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‘हिन्दुओं के मंदिरों पर धर्मनिरपेक्ष शासन का नियंत्रण क्यों ?’ इस विषय पर विशेष परिसंवाद संपन्न

‘सेक्युलर’ सरकार द्वारा मंदिर चलाने का अर्थ है नास्तिकों के हाथों में धार्मिक मंदिरों की व्यवस्था होना ! – टी.आर. रमेश, अध्यक्ष, टेंपल वर्शिपर्स सोसाइटी, तमिलनाडु

डॉ. सुब्रह्मण्यम् स्वामी की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेशानुसार मंदिर में अनुचित व्यवस्थापन दिखाई देने पर शासन उसका नियंत्रण लेकर स्वयं ही नहीं चला सकता, अपितु समस्या का निवारण होने तक ही मंदिर का अधिग्रहण कर सकता है; परंतु वास्तविक रूप से सेक्युलर सरकार मंदिर नियंत्रित कर चला रही है । आज सरकार मंदिरों की लाखों एकड भूमि का उपयोग करती है । उसके लिए प्रतिवर्ष 2 रुपए प्रति एकड का मूल्य मंदिरों को देकर उन स्थानों पर करोडों रुपए कमाती है । आज के बाजार भाव के अनुसार मंदिरों की भूमि का उचित किराया दिया जाए तो वह 1 अरब डॉलर्स (7 हजार 500 करोड से अधिक रुपए) होगा । इससे मंदिर स्वयं की संस्थाएं, गोशाला, पाठशाला चला पाएंगे । ‘सेक्युलर’ सरकार द्वारा मंदिर चलाए जाना, यह नास्तिकों के हाथों में मंदिर देने के समान है, ऐसा वक्तव्य तमिलनाडु के ‘टेंपल वर्शिपर्स सोसाइटी’ के अध्यक्ष श्री. टी. आर. रमेश ने किया ।

हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित ‘हिन्दुओं के मंदिरों पर धर्मनिरपेक्ष शासन का नियंत्रण क्यों ?’ इस विषय पर विशेष परिसंवाद में वह बोल रहे थे । इसमें भाग्यनगर (हैदराबाद) के चिल्कुर बालाजी मंदिर के मुख्य पुजारी सी.एस. रंगराजनजी, केरल के ‘पीपल फॉर धर्म’ की अध्यक्षा श्रीमती शिल्पा नायर, सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता किरण बेट्टदापुर और हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे सम्मिलित हुए थे । ‘फेसबुक’ और ‘यू-ट्यूब’ के माध्यम से यह कार्यक्रम 52 हजार से अधिक लोगों ने देखा तथा 1 लाख 80 हजार से अधिक लोगों तक यह विषय पहुंचा ।

श्री. सी.एस. रंगराजनजी इस समय बोले कि ‘‘मंदिरों में शासकीय अधिकारियों की नियुक्ति करने के कारण वहां का भक्तिभाव लुप्त होता जा रहा है । भक्तिमार्ग की सीख देने के लिए मंदिरों का सुरक्षित रहना आवश्यक है । मंदिर का धन देखकर मंदिर अधिग्रहण हो रहा हो, तो मंदिर की दानपेटियां हटाने पर ही शासन को सीख मिलेगी ।’’

मंदिर सरकारीकरण के विरोध में न्यायालयीन संघर्ष करनेवाले वरिष्ठ अधिवक्ता किरण बेट्टदापुर बोले कि ‘‘बेंगलुरू की ‘विधानसौध’ (विधानसभा) के भवन का निर्माण कार्य 60 एकड भूमि पर किया गया है तथा वह भूमि ‘प्रभु अरळीमुन्नीश्‍वर मंदिर’ की है । शासन ने यह भूमि हडपकर वहां विधानसौध बनाया है । कर्नाटक में 35 हजार मंदिरों का सरकारीकरण हो चुका है तथा वहां की देवनिधि का उपयोग उचित पद्धति से नहीं किया जाता । यह वैसा ही है कि बाड स्वयं ही खेत खा गई है । यह अत्यंत संतापजनक है ।’’

इस अवसर पर श्रीमती शिल्पा नायर ने कहा कि, ‘‘केरल की सेक्युलर कम्युनिस्ट सरकार हिन्दुओं के धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप करती है । धर्मनिरपेक्ष सरकार की लापरवाही के कारण मंदिरों की लाखों एकड भूमि हडप ली गई है । कोची देवस्वम् बोर्ड के अंतर्गत आनेवाले मंदिरों की 55 हजार एकड भूमि, गुरुवायूर देवस्वम् बोर्ड की भूमि गुरुवायूर देवस्वम् बोर्ड के मंदिरों की 13 हजार 500 एकड, कूडलमाणिक्यम मंदिर की 75 हजार एकड तथा मलबार देवस्वम् बोर्ड के मंदिरों की 2 लाख एकड भूमि असामाजिक तत्त्वों ने हडप ली है । यह रोकने के लिए मंदिरों का व्यवस्थापन भक्तों को ही सौंपना चाहिए । ’’

श्री. रमेश शिंदे बोले कि, मंदिरों का मुख्य उद्देश्य धर्म का प्रसार करना है । चर्च में बाइबिल और मस्जिदों में कुरान सिखाई जाती हो, तो मंदिरों में भगवद्गीता क्यों नहीं सिखाई जाती ? मंदिरों से हिन्दू धर्म का प्रचार करने के लिए ‘मंदिर और संस्कृति रक्षा आंदोलन’ के नाम से राष्ट्रव्यापी आंदोलन किया जा रहा है । इस अवसर पर श्री. सी.एस. रंगराजनजी के करकमलों से मलयालम भाषा में सनातन संस्था के ‘Sanatan.org’ जालस्थल का लोकार्पण किया गया ।

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