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धर्मशास्त्र में बताए ‘आपद्धर्मा’ के अनुसार गणेशोत्सव मनाएं – श्री. चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ‘आपातकाल में गणेशोत्सव कैसे मनाएं ?’ इस विषय पर विशेष परिसंवाद

वर्तमान में कोरोना के कारण बाहर निकलने की मनाई है । ऐसे समय पर धर्म का अभ्यास न करते हुए प्रशासन, स्थानीय स्वराज्य संस्था, स्वयंसेवी संगठन और तथाकथित आधुनिकतावादी ‘मन को जो योग्य लगे ऐसे’ विकल्प गणेशोत्सव के विषय में सुझाते हैं । उदा. वनस्पति के बीज से युक्त गणपति, पंचगव्य, फिटकरी अथवा कागद की लुगदी से बनी मूर्तियों की प्रतिष्ठापना करना; गणेशमूर्ति सैनिटाईज करना; गणेशमूर्ति में से पौधा आने पर उसे गमले में,  अमोनियम बायकार्बोनेट में, कृत्रिम हौद में विसर्जन करना; इस वर्ष मूर्ति विसर्जन न करते हुए अगले वर्ष उसका विसर्जन करना आदि धर्मशास्त्र के विरुद्ध विकल्प सुझाए जा रहे हैं । इससे गणेशभक्तों में संभ्रम का वातावरण निर्माण हुआ है । सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस ने आवाहन किया है कि गणेशभक्त इन अशास्त्रीय आवाहनों की बलि न चढते हुए धर्मशास्त्र में बताए अनुसार ‘आपद्धर्मा’ नुसार गणेशोत्सव मनाकर, श्रीगणेश की कृपा संपादन करें । वे हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित ‘आपातकाल में गणेशोत्सव कैसे मनाएं ?’ इस विशेष परिसंवाद में बोल रहे थे ।

श्री. राजहंस ने आगे कहा, जिस भाग में कोरोना का प्रादुर्भाव न हो और यातायात बंदी लागू न हो, वहां हमेशा की भांति गणेशोत्सव मनाएं । संसर्गजन्य और प्रतिबंधित स्थानों पर आपद्धर्म (आपातकाल में धर्मशास्त्र को मान्य कृति) के रूप में अपने घर में उपलब्ध गणेश की मूर्ति अथवा गणेश के चित्र का षोडशोपचार पूजन करें; परंतु पूजन करते समय ‘पूजा की ‘प्राणप्रतिष्ठापना’ विधि न करें । 6-7 इंच की छोटी गणेशमूर्ति का पूजन करने पर उसे उत्तरपूजा के उपरांत पानी के बडे बर्तन में रखकर उसमें विसर्जित करें । तदुपरांत वह मिट्टी और पानी तुलसी वृंदावन, गूलर, शमी, बरगद आदि वृक्षों की जड में अर्पित करें । गणेशमूर्ति बडी हो तो उसे पूजाघर के निकट अथवा अन्य सात्त्विक स्थानों पर रखकर श्राद्धपक्ष के काल के पश्‍चात जब भीड न हो, तब शासन के नियमों का पालन कर बहते पानी में विसर्जित करें ।

इस अवसर पर हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्ट्र संगठक श्री. सुनील घनवट ने कहा, ‘10 किलो की कागदी लुगदी से 1000 लीटर पानी प्रदूषित होता है । इसलिए वर्ष 2016 में ‘राष्ट्रीय हरित लवादा’ ने कागदी लुगदी की मूर्ति पर प्रतिबंध लगाया था । इसलिए पर्यावरणपूरक के लुभावने नाम से इस मूर्ति का प्रसार करना नियम के विरुद्ध है । विसर्जन के लिए अमोनियम बायकार्बोनेट के उपयोग से विविध शारीरिक व्याधियां उत्पन्न होने से यह विकल्प भी अपायकारक है । यह अनेक बार उजागर हुआ है कि लाखों रुपये खर्च कर कृत्रिम हौद में विसर्जित मूर्ति रात्रि के समय पुन: तालाब, नदी अथवा समुद्र में ही विसर्जित की गईं हैं । इससे पैसों का अपव्यय होता है । इसके स्थान पर गणेशभक्तों को तेलंगणा राज्य सरकार की भांति यातायात और बहते जलस्त्रोत में मूर्ति विसर्जन की व्यवस्था उपलब्ध करवाई जाए ।’ इस अवसर पर हिन्दू विधिज्ञ परिषद के संगठक अधिवक्ता नीलेश सांगोलकर बोले, ‘वर्ष के 365 दिन अब्जों लीटर कारखानों के अतिदूषित और विषैले पानी से होनेवाले प्रदूषण पर कुछ नहीं बोलते; परंतु गणेशोत्सव के समय अचानक निद्रा से जागनेवालों से उत्तर मांगना चाहिए । इसके साथ ही विशिष्ट स्थानों पर मूर्ति विसर्जन के लिए दबाव डालनेेवालों पर कानूनन कार्यवाही के लिए गणेशभक्तों को परिवाद (शिकायत) करना चाहिए ।’

‘फेसबुक’ और ‘यू-ट्यूब’ के माध्यम से सीधा प्रक्षेपित किया गया यह परिसंवाद 37 हजार लोगों ने प्रत्यक्ष देखा और एक लाख लोगों तक यह पहुंचा ।

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