तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन (Recep Tayyip Erdogan) ने शुक्रवार (10 जुलाई, 2020) को इस्तांबुल में 1500 साल पुराने ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियन कैथेड्रल हागिया सोफिया को मस्जिद में बदलने की घोषणा की है। तुर्की के एक अदालत ने पहले यह निर्देश दिया था। इससे पहले कैथेड्रल को म्यूजियम में बदलने का निर्देश दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने पुराने आदेश को ख़त्म करते हुए चर्च को मस्जिद के रूप में आवंटित करने का निर्देश दे दिया। अदालत ने कहा 1934 में कैबिनेट के फैसले के अनुसार मस्जिद के रूप में इसे उपयोग को समाप्त कर दिया गया था। साथ ही इसे एक संग्रहालय के रूप में परिभाषित किया था। उस समय लिया गया निर्णय कानूनों का अनुपालन नहीं करता था।
रिपोर्ट के अनुसार, एर्दोगन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल का रूपांतरण तुर्की के ‘संप्रभु अधिकार’ के भीतर ही था। उन्होंने बताया कि हागिया के परिसर के अंदर 24 जुलाई को पहला नमाज पढ़ा जाएगा। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि यह ऐतिहासिक इमारत स्थानीय लोगों और गैर-मुस्लिमों सहित विदेशियों के लिए भी खुला रहेगा। अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया को देखते हुए एर्दोगन ने दावा किया कि जो लोग उसके फैसले से सहमत नहीं हैं, वे तुर्की की संप्रभुता की आलोचना कर रहे है।
कथित तौर पर, हागिया सोफिया में प्रार्थना करने के लिए आह्वान किया गया था। इसके साथ इसे न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित किया गया था। वहीं तुर्की के अधिकारियों ने इस बात को स्पष्ट किया कि चर्च के सुनहरे गुंबद पर वर्जिन मैरी के मोज़ाइक को नहीं हटाया जाएगा। यह ऐतिहासिक इमारत हर साल 37 लाख विजिटर्स को आकर्षित करता है।
कंज़र्वेटिव मुस्लिम बैकग्राउंड से आने वाले एर्दोगन का हाथ इस फैसले के पीछे बताया जा रहा है। उन्होंने हाल ही में तुर्की की धर्मनिरपेक्ष परंपराओं को तोड़ने की अध्यक्षता की थी। लोगों का मानना है कि एर्दोगन ने तेजी से बढ़ते इस्लामीकरण के चलते अपने अनुयायियों के कट्टरपंथी विचारों को पूरा करने के लिए राजनीति का फायदा उठाते हुए, इस पूरे घटनाक्रम को अंजाम दिया है।
हागिया सोफिया का इतिहास
इस इमारत को बाइजेंटाइन सम्राट जस्टिनियन I के आदेश से 537 में एक भव्य चर्च के रूप निर्मित किया गया था। इसे दुनिया का सबसे बड़ा चर्च माना जाता था। 1453 में ओटोमन शासन के दौरान इसे मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया। उससे पहले बाइजेंटाइनों ने इसे सदियों तक संभाला था।
सुल्तान मेहमेद II के कब्जा करने से पहले इसे इस्ताम्बुल शहर को कॉन्स्टेंटिनोपोल के नाम से जाना जाता था। उसने ही तब गिरजाघर के भीतर जुमे की नमाज शुरू की थी। जिसके बाद चार मीनारों को मूल संरचना के साथ में जोड़ा गया था। इतना ही नहीं ईसाई मोज़ेक को इस्लामी चित्रकला के साथ ढक दिया गया था।
इसे 1453 में मॉडर्न तुर्की के संस्थापक केमल अतातुर्क द्वारा एक संग्रहालय का दर्जा दिया गया था। लेकिन, अब यहाँ के सभी चीजों को बदलने की तैयारी की जा रही है। हालाँकि, हागिया सोफिया लंबे समय से मुस्लिम-ईसाई प्रतिद्वंद्विता का प्रतीक रही है।
लगभग 900 वर्षों तक, हागिया सोफिया को पूर्वी ईसाइयों के लिए का तीर्थस्थल माना जाता था। तीर्थ स्थल पर रखे गए कलाकृतियों में ईसा मसीह का मूल क्रॉस भी शामिल था। सदियों से, ईसाई तीर्थयात्री इन सभी वस्तुओं से आत्मिक शांति प्राप्त करते आ रहे हैं।
यूनेस्को ने की इस कदम की आलोचना
1500 साल पुराने चर्च को मस्जिद में बदलने के फैसले को लेकर संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने दुख व्यक्त किया है। इसके साथ ही उन्होंने तुर्की से इस मुद्दे पर बातचीत करने का फैसला लिया। उन्होंने तुर्की से विश्व विरासत को संरक्षित करने और परिवर्तन न करने का आग्रह किया। कथित तौर पर, तुर्की के इस फैसले की पूर्वी रूढ़िवादी चर्च, ग्रीस और रूस के चर्च ने भी आलोचना की थी।
गौरतलब है कि केगल अतातुर्क ने जब हागिया सोफिया को संग्रहालय की स्थिति के साथ उसकी धर्मनिरपेक्ष विरासत का पता लगाने की कोशिश की थी, तब एर्दोगन ने उसे इसके लिए धमकी दी थी। खबरों के अनुसार, राष्ट्रपति एर्दोगन ने देश में मुस्लिम कट्टरपंथियों को खुश करने और देश में कोरोनावायरस महामारी के गंभीर स्थिति से सबका ध्यान भटकाने के लिए यह फैसला लिया है।