2020 के हिंदू विरोधी दिल्ली दंगों के दौरान हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या में शामिल होने के आरोपित मोहम्मद खालिद को जमानत मिल गई। बुधवार (6 सितंबर, 2023) को, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलत्स्य प्रमाचला की न्यायालय ने आरोपित मोहम्मद खालिद को जमानत देते हुए 15 हजार रुपए का मुचलका भरने का निर्देश दिया।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एएसजे प्रमाचला ने कहा कि उन्हें आरोपित मोहम्मद खालिद की भूमिका अन्य सह आरोपितों से ज़्यादा गंभीर नहीं है। उन्होंने कहा, “…समान प्रकार के आरोपों वाले सह-अभियुक्त व्यक्तियों को बिना किसी विशिष्ट भूमिका के उस भीड़ का हिस्सा होने के कारण इस मामले में पहले ही जमानत दे दी गई है।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि जिन लोगों पर सीसीटीवी कैमरों को नुकसान पहुँचाने का मामला था, उन्हें भी दिल्ली की उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी।
आरोपित के वकील मोहम्मद हसन के मुताबिक, खालिद दिसंबर 2018 से देहरादून में रह रहा था। उन्होंने आगे कहा कि खालिद के बैंक लेनदेन से पता चलता है कि वह उक्त घटना की तारीख पर देहरादून में एक गैस स्टेशन पर मौजूद था।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रमाचला ने फैसला सुनाया, “अगर यहाँ अन्य आरोपित पर लगाए गए अपराध के आरोपों की तुलना करती हूँ, तो मुझे यह अन्य सह-अभियुक्तों पर लगाए गए आरोप से ज़्यादा गंभीर नहीं लगती, जिन्हें जमानत दी गई है।”
बता दें कि इसी साल जुलाई, 2023 में गिरफ्तार किया गया मोहम्मद खालिद हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक मोहम्मद अयाज का भाई है। अयाज़ को भी दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इसी साल 21 जून को गिरफ्तार किया था।
इससे पहले, यह बताया गया था कि पूछताछ के दौरान, आरोपित खालिद ने स्वीकार किया था कि उसने 2020 में अपने बड़े भाई मोहम्मद अयाज़ और कई दोस्तों के साथ चाँद बाग में सीएए/एनआरसी विरोधी रैली में भाग लिया था।
अभियोजन पक्ष ने कहा है कि आरोपित मोहम्मद खालिद पुलिस पर हमले की साजिश का हिस्सा था। विशेष लोक अभियोजक ने इस आधार पर जमानत याचिका का विरोध किया कि खालिद ने पुलिस पर हमले की साजिश रचने के लिए मीटिंग के लिए अपनी प्रॉपर्टी उपलब्ध कराई थी।
7 जुलाई 2020
रतन लाल की हत्या से पहले जिहादी भीड ने 2 अन्य पुलिसकर्मियों को बनाया था बंधक : चार्जशीट
दिल्ली में 24 से 26 फरवरी के बीच बड़े पैमाने पर हुए दंगों के दौरान इस्लामिक कट्टरपंथियों ने निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या कर दी थी। हिंदुओ में सबसे पहले कॉन्स्टेबल रतन लाल की हत्या हुई थी। उन्हें इस्लामी भीड़ ने निर्दयता से मार डाला था। दिल्ली पुलिस के विशेष जाँच दल द्वारा दायर चार्जशीट में रतन लाल की हत्या और आईपीएस अमित शर्मा और आईपीएस अनुज कुमार पर दंगाइयों द्वारा किए गए जानलेवा हमलों में कम से कम 17 आरोपियों का उल्लेख किया गया है।
दिल्ली में हुए दंगों के लगभग 4 से 5 प्रमुख साजिशकर्ता हैं, जिनमें सलीम खान, सलीम मुन्ना और शादाब शामिल हैं। पुलिस ने कहा कि देश की छवि को खराब करने के लिए दिल्ली में हुए दंगों की साजिश रची गई थी। इसमें गौर करने वाली बात यह है कि जिस डीएस बिंद्रा को सीएए विरोधी प्रदर्शकारियों को खाना परोसने के लिए मीडिया ने मसीहा का दर्जा दे दिया था, उसका भी नाम रतन लाल की हत्या में शामिल दंगों के आरोपितों के साथ है।
रतनलाल को कट्टरपंथी इस्लामिक भीड़ द्वारा उस समय बेरहमी से मारा गया था, जब वह चांद बाग के वजीराबाद रोड पर अपनी ड्यूटी कर रहे थे। चार्जशीट के अनुसार भीड़ पहले से दंगे को अंजाम देने के लिए तैयार थी।
जैसा कि पहले चार्जशीट में यह उल्लेख किया गया है कि एजेंसियों ने घटनास्थल से बिना इस्तेमाल किए गए कारतूसों को बरामद किया था। इसके साथ उन्होंने इस्तेमाल किए गए कारतूसों को पेट्रोल बम के साथ और मोलोटोव कॉकटेल की बोतलों को आसपास के रिक्शा की दुकानों की छत से बरामद किया था। जाँच के लिए दंगों में इस्तेमाल किए गए ईंट और पत्थरों को भी इकट्ठा किया गया था।
दिल्ली दंगों के समय निर्दयतापूर्वक किए गए रतन लाल की हत्या का एक वीडियो भी सामने आया था, जिसने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था। उस समय यह बात सामने आई थी कि पुलिस ने भीड़ के पास जाकर उनसे बात की थी। पुलिस ने उनसे शांत रहने और उनके द्वारा जारी अवैध मार्च को बंद करने के लिए कहा था। इसके बाद भीड़ भड़क गई और पुलिसवालों पर हमला कर दिया।
रतन लाल की हत्या में दायर चार्जशीट में एक चौकाने वाला तथ्य सामने आया है। चार्जशीट को पढ़ने के बाद ऑपइंडिया ने पाया कि जाँच के दौरान कई गवाहों ने इस बात की पुष्टि की थी कि इस्लामी भीड़ ने रतन लाल की हत्या से पहले, अन्य पुलिस अधिकारी को भी बंधक बनाया था।
बता दें उस क्षेत्र में दो बीट पुलिस इंस्पेक्टर भी मौजूद थे। इन पर क्षेत्र में कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी थी। भीड़ ने सीएए के विरोध में एक अवैध मार्च निकालने का फैसला किया था। उन्होंने भी इन तथ्यों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था।
चार्जशीट में में यह बताया गया कि मुख्य आरोपितों में से एक सलीम मुन्ना दंगों से पहले मुस्लिमों को इलाके में जाकर उन्हें “अपनी ताकत दिखाने” के लिए कह रहा था। इसके साथ ही रतन लाल की हत्या से पहले दो पुलिस अधिकारियों ने यह बयान दिया था कि भीड़ पहले से ही लाठी और डंडों से लैस थी। उन्होंने आगे बताया कि वे इस मामले में सलीम मुन्ना से बात करने के लिए विरोध स्थल के तंबू में गए, ताकि भीड़ को इकट्ठा होने से रोका जा सके। अधिकारी प्रदर्शनकारियों से मिलने और उनसे बात करने के लिए कहने गए थे।
हालाँकि उस दौरान दोनों अधिकारियों को भीड़ ने बंदी बना लिया था। बड़ी मुश्किल से वे वहां से भागने में सफल हुए। इस बात की गवाही एक मुस्लिम पीड़ित ने भी दी थी, जिसका बयान चार्जशीट में लगाया गया है।
दिसंबर 2019, में कट्टरपंथी इस्लामवादियों की भीड़ ने देश के अलग अलग हिस्सों में दंगों को भड़काया था। तब भी इसी तरह की एक घटना हुई थी।।
उस समय मेरठ पुलिस को एक सूचना मिली थी कि शुक्रवार को विरोध-प्रदर्शन के दौरान चीजें बहुत भयावह हो सकती हैं। शुक्रवार की नमाज के तुरंत बाद, नागरिकता संशोधन विधेयक को लागू करने के विरोध में दोपहर करीब 2 बजे जामा मस्जिद में काली पट्टी बाँधकर लोगों की भारी भीड़ इकट्ठा हुए थी। जब पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उन्होंने पुलिस के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज किया। इसके बाद 15-20 बदमाश लिसाड़ी गेट चौराहे पर पहुँचे और वहां हंगामा करना शुरू कर दिया। जैसे ही वहां भीड़ बढ़ती गई, प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बलों पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया।
प्रदर्शन के दौरान दोने तरफ से गोलियाँ भी चली। मौके पर डीएम और एसएसपी को पहुँचना पड़ा। प्रदर्शनकारी इसके बाद हापुड़ रोड पर पहुँच गए। वहां लगभग 25-30 आरएएफ पुलिस ट्रेनी को तैनात किया गया था। प्रदर्शनकारी वहां पहुँचकर गाड़ियों को तोड़ने फोड़ने लग गए। साथ ही जवानों पर पत्थरबाजी भी की।
पथराव से खुद को बचाने के लिए ट्रेनी पुलिसकर्मी पास के एक दुकान के अंदर घुस गए। लेकिन प्रदर्शनकारी वहां भी पहुँच गए। हिंसक प्रदर्शनकारियों ने दुकान का शटर बंद कर उन्हें बंधक बना लिया गया। भीड़ ने दुकान में आग लगाने की भी कोशिश की थी।
दुकान में फँसे हुए पुलिसकर्मियों ने अपने वरिष्ठ पुलिसकर्मियों को इसकी जानकारी दी। इसके बाद नौचंदी पुलिस स्टेशन से एक पुलिस बल उनकी सुरक्षा के लिए रवाना हुई। लेकिन उनके वाहनों को भी रोक दिया गया और प्रदर्शनकारियों द्वारा उन पर पथराव किया गया। हिंसक प्रदर्शनकारियों को काबू करने के लिए पुलिस ने भीड़ पर गोलियाँ चलाईं और किसी तरह फँसे हुए आरएएफ सैनिकों को बचाया। साथ ही स्थिति को भी नियंत्रण में लाया गया।
इस घटनाओं को देखते हुए यह स्पष्ट है, कि रतन लाल की हत्या के ठीक पहले टेंट में फँसे कॉन्स्टेबल बेहद खतरे की स्थिति में थे। तुरंत बाद उसी भीड़ ने कॉन्स्टेबल रतन लाल की निर्दयता से हत्या कर दी और कई अन्य लोगों को घायल कर दिया था।