अब केंद्र सरकार ने जल्द से जल्द धर्मांतरणविरोधी कानून लागू कर हिन्दुओं के होनेवाले धर्म परिवर्तन पर प्रतिबन्ध लगाना आवश्यक है ! – सम्पादक, हिन्दुजागृति
दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को यह कहते हुए धर्मांतरण के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया कि, धर्म निजी आस्था का मामला है और किसी दूसरे धर्म को अपनाना या नहीं अपनाना व्यक्तिगत निर्णय है। मुख्य न्यायमूर्ती डी एन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने पेशे से वकील याचिकाकर्ता से कहा कि, वे याचिका वापस ले लें क्योंकि न्यायालय इसे खारिज नहीं करना चाहती।
याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा कि एक धर्म को मानना निजी आस्था का विषय है और किसी दूसरे धर्म को अपनाना या नहीं अपनाना व्यक्तिगत निर्णय है। पीठ ने कहा, ‘हमें बताइए कि हम इसे कैसे रोक सकते हैं? यदि कोई किसी को धमकी दे रहा है या किसी को डरा रहा है, तो यह भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध है।’
PIL against religious conversion withdrawn from Delhi High Courthttps://t.co/awbRqKluuX@PMOIndia @narendramodi @HMOIndia @AmitShah @JPNadda @blsanthosh
— Ashwini Upadhyay (@AshwiniBJP) March 13, 2020
न्यायालय ने कहा कि किसी व्यक्ति का धमकी या प्रलोभन के चलते धर्मांतरण का शिकार होने का कोई कारण नहीं बनता। गौरतलब है कि उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा था कि, कई व्यक्ति, गैर-सरकारी संगठन और संस्थाएं दबे-कुचले विशेषकर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों को डराकर, धमकाकर, पैसे का लालच देकर या चमत्कार, काले जादू और अन्य हथकंडे अपनाकर उनका धर्मांतरण करा रहे हैं। उन्होंने दावा किया था, ‘कई व्यक्ति/संगठन ग्रामीण क्षेत्रों में एससी/एसटी का धर्मांतरण करा रहे हैं और स्थिति बहुत चिंताजनक है। सामाजिक और आर्थिक रूप से दबे-कुचले पुरुषों, महिलाओं और बच्चों विशेष रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों के सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामले पिछले 20 वर्षों में काफी बढ़ गए हैं।’
उन्होंने यह भी दावा किया था कि २०११ की जनगणना के अनुसार देश में ७९ प्रतिशत हिंदू हैं जबकि २००१ में हिंदुओं की जनसंख्या ८६ प्रतिशत थी। यदि कोई कार्रवाई नहीं की गई तो ‘हिंदू भारत में अल्पसंख्यक हो जाएंगे।’
स्त्रोत : लाइव लॉ