कोरोना महामारी के काल में हिन्दू विधिज्ञ परिषद ने जनहित याचिका प्रविष्ट कर पुलिस के अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाई ! – अधिवक्ता अमृतेश एनपी, कर्नाटक उच्च न्यायालय, बेंगलुरू
फोंडा : कोरोना महामारी की अवधि में कर्नाटक सरकार ने यातायात बंदी लागू की । उस अवधि में कर्नाटक में पुलिस प्रशासन की ओर से लोगों पर पशुवत अत्यचार होने की बात ध्यान में आई । ब्रिटिशों के कार्यकाल में जिस प्रकार आंदोलन करनेवाले नागरिकों पर लाठियों से प्रहार किया जाता था, पुलिसकर्मी लोगों पर उसी प्रकार के अत्यचार कर रहे थे । इस काल में पुलिस के लाठी प्रहार तथा अत्याचारों के कारण लगभग १० लोगों की मृत्यु होने की बात मेरे ध्यान में आई । हिन्दू विधिज्ञ परिषद ने इसका संज्ञान लिया । मैंने इस प्रकरण में कर्नाटक उच्च न्यायालय में पुलिस प्रशासन के विरुद्ध जनहित याचिका प्रविष्ट की । इस याचिका के पश्चात बेंगलुरू के पुलिस उपमहानिदेशक ने पुलिसकर्मियों को ‘आप अपनी लाठियों को पुलिस थाने में रखकर काम करें, सार्वजनिक स्थानों पर लोगों के साथ सभ्यतापूर्ण व्यवहार करते हुए सडक पर ध्वनिवर्धक आदि साधनों का उपयोग कर लोगों से घर में रहने का अनुरोध कीजिए’, इस आशय के निर्देश दिए । इस जनहित याचिका के कारण लोगों में जागृति हुई और उसके पश्चात प्रशासन की अनास्था से संबंधित विविध विषयों पर जनहित याचिकाएं प्रविष्ट की गईं । कर्नाटक के अधिवक्ता अमृतेश एनपी ने ऑनलाइन ‘नवम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ के ७वें दिन के सत्र में यह जानकारी दी । उन्होंने ‘कोरोना महामारी के समय प्रशासनिक स्तर पर जागृति लाने हेतु किए गए न्यायिक संघर्ष’ विषय पर मार्गदर्शन किया ।
पशुहत्या के संदर्भ में कठोर दंड प्रावधानों से युक्त विधियों की आवश्यकता ! – अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, अध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद
वर्ष १९६० में बनी ‘पशु संरक्षण विधि’ अनुपयोगी है । इस विधि में अनुच्छेद २८ के अनुसार पशुओं के साथ अमानवीय व्यवहार करना अपराध है; परंतु धार्मिक कारणों के लिए अमानवीय व्यवहार करना अपराध नहीं है । इस विधि के अनुसार प्रत्येक जनपद में ‘जिला पशु क्लेशविरोधी समिति’ होनी चाहिए; परंतु इसका पालन होता दिखाई नहीं देता । इस विधि के अनुसार अपराधी को बहुत अल्प दंड मिलता है; इसलिए अपराधियों में इस विधि का भय नहीं रह गया है । एक ओर दूध में मिलावट करने के कारण दंड मिलता है, तो उसकी तुलना में दूसरी ओर दुधारु पशुओं की हत्या करने पर बहुत हलका दंड मिलता है । यह कैसा न्याय है ? पशुहत्या के संदर्भ में पुरानी विधियों में संशोधन कर कठोर दंड प्रावधानों से युक्त विधियां बनानी आवश्यक है ।
वर्ष २०१० के आंकडों के अनुसार राजस्थान और मध्य प्रदेश से ५० से ६० लाख गोवंश बंगाल भेजे जाते हैं । वहां से उन्हें बांग्ला देश भेजा जाता है । इससे मिलनेवाला पूरा पैसा आतंकवादी और जिहादी गतिविधियों के उपयोग में आता है, अधिवक्ता इचलकरंजीकर ने इसकी ओर भी ध्यान आकर्षित किया ।
सर्वत्र फैली भ्रष्ट व्यवस्था बदलने हेतु ‘सुराज्य अभियान’ में सम्मिलित हों ! – श्रीमती अश्विनी कुलकर्णी, समन्वयक, ‘आरोग्य साहाय्य समिती’, गोवा
भारत में आज भी ब्रिटिशकालीन विधियों का उपयोग किया जा रहा है । संपूर्ण देश में वर्तमान में ३.५ करोड से भी अधिक अभियोग लंबित हैं । प्रसारमाध्यमों द्वारा हिन्दूद्वेष फैलाया जा रहा है । प्रतिदिन प्रत्येक नागरिक को भ्रष्ट व्यवस्था का सामना करना पड रहा है । आज के समय में लोकतंत्र के चारों स्तंभों के असफल सिद्ध होने से सर्वत्र फैली भ्रष्ट व्यवस्था बदलने हेतु हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ‘सुराज्य अभियान’ चलाया जा रहा है । ‘महानगरपालिका में चल रहे भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान चलाना’, ‘पेट्रोल, साथ ही अन्नपदार्थों में हो रही मिलावट के विरुद्ध आवाज उठाना’, ‘रोगियों से आर्थिक लूट करनेवाले चिकित्सालयों की शिकायत करना’, ‘चिकित्सालयों में जमा होनेवाले कचरे की व्यवस्था करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण विभाग से शिकायत करना’, ‘मास्क खरीद में हो रहे घोटाले उजागर करना’, ‘सरकारी चिकित्सालयों को मिलनेवाली धनराशि में हो रहे भ्रष्टाचार की जानकारी प्राप्त करना’, जिलाधिकारी कार्यालय में ‘डिजीटलाइजेेशन’ के नाम पर अन्य संस्थाओं को दिए जानेवाले ‘टेंडर्स’ में हो रहे भ्रष्टाचार उजागर करना’ आदि माध्यमों से इस अभियान में सहभागी हो सकते हैं ।
नई शिक्षाप्रणाली में भारत का उत्थान करनेवाली शिक्षाप्रणाली अंतर्भूत की जाए ! – सद़्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति
अंग्रेजों के आने से पूर्व भारत में ७ लाख गुरुकुल थे । उनमें सभी जातियों के लोगों के शिक्षा ग्रहण करने की व्यवस्था थी । यहां का पूरा समाज शिक्षित था । ऐसा होते हुए भी वर्ष १९४७ में भारत में केवल १३ प्रतिशत लोग शिक्षित थे । अंग्रेजों द्वारा की गई आर्थिक लूट के कारण यहां का समाज शिक्षा छोडकर पेट पालने के पीछे लग गया । भारतीय शिक्षाप्रणाली नष्ट करने का काम लॉर्ड मेकॉले के काल से आरंभ हुआ । मैकॉले ने वर्ष १९२० में इंग्लैंड को भेजे गए ब्योरे में भारतीय पारंपरिक शिक्षाप्रणाली को नष्ट करने का सुझाव दिया था । स्वतंत्रता के पश्चात भारत सरकार को पारंपरिक शिक्षाप्रणाली अपनाना अपेक्षित था; परंतु वैसा न कर अंग्रेजों की शिक्षाप्रणाली को ही आगे बढाने का षड्यंत्र किसका था ? भारत की पारंपरिक शिक्षाप्रणाली, संस्कृति और परंपराओं को नष्ट करने के लिए जवाहरलाल नेहरू उत्तरदायी हैं । नेहरू ने शिक्षा क्षेत्र में वामपंथी विचारधारा को बल दिया । वामपंथियों ने इतिहास में भारत के गौरवशाली तथा स्वतंत्रता के संघर्षमय आंदोलान को स्थान न देकर ‘मार्क्सवादी’, मुगलों और अंग्रेजों का इतिहास पढाया । लेनिन और स्टैलिन के हत्याकांडों के मार्क्सवाद का वास्तविक इतिहास दबाकर वामपंथियों ने समाज के सामने केवल उसके सकारात्मक और मीठे रूप रखे । नेहरू के पश्चात इंदिरा गांधी ने प्रसारमाध्यमों और विश्वविद्यालयों को वामपंथियों के हाथ में सौंपकर उससे भी आगे कदम बढाए । इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता कायम रखने हेतु वामपंथियों को राजाश्रय दिया । वामपंथियों की शिक्षाप्रणाली से उत्पन्न भारतीय युवापीढी, प्रशासन, न्यायतंत्र और राजकर्ता भारतीय परंपरा को नीचा एवं तुच्छ मानने लगे ।
कांग्रेस और नेहरू गांधी विचारों के समर्थक माने जाते हैं; परंतु गांधी को हिंसक कम्युनिस्टों की विचारधारा कभी भी स्वीकार्य नहीं थी । गांधी ने रामराज्य का समर्थन किया था; परंतु नेहरू ने गांधी के विचारों की हत्या कर भारत में मार्क्सवादी विचारों को आगे बढाया । स्वतंत्रता के पश्चात जनता को अंधेरे में रखकर वामपंथी विचारधारावाली शिक्षाप्रणाली भारत में लागू की गई, जो लोकतंत्र की हत्या थी । इसके लिए कांग्रेस और वामपंथी ही उत्तरदायी हैं । वामपंथी इतिहासकारों का गिरोह बनाकर भारत की संस्कृति और परंपराएं नष्ट की गईं । हाल ही में नई शिक्षाप्रणाली लागू की गई है । इस शिक्षाप्रणाली में वामपंथी विचारधारा के पाप धोकर भारत का उत्थान करनेवाली शिक्षाप्रणाली अंतर्भूत करना आवश्यक है ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का द्रष्टापन !
‘संकटकाल आनेवाला है’, सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी विगत ४-५ वर्षों से निरंतर ऐसा कहते आए हैं । आजकल कोरोना महामारी के कारण केवल भारत में ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व में जो स्थिति उत्पन्न हुई है, उसे देखते हुए ‘परात्पर गुरदेवजी ने इस संकटकाल के संदर्भ में हमें पहले ही सूचित कर दिया था’, यह बात हमारे ध्यान में आती है । – अधिवक्ता अमृतेश एनपी