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‘केवल हलाल मांस’ बेचने को लेकर विरोध के बाद Big Basket ने झटका मांस बेचने का लिया फैसला

ऑनलाइन ग्रॉसरी स्टोर बिग बास्केट (Big Basket) ने पिछले दिनों ग्राहकों से कहा था कि उनके यहाँ ‘सिर्फ हलाल मीट’ ही बेचा जाता है। बिग बास्केट के इस खुलासे के बाद विवाद खड़ा हो गया था। जिसके बाद अब बिग बास्केट ने ग्राहकों के लिए अपने प्लेटफॉर्म पर ‘झटका मीट’ उपलब्ध कराया है।

दरअसल, पिछले हफ्ते बिग बास्केट के ये कबूलने के बाद कि वो सिर्फ हलाल मीट ही बेचते हैं, सोशल मीडिया यूजर्स ने ऑनलाइन ग्रॉसरी स्टोर की गैर-समावेशी दृष्टिकोण की तरफ ध्यान दिलाया था।

बिग बास्केट की सिर्फ हलाल बेचने की प्रतिक्रिया को सोशल मीडिया यूजर्स ने भेदभावपूर्ण बताया। उनका कहना था कि ऑनलाइन ग्रॉसरी स्टोर बिग बास्केट का यह रवैया उन लोगों के प्रति भेदभावपूर्ण है, जिन्हें उनकी धार्मिक मान्यताएँ हलाल मीट खाने की इजाजत नहीं देती है।

ग्राहकों को जबरन हलाल मीट खरीदने के लिए मजबूर करने को लेकर लोगों ने सोशल मीडिया ट्विटर पर काफी तीखी आलोचनाएँ की। लोगों का कहना था कि क्या वो सिर्फ मुसलमानों की डिमांड पूरी करते हैं? और यदि ऐसा नहीं है तो फिर आप गैर मुसलमानों को हलाल खाने के लिए मजबूर क्यों करते हैं? या भारत में शरिया कानून लागू हो गया है?

सोशल मीडिया यूजर्स और ग्राहकों के कड़े विरोध के बाद ऑनलाइन ग्रॉसरी स्टोर- बिग बास्केट ने अब अपने मेनू में ‘झटका मांस’ को शामिल करने का फैसला किया है।

शायद स्वदेशी विश्वास का अनुसरण करने वाले लोगों के एकजुट प्रयासों ने इन बड़ी कंपनियों पर दबाव डाला, जिनकी वजह से उन्हें ये फैसला लेना पड़ा, वरना ये अपने ग्राहकों को ‘हलाल’ उत्पादों जैसे गैर-मानक सामान स्वीकार करने के लिए मजबूर करते हैं।

उल्लेखनीय है कि झटका सर्टिफिकेशन अथाॅरिटी के चेयरमैन रवि रंजन सिंह बताते हैं कि ‘झटका‘ हिन्दुओं, सिखों आदि भारतीय, धार्मिक परम्पराओं में ‘बलि/बलिदान’ देने की पारम्परिक पद्धति है। इसमें जानवर की गर्दन पर एक झटके में वार कर रीढ़ की नस और दिमाग का सम्पर्क काट दिया जाता है, जिससे जानवर को मरते समय दर्द न्यूनतम होता है। इसके उलट हलाल में जानवर की गले की नस में चीरा लगाकर छोड़ दिया जाता है, और जानवर खून बहने से तड़प-तड़प कर मरता है।

इसके अलावा मारे जाते समय जानवर को मुस्लिमों के पवित्र स्थल मक्का की तरफ़ ही चेहरा करना होगा। लेकिन सबसे आपत्तिजनक शर्तों में से एक है कि हलाल मांस के काम में ‘काफ़िरों’ (‘बुतपरस्त’, गैर-मुस्लिम, जैसे हिन्दू) को रोज़गार नहीं मिलेगा। यानी कि यह काम सिर्फ मुस्लिम ही कर सकता है।

इसमें जानवर/पक्षी को काटने से लेकर, पैकेजिंग तक में सिर्फ और सिर्फ मुसलमान ही शामिल हो सकते हैं। मतलब, इस पूरी प्रक्रिया में, पूरी इंडस्ट्री में एक भी नौकरी गैर-मुस्लिमों के लिए नहीं है। यह पूरा कॉन्सेप्ट ही हर नागरिक को रोजगार के समान अवसर देने की अवधारणा के खिलाफ है। बता दें कि आज McDonald’s और Licious जैसी कंपनियाँ सिर्फ हलाल मांस बेचती है।

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