आज रक्षाबंधन है। इस त्योहार की अहमियत हमारे लिए शब्दों से परे है। भाई-बहन के रिश्ते का एक अहम दिन। लेकिन अफ़सोस कुछ लोगों को आज के दिन भी सुकून नहीं है। महत्वपूर्ण त्योहार भी उनके एजेंडे से अछूता नहीं है। एक इतिहासकार ने इस कड़ी में में रक्षाबंधन को मुग़लों का त्योहार बता दिया।
राना साफ़वी कथित तौर पर इतिहासकार हैं, लेकिन आज के दिन अलग ही भूमिका निभा रही हैं। वह लिखती हैं, “बहुत से लोग नहीं जानते हैं पर रक्षाबंधन एक मुग़ल त्योहार है। यह कहीं और से नहीं बल्कि दिल्ली से शुरू हुआ था।” इसके अलावा साफ़वी ने अपनी इस दलील को साबित करने के लिए एक घटना भी जोड़ी है।
This "eminent historian" declares that Mughals invented Rakhi in 18th century.
Such blatant lies contradict every available primary source. Anyone having elementary knowledge would laugh at these factually incorrect lies. But in India such authors are promoted by establishment pic.twitter.com/r6A4lJgscz
— True Indology (@TIinExile) August 3, 2020
साफ़वी अपनी किताब City of my heart में लिखती हैं, “साल 1759 में वज़ीर गाज़ी-उद-दीन खान फिरोज़ जंग 3 ने मुग़ल शासक आलमगीर 2 को फुसलाकर बुलाया। वह आलमगीर को फिरोज़ शाह कोटला की जामा मस्जिद से हटाना चाहता था। आलमगीर इसके लिए तैयार हो गया और वह अकेले ही मस्जिद के भीतर गया जहाँ वजीर घात लगा कर उसका इंतज़ार कर रहा था। उन्होंने आलमगीर को छूरा घोंपा और इसके बाद यमुना नदी में फेंक दिया।”
How a Hindu woman came to tie a rakhi to a Mughal emperor is a story that has been documented in a couple of Urdu accounts from the second half of the 19th century.
I translated some later as #CityofMyHeart
Do read https://t.co/o2FmeXqNZE— Rana Safvi رعنا राना (@iamrana) August 3, 2020
अगले दिन एक हिंदू महिला ने आलमगीर को पहचाना। फिर महिला ने उसका सिर अपने गोद में रखा। फिर आलमगीर के वारिस शाह आलम 2 ने उस महिला को उसकी (आलमगीर) बहन घोषित कर दिया। तब से उस दिन का नाम ‘सलोना त्योहार’ (रक्षा बंधन) रख दिया गया। वहीं से राखी और मिठाइयों की शुरुआत हुई, यह रिवाज़ बहादुर शाह ज़फ़र के लाल किले से हटने तक चला था।
खैर यह तो मामले का एक पक्ष है। लेकिन राना साफ़वी सरीखे इतिहासकारों को हमेशा एक पक्ष ही पता होता है। या यूँ कहें वह एक पक्ष की समझते हैं और एजेंडे की सूरत देकर उसका ही प्रचार कहते हैं। सनातन पद्धति में सबसे अच्छी बात यही है कि हर मान्यता, परंपरा, त्योहार के पीछे एक नहीं बल्कि अनेक तथ्य और तर्क हैं। रक्षाबंधन की ही बात करें तो ऐसे अनेक दृष्टांत हैं जो साफ़वी की एजेंडा नुमा बातों को सिरे से खारिज करते हैं।
रक्षाबंधन का उल्लेख महाभारत के समय से ही मिलना शुरू हो गया था। यह उल्लेख मिलता है द्रौपदी और कृष्ण के बीच। श्री कृष्ण की ऊँगली से खून निकल रहा था। तभी द्रौपदी ने अपनी साड़ी का छोटा सा हिस्सा निकाल कर कृष्ण की कलाई में बांध दिया। बदले में कृष्ण ने भी वादा किया कि वह हमेशा द्रौपदी की रक्षा करेंगे। यही कारण था कि जब कौरवों और पांडवों की भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था। तब श्री कृष्ण ने द्रौपदी की मदद की।
रक्षाबंधन का दूसरा बड़ा उल्लेख मिलता है भविष्य पुराण में। जिसके मुताबिक़ इंद्र देव को शुचि (इंद्राणी) ने राखी बांधी थी। इसके अलावा विष्णु पुराण में उल्लेख मिलता है कि राजा बाली को लक्ष्मी ने राखी बांधी थी। इस त्योहार से जुड़ी यमराज और यमुना की कहानी भी काफी प्रचलित है। इस तरह की न जाने कितनी और कहानियाँ हैं जो रक्षाबंधन का प्राचीन इतिहास साबित करती हैं।
True Indology नाम के ट्विटर एकाउंट ने साफ़वी के इस दावे को कारिज करते हुए ट्वीट किया है। कुछ इस तरह रक्षाबंधन मनाया जाता है,
श्रावण/ सावन माह की पूर्णिमा के दिन “श्रावणी उपाक्रम” किया जाता है। इस दिन सनातन धर्म के लोग अपना यज्ञोपवीत (जनेऊ) बदलते हैं। श्रावणी, शरीर को शुद्ध करने की प्रक्रिया भी कही जाती है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षिका (रक्षा सूत्र) बांधती हैं। यहाँ तक कि आम लोग अपने प्रियजनों को भी सूत्र बांधते हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करते हैं।
Then, the Brāhmaṇ tied a thread called rakṣikā to the wrist of people.
This thread is an oath of protection. Sons tied it to their fathers. Sisters to their brothers. Brahmans to Kshatriyas, Vaishyas and Shudras. Even lovers to their beloved (2)
— True Indology (@TIinExile) August 15, 2019
इन बातों के अलावा रक्षा बंधन से संबंधित एक संस्कृत का श्लोक है
येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वां मनुबध्नामि, रक्षंमाचल माचल।।
इसका अर्थ यह है कि रक्षासूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान से कहता है,
जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बँधन में बांधे गए थे अर्थात धर्म में प्रयुक्त किए गए थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूँ, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूँ। इसके बाद पुरोहित रक्षासूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।