तनिलनाडु सरकार ने अपने उस आदेश को वापस ले लिया है, जिसके तहत हिन्दू मंदिरों से 10 करोड़ रुपए की रकम मुख्यमंत्री कोविड-19 रिलीफ फण्ड में ट्रांसफर करने की बात कही गई थी। ‘द तमिलनाडु हिन्दू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट्स’ ने ऐसा आदेश दिया था, जिसे अब हिन्दू संगठनों और लोगों के विरोध के बाद वापस ले लिया गया है। मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि ये क़ानूनी रूप से तर्कसंगत नहीं है। अब इस फ़ैसले पर रोक लग गई है।
मद्रास हाईकोर्ट की एक पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) बेंच ने अप्रैल 22, 2020 को आए इस आदेश को अमान्य करार दिया। इस बेंच में जस्टिस विनोद कोठरी और पुष्प सत्यनारायण शामिल थीं। ‘हिन्दू टेम्पल वॉरशिपर्स सोसाइटी’ के अध्यक्ष टीआर रमेश ने इस आदेश पर रोक लगाने की माँग की थी। तमिल अख़बार दिनमालारी के डिटोर आरआर गोपालजी ने भी याचिका दायर की थी। इसके बाद विभाग ने एक नया सर्कुलर जारी कर के इस आदेश को वापस ले लिया।
Congratulations to devout Hindu advocate @trramesh ji and others for compelling Tamil Nadu Govt to withdraw discriminatory order asking Hindu temples to donate for CM Relief Fund for #Corona, while Hindu poojaris are facing hardships due to ongoing lockdown ! https://t.co/SPF3Frb885
— HinduJagrutiOrg (@HinduJagrutiOrg) May 4, 2020
याचिका में कहा गया था कि कमिश्नर के पास ऐसा कोई आदेश जारी करने का कोई अधिकार नहीं है, वो भी तब जब सरकार के आदेश के कारण सारे मंदिर पिछले दो महीने से बंद हैं। उन्होंने दलील दी कि रेवेन्यू न होने के कारण मंदिरों के पास कोई सरप्लस नहीं है और ऐसे में रुपए लेना सही नहीं है। विहिप के प्रवक्ता विनोद बंसल ने इस फ़ैसले का स्वागत किया और हिंदूवादी संगठनों को बधाई दी। विश्व हिन्दू परिषद ने इस आदेश के बाद कहा:
तमिलनाडु व आंध्र प्रदेश सरकारों के हिन्दू द्रोही चेहरे जग जाहिर हैं। दोनों ही सरकारों द्वारा मंदिरों की पवित्रता व भगवान के धन पर कुदृष्टि के साथ हिंदुओं के धर्मांतरण को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। ये असंवैधानिक, निंदनीय व हिन्दू समाज पर गहरी चोट है। हिन्दू समाज के तुरंत कानूनी व अन्य दबावों के चलते तमिलनाडु सरकार ने सिर्फ हिन्दू मंदिरों से जबरन 10 करोड़ रुपए वसूलने के अपने तुगलकी फ़रमान को वापस लिया। भविष्य में भी सरकारें इस प्रकार के हिन्दू द्रोही कदमों से बाज आएँ।
हिन्दू श्रद्धालुओं के दान व मंदिरों की सम्पत्ति को मंदिरों, हिन्दू धर्म कार्यों या हिंदू समाज के कल्याण में लगाने की बजाए ईसाइयों व मुसलमानों द्वारा हिंदुओं के धर्मांतरण में खर्च करना कौनसा सैक्यूलरिज्म है। सरकारें हिन्दू द्रोह से बाहर निकलें अन्यथा…
— विनोद बंसल (@vinod_bansal) May 5, 2020
विनोद बंसल ने पूछा कि हिन्दू श्रद्धालुओं के दान व मंदिरों की सम्पत्ति को मंदिरों, हिन्दू धर्म कार्यों या हिंदू समाज के कल्याण में लगाने के बजाए ईसाइयों व मुसलमानों द्वारा हिंदुओं के धर्मांतरण में खर्च करना कौन सा सेक्यूलरिज्म है? उन्होंने सरकारों को सलाह दी कि वो हिन्दू द्रोह से बाहर निकलें।
बता दें कि तमिलनाडु सरकार ने 47 मंदिरों को CM राहत कोष में ₹10 करोड़ रुपए देने का आदेश दिया था। इसके विपरीत राज्य सरकार ने 16 अप्रैल को रमजान के महीने में प्रदेश की 2,895 मस्जिदों को 5,450 टन मुफ्त चावल वितरित करने आदेश दिया था, ताकि रोजेदारों को परेशानी ना हो। वास्तव में मदिरों को ऐसा आदेश देने के पीछे तमिलनाडु सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति जिम्मेदार है।
2895 मस्जिदों को 5450 टन फ्री चावल, 47 मंदिरों को देने होंगे 10 करोड़: तमिलनाडु सरकार का आदेश
तमिलनाडु सरकार ने 47 मंदिरों को CM राहत कोष में 10 करोड़ रुपए देने का आदेश दिया है। इसके विपरीत राज्य सरकार ने 16 अप्रैल को रमजान के महीने में प्रदेश की 2,895 मस्जिदों को 5,450 टन मुफ्त चावल वितरित करने आदेश दिया था, ताकि रोजेदारों को परेशानी ना हो। वास्तव में मदिरों को ऐसा आदेश देने के पीछे तमिलनाडु सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति जिम्मेदार है।
ऐसे समय में, जब मंदिर प्रशासन को सरकार के चंगुल से मुक्त कराने के लिए संघर्ष तेज हो रहा है, तमिलनाडु सरकार के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (HR and CE) ने 47 मंदिरों को गरीबों की देखभाल करने के लिए निर्धारित राशि के अलावा CM राहत कोष में 10 करोड़ रुपए अतिरिक्त देने का निर्देश दिया है।
भाजपा ने लगाईं मंदिरों में भोजन करवाने की स्वीकृति की गुहार
भाजपा की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष एल मुरुगन ने शनिवार को अन्नाद्रमुक सरकार से गरीबों और साधुओं को भोजन कराने के लिए राज्य में हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के रखरखाव वाले मंदिरों में अन्नदानम (भूखों को भोजन परोसना) फिर से शुरू करने का आग्रह किया। मुरुगन ने कहा कि सरकार ने मुस्लिम समुदाय के लोगों की दलीलों का सम्मान किया है और रमज़ान के खाने के लिए मुफ्त चावल आवंटित किया है।
तमिलनाडु सरकार के इस निर्देश की आलोचना की मुख्य वजह यह भी है कि इस प्रकार का निर्देश इसाई और मुस्लिम संस्थानों को नहीं दिया गया है, जिन्हें सालाना सरकारी अनुदान प्राप्त होते रहते हैं। इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने रमजान के महीने में मस्जिदों में मुफ्त चावल वितरित करने के तमिलनाडु सरकार के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया था।
इसके लिए पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के उस बयान को नजीर बनाया जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि सरकार किसी भी समुदाय को तीर्थयात्रा के लिए मदद देने के विचार के विरोध में नहीं है। उदाहरण के लिए सरकार द्वारा कुंभ का खर्च वहन करने और भारतीय नागरिकों को मानसरोवर तीर्थ यात्रा में मदद का जिक्र किया था। हालाँकि पीठ ने यह जिक्र नहीं किया कि कोरोना के दौरान बंद मंदिर ऐसी स्थिति में सरकार के फैसले का क्या करें?
HR और CE के नियंत्रण में हैं राज्य के 47 मंदिर
HR और CE के प्रधान सचिव के पनिंद्र रेड्डी ने मदुरै, पलानी, थिरुचेंदुर, तिरुतनी, तिरुवन्नमलई, रामेश्वरम, मयलापुर सहित 47 मंदिरों में उनके अधीन काम करने वाले सभी अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे लॉकडाउन के कारण गरीबों को भोजन खिलाने की दिशा में सरप्लस फंड से 35 लाख रुपए का योगदान दें। अन्य मंदिरों को 15 लाख रुपए से 25 लाख रूपए तक की राशि देने के लिए निर्देशित किया गया है। सभी 47 मंदिरों को दस करोड़ के अधिशेष कोष को सीएम कोरोना रिलीफ फंड में स्थानांतरित करना है।
उल्लेखनीय है कि HR और CE तमिलनाडु में 36,612 मंदिरों का प्रबंधन करते हैं। ये संपन्न मंदिर अपने अधिशेष कोष से संरक्षण/ नवीकरण/बहाली करते हैं। लाखों पुजारी पूर्ण रूप से श्रद्दालुओं के दान पर निर्भर रहते हैं। कोरोना महामारी और देशव्यापी बंद के कारण अब वे असहाय हो चुके हैं और भुखमरी का सामना कर रहे हैं। इस पर तमिलनाडु राज्य सरकार ने उनकी मदद करने के बजाए अपनी तुष्टिकरण की राजनीति को साधने के लिए हिंदू मंदिरों की संपत्ति को निशाना बनाया है।
मुस्लिमों में रमजान के पर्व की शुरुआत में ही, तमिलनाडु राज्य सरकार ने मुसलमानों को एक बड़ा लाभ देने की घोषणा की थी। दिवंगत सीएम जयललिता ने मुस्लिमों के दिलों और वोटों को जीतने के लिए इसे शुरू किया था। तमिलनाडु सरकार ने घोषणा की थी कि इस साल दलिया तैयार करने के लिए 2,895 मस्जिदों को 5,450 टन चावल दिया जाएगा, जो कि साधारण गणना के अनुसार 2,1,80,00,000 रुपए निकल आती है।
मुस्लिमों की तरह हिन्दुओं को नहीं मिलती है त्योहारों में कोई
जबकि इसी प्रकार की कोई मदद या योजना चित्रा और अनादि महीनों के दौरान हिंदुओं के ग्राम देवताओं को प्रसाद तैयार करने के लिए नहीं दी जाती हैं। सभी लोग इस बात को जानते हैं कि लॉकडाउन के कारण मंदिरों में उत्सव रद्द कर दिए गए हैं लेकिन ऐसा लगता है कि हिंदू मंदिर के पैसे की कीमत पर मुसलमानों का तुष्टिकरण सरकार के लिए महत्वपूर्ण है।
वर्तमान तमिलनाडु सरकार की नीति से लगता है कि वह हिंदू मंदिरों को पूरी तरह से निचोड़ने का प्रयत्न कर रही है। तमिलनाडु सरकार हिंदुओं के मंदिरों से हंडी संग्रह, प्रसाद, विभिन्न दर्शन टिकट, विशेष कार्यक्रम शुल्क, आदि के माध्यम से प्रतिवर्ष 3000 करोड़ रुपए से अधिक वसूल करती है, जबकि केवल 4-6 करोड़ रुपए रखरखाव के लिए दिए जाते हैं। बाकी 2,995 करोड़ रुपए सरकार के पास रहते हैं।
वहीं, श्रीविल्लिपुथुर वैष्णवित मठ प्रमुख सदगोपा रामानुज जियार ने तमिलनाडु सरकार से मंदिर के पैसे को पुजारी और सेवकों को देने के लिए खर्च करने का आग्रह किया है। पुथिया तमीजगम के प्रमुख डॉ. कृष्णस्वामी ने सीएम से मंदिरों से प्राप्त 10 करोड़ रुपए की राशि वापस करने की अपील की है।