भारत का हिस्सा था मीरपुर, पाकिस्तान ने डुबोकर किया कब्जा, ५००० लड़कियों का किया था अपहरण !

भारत का मीरपुर अब पाकिस्तान के कब्जे में !

श्रीनगर : भारत का मीरपुर अब पाकिस्तान के कब्जे में है। मीरपुर को पाकिस्तान ने झेलम नदी पर मंगला बांध बनाकर डुबो दिया। भारत में कश्मीर रियासत के विलय के समय यहां पर करीब ४० हजार हिंदू थे। इसमें दस हजार के करीब हिंदू पाकिस्तान से विभाजन के समय आ गए थे। यहां के तीन-चार हजार मुस्लिम पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में चले गए। पाकिस्तान की फौज ने जब मीरपुर पर आक्रमण किया तो अपनी लाज बचाने के लिए सैकड़ों हिंदू महिलाओं और लड़कियों ने कुएं में कूद कर जान दे दी। मीरपुर छोड़कर जा रहे परिवारों को घेरकर पाकिस्तानी फौज ने उनका कत्लेआम कर दिया। पाकिस्तानी फौज करीब पांच हजार युवा लड़कियों और महिलाओं का अपहरण कर पाकिस्तान ले गई। इन्हें बाद में मंडी लगाकर पाकिस्तान और खाड़ी के देशों में बेच दिया गया।

मीरपुर का गुरूद्वारा जो अब डैम में डूब गया है।

कश्मीरी गिड़गिड़ाते रहे, नेहरू और शेख अब्दुल्ला ने एक न सुनी

मीरपुर की हालत और यहां के लोगों को बचाने के लिए कश्मीरियों ने कई बार देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, कश्मीर के राज्य प्रमुख शेख अब्दुल्ला और तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल के सामने गुहार लगाई, पर सबने हाथ खड़े कर दिए। मीरपुर के निवासी अपने आपको भारत का अंग मानकर मदद की आस लगाए करीब तीन महीने तक इंतजार करते रहे। मदद नहीं मिली। कश्मीर में सेना की कमान नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को देकर सबसे बड़ी भूल कर दी। शेख अब्दुल्ला ने सेना को मुस्लिम बहुल इलाकों में ही भेजा, जबकि सेना की एक टुकड़ी मीरपुर के समीप ही थी। शेख ने उसे दूसरे स्थान पर भेजने के आदेश दे दिए। जब भारतीय सेना की टुकड़ी को दूसरी तरफ भेजे जाने की जानकारी पाकिस्तानी सेना को मिली, तो उसके सैनिक मीरपुर पर टूट पड़े। घर जलाए गए। महिलाओं, लड़कियों और बच्चों के साथ जुल्म की सभी सीमाएं पार कर दी गईं। मीरपुर में उस दौरान करीब १८ हजार हिंदू और सिखों को पाकिस्तानी फौज ने मार दिया।

मीरपुर की पूरी कहानी…

पाकिस्तान में अब नया मीरपुर बसा दिया गया है।

जम्मू-कश्मीर का मीरपुर आज पाकिस्तान के कब्जे में हैं। इस शहर के बारे में हम कह सकते हैं कि इसे भारत के तत्कालीन सत्ताधीशों ने तोहफे में पाकिस्तान को दे दिया। मीरपुर में झेलम नदीं पर पाकिस्तान द्वारा बनाए गए मंगला बांध में असली मीरपुर डूब गया है।नया मीरपुर इसी मंगला बांध के किनारे बसाया गया है। नया मीरपुर एक सुंदर हाईटेक शहर है। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो आने वाले दिनों में यहां से पुराने मीरपुर की यादें लोगों के दिल से मिट कर इतिहास की धूल खाती किताबों तक ही सिमट जाएंगी। आज के मीरपुर में हर परिवार का कोई न कोई व्यक्ति लंदन में जा बसा है। हर घर में कार है।

पाक सैनिकों ने मारे थे १८ हजार हिंदू और सिख…

मीरपुर का राम मंदिर।

मीरपुर में २५ नवंबर, १९४७ को लगभग १८ हजार हिंदू और सिखों को पाकिस्तानी सेना ने मार दिया था। यहां के सभी मुसलमान १५ अगस्त के आसपास बिना किसी नुकसान के पाकिस्तान चले गए थे। देश के विभाजन के समय पाकिस्तान के पंजाब से हजारों हिंदू और सिख मीरपुर में आ गए थे। इस कारण उस समय मीरपुर में हिंदुओं की संख्या करीब ४० हजार हो गई थी। मीरपुर जम्मू-कश्मीर रियासत का एक हिंदू बहुल शहर था। मुसलमानों के खाली मकानों के अलावा वहां का बहुत बड़ा गुरुद्वारा दमदमा साहिब, आर्य समाज, सनातन धर्म सभा और बाकी सभी मंदिर शरणार्थियों से भर गए थे। यही हालत कोटली, पुंछ और मुजफ्फराबाद में भी हुई।

सरकार ने छोड़ दिया भगवान भरोसे…

१९४७ में मीरपुर में मारे गए लोग।

मीरपुर और आसपास के इलाकों के रियासत भारत में विलय की घोषणा (२७ अक्टूबर) से पहले ही अगस्त में पाकिस्तान में शामिल किए जा चुके थे। यह क्षेत्र महाराजा की सेना की एक टुकड़ी के सहारे था। पाकिस्तानी इलाकों से भागे हुए हिंदू और सिख यहां आ रहे थे। नेहरू सरकार ने यहां अपना कब्जा मजबूत करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया और न ही कश्मीर की तत्कालीन सरकार ने हिंदुओं की रक्षा के लिए सेना की टुकड़ी ही यहां भेजी। इधर १६ नवंबर तक बड़ी संख्या में भारतीय सेना कश्मीर आ चुकी थी। १३ नवंबर को शेख अब्दुल्ला दिल्ली पहुंच गए। १४ नवंबर को नेहरू ने मंत्रिमंडल की जल्दी में बैठक बुलवाई और सेना मुख्यालय को सेना झंगड़ से आगे बढ़ने से रोकने के आदेश दिए। मीरपुर की ओर पीर पंचाल की ऊंची पहाड़ी है। यहां तक भारतीय सेनाओं का नियंत्रण हो चुका था। परंतु आदेश न मिलने के कारण सेना आगे नहीं बढ़ी।

आखिर क्यों मारे जा रहे थे रियासत के सैनिक…

१९४७ में मीरपुर में मारे गए लोग।

मीरपुर के हालात लगातार बिगड़ते जा रहे थे। मेहरचंद महाजन ने शेख अब्दुल्ला को बताया कि मीरपुर में २५ हजार से ज्यादा हिंदू-सिख फंसे हुए हैं। उन्हें सुरक्षित लाने के लिए कुछ किया जाना चाहिए। जम्मू-कश्मीर की जो आठ सौ सैनिकों की चौकी थी, जिसमें आधे से अधिक मुसलमान थे, वे अपने हथियारों समेत पाकिस्तान की सेना से जा मिल थे। मीरपुर के लिए तीन महीने तक कोई सैनिक सहायता नहीं पहुंची। शहर में १७ मोर्चों पर बाहर से आए हमलावरों को महाराजा की सेना की छोटी-सी टुकड़ी ने रोका हुआ था। सैनिक मरते जा रहे थे। १६ नवंबर को पाकिस्तान को पता चला कि भारतीय सेनाएं जम्मू से मीरपुर की ओर चली थीं, उनको उड़ी जाने के आदेश दिए गए हैं।

शेख अब्दुल्ला ने क्यों नहीं भेजी सेना…

१९४७ में मीरपुर में मारे गए लोग।

मीरपुर में शेख अब्दुल्ला ने सेना नहीं भेजी। मीरपुर की हालत का जानकार जम्मू का एक प्रतिनिधि मंडल १३ नवंबर को दिल्ली गया। नेहरूजी ने पूरे प्रतिनिधि मंडल को कमरे से बाहर निकलवा दिया और अकेले मेहरचंद महाजन से बात की। नेहरू ने शेख अब्दुल्ला से बात करने कहा। इसके बाद यह लोग सरदार वल्लभ भाई पटेल के पास गए। सरदार ने कहा कि वह बेबस हैं। इस बात पर पंडित जी से बात बिगड़ चुकी है। पटेल ने कहा कि पंडित नेहरू कल (१५ नवम्बर, १९४७) जम्मू जा रहे हैं। आप वहां उनसे मिले सकते हैं। १५ नवंबर को जब पंडित नेहरू जम्मू पहुंचे तो हजारों लोग उनका इंतजार कर रहे थे। नेहरूजी बिना किसी से बात किए चले गए। इधर, दिल्ली में ये लोग महात्मा गांधी से मिले तो उन्होंने जवाब दिया कि मीरपुर तो बर्फ से ढंका हुआ है। उनको यह भी नहीं पता था कि मीरपुर में तो बर्फ ही नहीं पड़ती।

और क्यों जल उठा मीरपुर…

झेलम नदी के किनारे बसा पुराना मीरपुर।

२५ नवबंर को हवाई उड़ान से वापस आए एक पायलट ने बताया कि मीरपुर के लोग काफिले में झंगड़ की ओर चल पड़े हैं। शहर से आग की लपटें उठ रही हैं। इसके बाद जो हुआ, वह बहुत ही दर्दनाक है। रास्ते में पाकिस्तान की फौज ने घेर कर उनका कत्लेआम कर दिया। किसी परिवार का एक व्यक्ति मारा गया था, किसी के दो व्यक्ति। कई ऐसे थे जिनकी आंखों के सामने उनके भाइयों, माता-पिता और बच्चो को मार दिया गया था। कई ऐसे थे जो रो-रो कर बता रहे थे कि कैसे वे लोग उनकी बहन-बेटियों को उठाकर ले गए। २५ नवंबर को भारतीय सेनाओं को पता चल गया था कि मीरपुर से हजारों की संख्या में काफिला चल चुका है और पाकिस्तानी सेना ने शहर लूटना शुरू कर दिया है।

लड़कियों और महिलाओं ने कुएं में कूद कर दी जान…

मीरपुर की सड़कों पर पड़ी लाशें।

मीरपुर में उत्तर की ओर गुरुद्वारा दमदमा साहिब और सनातन धर्म मंदिर थे। इनके बीच में एक बहुत बड़ा सरोवर और गहरा कुआं था। लगभग ७५ प्रतिशत लोग कचहरी से आगे निकल चुके थे। शेष स्त्रियों, लड़कियों और बूढ़ों को पाकिस्तानी कबाइलियों (सैनिकों) ने इस मैदान में घेर लिया। आर्य समाज के स्कूल के छात्रावास में १०० छात्राएं थीं। छात्रावास की अधीक्षिका ने लड़कियों से कहा अपने दुपट्टे की पगड़ी सर पर बांधकर और भगवान का नाम लेकर कुओं में छलांग लगा दें और मरने से पहले भगवान से प्रार्थना करें कि अगले जन्म में वे महिला नहीं, बल्कि पुरुष बनें। बाद में उन्होंने खुद भी छलांग लगा दी। कुंआ इतना गहरा था कि पानी भी दिखाई नहीं देता था। ऐसे ही सैकड़ों महिलाओं ने अपनी लाज बचाई। बहुत से लोग अपनी हवेली के तहखानों में परिवार सहित जा छुपे, लेकिन वहशियों ने उन्हें ढूंढ निकाला। मर्दों और बूढ़ों को मार दिया।

हिंदू लड़कियों को ले गए पकड़ कर…

१९४७ के बाद उजड़ गया था मीरपुर।

उस दौरान पाकिस्तानी सेना ने सारी हदें पार कर चुकी थी। २५ नवंबर के आसपास पांच हजार हिंदू लड़कियों को वे लोग पकड़ कर ले गए। बाद में इनमें से कई को पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अरब देशों में बेचा गया। कबाइलियों ने बाकी लोगों का पीछा करने के बजाय नौजवान लड़कियों को पकड़ लिया और शहर को लूटना शुरू कर दिया। इसी दौरान वहां से भागे हुए मुसलमान मीरपुर वापस आ गए और शाम तक शहर को लूटते रहे। उन सबको पता था कि किस घर में कितना माल और सोना है।

दो घंटे पहले निकले काफिले का क्या हुआ…

मीरपुर का उत्तरी द्वार

मीरपुर को लूटने में लगे पाकिस्तानी सैनिकों ने यहां से करीब दो घंटे पहले निकल चुके काफिले का किसी ने पीछा नहीं किया। काफिला अगली पहाड़ियों पर पहुंच गया। वहां तीन रास्ते निकलते थे। तीनों पर काफिला बंट गया। जिसको जहां रास्ता मिला, भागता रहा। पहला काफिला सीधे रास्ते की तरफ चल दिया जो झंगड़ की तरफ जाता था। दूसरा कस गुमा की ओर चल दिया। पहला काफिला दूसरी पहाड़ी तक पहुंच चुका था, परंतु उसके पीछे वाले काफिले को कबाइलियों ने घेर लिया। उन दरिंदों ने जवान लड़कियों को एक तरफ कर दिया और बाकी सबको मारना शुरू कर दिया। कबाइली और पाकिस्तानी उस पहाड़ी पर जितने आदमी थे, उन सबको मारकर नीचे वाले काफिले की ओर बढ़ गए। इस घटनाक्रम में १८,००० से ज्यादा लोग मारे गए।

स्त्रोत : दैनिक भास्कर

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