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कई दलितों ने अपनाया ईसाई धर्म : अब गटर और नाली साफ करवा रहा पाकिस्तान

एरिक जमशेद (फोटो : द न्यूयॉर्क टाइम्स)

पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता तो वैसे भी नहीं है लेकिन अब इसके और भी रूप सामने आ रहे हैं। वहाँ ईसाईयों से नाले और सीवर की साफ़-सफाई कराई जा रही है। असल में पाकिस्तान में कई दलितों ने ईसाई धर्म को अपना लिया था लेकिन दलित तब भी उनके अत्याचार से नहीं बच सके और उनसे नाले की साफ़-सफाई ही कराई जाती है। उन्हें मास्क और ग्लव्स तक भी नहीं दिए जाते हैं। पिछले दिनों पाकिस्तान में कई ईसाई सफाईकर्मियों की मौत हुई है।

‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में प्रकाशित एक ख़बर में ऐसे ही एक ईसाई सफाईकर्मी एरिक जमशेद के बारे में बताया गया है, जिनके पूर्वजों ने हिन्दू धर्म छोड़ कर ईसाई मजहब अपना लिया था। उनके साथ वहाँ के मुसलमान छुआछूत करते हैं। जुलाई 2019 में पाकिस्तान में फ़ौज ने समाचारपत्रों में एक एडवर्टाइजमेंट दी थी, जिसमें नाले की सफाई के लिए सफाईकर्मियों की बहाली की बात कही गई थी। इसमें केवल ईसाईयों को ही अप्लाई करने को कहा गया था। बाद में कुछ संस्थाओं द्वारा प्रदर्शन के बाद इसे हटा लिया गया।

पाकिस्तान के कराची जैसे बड़े शहरों की नगरपालिका में भी ईसाईयों से ही साफ़-सफाई के काम कराए जाते हैं। उन्हें गन्दी नालियों में उतरने होते हैं और नंगे हाथ से ही कचरे को उठाना होता है। इसमें मल-मूत्र से लेकर प्लास्टिक बैग्स और अन्य कचरे शामिल होते हैं। 2 करोड़ लोगों के इस महानगर में रोज 17500 लाख लिटर लिक्विड कचरा जमा होता है और अधिकतर इसे ही इसकी सफाई करते हैं। एक ईसाई सफाईकर्मी को तीन नाला साफ़ करने के बाद 500 रुपए से भी कम दिए जाते हैं।

एरिक अपने बेटे को बाहर एक स्कूल में भेजते हैं, ताकि वो सफाईकर्मियों वाले माहौल में न रहे। ये लोग जिस इलाक़े में रहते हैं, वहाँ मच्छरों से लेकर कॉकरोच तक बड़ी संख्या में रहते हैं और वहाँ साफ़-सफाई नहीं कराई जाती। कई भरे हुए गटर उस क्षेत्र में हैं। यहाँ तक कि उनके बच्चों को भी मजबूर किया जाता है कि वो अपने पिता का ही प्रोफेशन अपनाएँ और नालों की ही साफ-सफाई करें। जेम्स गिल नामक एक समाजिक कार्यकर्ता सरकार पर सफाईकर्मियों के भले के लिए दबाव डाल रहे हैं लेकिन अधिकतर सफाईकर्मी अशिक्षित और निरक्षर हैं, वो अपने लिए आवाज़ उठाना ही नहीं जानते।

प्रशासन इन सफाईकर्मियों को थोड़ा सा लालच भी देता है तो ये गटर में घुस कर साफ-सफाई करने को तैयार हो जाते हैं, क्योंकि ये उनकी ज़िंदगी चलाने का सवाल है। उन्हें खाने को नहीं मिलेगा तो वो ज़िंदा कैसे रहेंगे? इसीलिए सामाजिक कार्यकर्ताओं की गोलबंदी की सारी तरकीबें फेल हो जाती हैं। कई ईसाई सफाईकर्मी कहते हैं कि उनके पूर्वजों ने हिन्दू धर्म में भेदभाव से बचने के लिए ईसाई मजहब अपनाया लेकिन अब स्थिति और भी बदतर हो चली है।

उन्हें घंटों तक नालों और गटरों में घुस कर रहना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि मुसलमानों को नालियों की साफ़-सफाई के लिए हायर नहीं किया गया। ऐसी कोशिशें भी हो चुकी हैं। लेकिन, मुसलमान सफाईकर्मी सड़कों पर झाड़ू लगाने के अलावा कुछ नहीं करते। वो नालियों में उतरने और गटर साफ़ करने को तैयार ही नहीं होते। घंटों नाले में रहने के कारण ईसाई सफाईकर्मियों का शरीर भी तमाम रोगों से घिर जाता है।

पाकिस्तान में हिन्दुओं और सिखों के साथ अक्सर बुरा व्यवहार होता है। हिन्दू शरणार्थियों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जाता है। यूएन ने भी अपनी रिपोर्ट में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चिंता जताई थी। हालाँकि, वहाँ के प्रधानमंत्री इन बातों से इनकार करते हैं।

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