सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के उपरांत भी दूध में हो रही मिलावट रोकने की ओर प्रशासन की साफ अनदेखी; मिलावटखोरों सहित अनदेखी करनेवाले अधिकारियों पर भी कार्यवाही करने की ‘आरोग्य साहाय्य समिति’ की मांग !
मुंबई – लोगों के दैनिक जीवन सेे संबंधित तथा जीवन के लिए अत्यावश्यक दूध में मिलावट केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, अपितु देशस्तर पर एक गंभीर विषय बन गया है । इसकी गंभीरता को ध्यान में लेकर दूध और खाद्य पदार्थों में हो रही मिलावट कैसे पहचानें ? इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देने के स्पष्ट आदेश दिए हैं; परंतु राज्य के सोलापुर, जलगांव और कोल्हापुर जनपदों में इस संबंध में ठोस कार्यवाही नहीं की गई है, यह आरोग्य साहाय्य समिति को सूचना के अधिकारों के अंतर्गत मिली जानकारी में ज्ञात हुुआ है । दूध की मिलावट के मानवी जीवन पर हो रहे दुष्परिणामों को ध्यान में रखते हुए, इसे रोकने के लिए गंभीरता से प्रयत्न करने के स्थान पर ये कृत्य दिन प्रतिदिन बढ ही रहे हैं । ध्यान में आ रहा है कि प्रशासन इस गंभीर विषय की साफ अनदेखी कर रहा है । इससे यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या मिलावटखोरों और प्रशासकीय अधिकारियों की मिलीभगत है । इसलिए इससे आगे दूध में मिलावट करनेवालों सहित कर्तव्य का पालन न करनेवाले अधिकारियों पर भी सरकार कठोर कार्यवाही करे, ऐसी मांग ‘आरोग्य साहाय्य समिती’ ने पत्र द्वारा राज्य के स्वास्थ्य मंत्री, प्रधान सचिव (सार्वजनिक स्वास्थ्य) तथा खाद्य और औषधि प्रशासन विभाग के आयुक्त से की है ।
वर्ष २०१२ में दूध में मिलावट के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में प्रविष्ट याचिका पर सुनवाई के समय न्यायालय ने स्पष्ट आदेश दिए थे कि दूध की मिलावट के दुष्परिणामों के संबंध में नागरिक और विद्यार्थियों को जानकारी दी जाए । उसके लिए अन्न व औषधि प्रशासन विद्यालयों में कार्यशाला लेकर दूध अन्य पदार्थों में हो रही मिलावट को कैसे पहचानें, इस विषय में प्रशिक्षण दे; परंतु सूचना के अंतर्गत मिली हुई जानकारी में यह उजागर हुआ है कि, महाराष्ट्र में इस संबंध में जलगांव और सोलापुर जनपदों में कोई कार्यवाही नहीं की गई है तथा कोल्हापुर में केवल ९ विद्यालयों में ‘मिलावट कैसे पहचानें ?’ इस संबंध में उद्बोधन किया गया है । कोल्हापुर सर्वाधिक दूध उत्पादन करनेवाला जनपद है तथा वहां केवल ९ विद्यालयों में उद्बोधन होना, यह अत्यंत गंभीर बात है । न्यायालय के आदेश के उपरांत भी इस संबंध में प्रशासनद्वारा कोई ठोस कार्यक्रम कार्यान्वित नहीं हो रहे हैं, यही इससे दिखाई देता है ।
एक सर्वेक्षण में उजागर हुआ है कि, राज्य का ७९ प्रतिशत दूध मिलावटयुक्त है । मुंबई की झोपडपट्टियों में दूध में मिलावट करनेवाली टोलियां कार्यरत हैं । कुछ महीनों पूर्व पंढरपुर में भारत में प्रतिबंधित ‘मेलामाईन’ नामक विषैले द्रव्य का उपयोग दूध में किए जाने की धक्कादायक जानकारी सामने आई थी । दूध में मिलावट करने के लिए उपयोग में लाया जानेवाले यूरिया, ग्लूकोज, डिटर्जेंट पावडर तथा दूध को ताजा बनाए रखने के लिए उपयोग में लाया जानेवाला सोडियम बाइकार्बोनेट, सोडियम हाइड्रॉक्साईड आदि का स्वास्थ्य पर विपरीत परिणाम होता है । मिलावटी दूध के कारण कर्करोग, क्षयरोेग आदि विकार उत्पन्न होते हैं ।
दूध और खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने के लिए वर्ष २०१८ में महाराष्ट्र की विधान सभा में आजन्म कारावास का दंड देने का प्रस्ताव पारित हुआ है । ऐसा होते हुए भी यह रोकने की प्रशासकीय अधिकारियों की मानसिकता दिखाई नहीं देती । इसमें प्रशासकीय अधिकारी, पुलिसवालों के मिलावटखोरों के साथ आर्थिक संबंध तो नहीं हैं ?, इसकी भी सरकार पूछताछ करे, ऐसी हमारी मांग है ।