केरल के एक 52 वर्षीय कैथोलिक पादरी रॉबिन वडक्कमचेरी (Robin Vadakkumchery), जिसे इस वर्ष की शुरुआत (फरवरी 2020) में ही एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार करने के आरोप में 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी, ने केरल उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और इस बलात्कार की शिकार लड़की से शादी करने की अनुमति मांगी है।
संयोग की बात यह है कि सिर्फ रॉबिन ही नहीं बल्कि पीड़िता ने भी संयुक्त रूप से शादी के लिए याचिका दायर की है। हाईकोर्ट ने इस संबंध में पुलिस रिपोर्ट मांगी है। इस मामले की सुनवाई शुक्रवार (जुलाई 17, 2020) को होगी।
रिपोर्ट्स के अनुसार, आरोपित पादरी ने उच्च न्यायालय में यह दलील देने की कोशिश की है कि वह उस लड़की से शादी कर सकता है, जिसका कि उसने बलात्कार किया था और उसे गर्भवती किया था।
इस साल फरवरी माह में, पादरी को कन्नूर के थालास्सेरी, जो कि POCSO अधिनियम के मामलों की सुनवाई के लिए नामित अदालत है, में एक अतिरिक्त जिला सत्र अदालत द्वारा एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार करने और अभद्रता करने के आरोपों का दोषी पाया गया था।
केरल के 52 वर्षीय कैथोलिक पादरी को 20 साल सश्रम कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद, उसे पोप फ्रांसिस ने पादरी के कामों यानी सभी प्रार्थना कर्तव्यों और अधिकारों से भी बर्खास्त कर दिया था।
अदालत ने पीड़िता के माता-पिता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही का भी आदेश दिया था। लड़की की कस्टडी लीगल सर्विसेज सोसाइटी को दी गई और अन्य छह आरोपितों को बरी कर दिया गया था।
पादरी वडक्कमचेरी कन्नूर में चर्च के अंतर्गत चलने वाले स्कूल का मैनेजर भी था। इसी स्कूल में 11वीं क्लास में पीड़िता छात्रा पढ़ती थी। मई 2016 में 16 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार करने के आरोप में पादरी को फरवरी 27, 2017 की रात को कोच्चि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास से उस समय गिरफ्तार किया गया था जब वह देश छोड़ने की फिराक में था। पुलिस ने कहा कि लड़की के साथ पादरी के कमरे में ही कई बार बलात्कार किया गया था।
स्कूली बच्चों के बीच काम करने वाली एक चाइल्ड लाइन एजेंसी (Child Line agency) ने पादरी के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी। साल 2017 में नाबालिग लड़की द्वारा 07 फरवरी को चर्च द्वारा संचालित क्राइस्ट राजू अस्पताल में पीड़िता ने बच्चे को जन्म दिया था, जिसके बाद यह मामला सामने आया और पादरी पर कार्रवाई को लेकर दबाव बढ़ गया था।
रॉबिन वडक्कमचेरी ने पुलिस को घटना की सूचना नहीं देने के लिए ‘पुरस्कार’ के रूप में अस्पताल को ‘दान’ भी दिया था। पुलिस की शुरूआती जाँच के अनुसार, प्रसव के बाद वायनाड में क्रिस्टु दासी कॉन्वेंट से नेलयाली थैंकम, डॉ लिज़ मारिया और सिस्टर अनीता ने अस्पताल से बच्चे को कार में रखकर वायनाड के एक अनाथालय में ले गईं।
पादरी ने बचने की काफी कोशिशें की। यहाँ तक कि सुनवाई के दौरान पीड़िता और उसकी मां बलात्कार की बात से मुकर भी गए थे। फिर भी अदालत ने साक्ष्यों के आधार पर अपना फैसला सुनाया।
जब पुलिस ने एक मामला दर्ज किया, तो उसने पीड़िता के पिता (जो कि एक गरीब मजदूर है) को यह स्वीकार करने के लिए विवश किया कि उसने ही अपनी बेटी के साथ बलात्कार किया और अब वह एक और बच्चे को जन्म देने वाली है।
सुनवाई के दौरान पीड़िता के पिता और उसकी बेटी ने भी यही बात स्वीकारी कि उसके पिता ने ही उसका बलात्कार किया लेकिन NGO की ख़ुफ़िया रिपोर्ट्स के आधार पर आखिर में सच सामने आ सका।
अदालत की कार्यवाही के दौरान, पीड़िता के साथ-साथ उसके परिवार ने भी दुश्मनी कर ली थी। हालांकि, अभियोजन पक्ष ने सरकारी डॉक्टर के बयान पर भरोसा किया और यह साबित किया कि लड़की नाबालिग थी और यौन संबंध, भले ही वह नाबालिग की सहमति हो, केवल बलात्कार माना जा सकता था।
चर्च के स्वामित्व वाले मीडिया संगठनों ने खुले तौर पर बलात्कार और बलात्कारी को बचाने के शर्मनाक ब्यान दिए और उल्टा पीड़िता को ही इसके लिए लज्जित करने का प्रयास किया। एक कैथोलिक अखबार, ‘संडे शालोम’ ने एक संपादकीय में यह बात कही –
“इस घटना में 15 वर्ष की लड़की से भी ज्यादा लोग पाप के भागीदार हैं। अपनी बेटी की ही तरह तुम्हें मानकर मैं कह रहा हूँ, बेटी तुम्हारी भी गलती थी। सबसे पहले भगवान के लिए तुम्हारी जवाबदेही होगी। तुम यह क्यों भूल गई कि पादरी कौन था? तुम यह क्यों नहीं जानते कि एक पादरी की पवित्रता यीशु के हृदय की पवित्रता के बराबर है। उसके पास मानव शरीर है, जो प्रलोभन में आ सकता है। अगर वह कुछ देर के लिए अपना दायरा भूल भी गया था तो तुमने उसे रोका क्यों नहीं या उसे गलत क्यों नहीं ठहराया?”