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तिलक लगाकर, भगवा पहन एंकरिंग करना अपराध है ? : सुदर्शन न्यूज ने केंद्र के नोटिस का दिया जवाब

सुदर्शन चैनल ने ‘बिंदास बोल’ कार्यक्रम के लिए जारी किए गए शो-कॉज नोटिस का जवाब दिया है। इस कार्यक्रम में ज़कात फ़ाउंडेशन पर आरोप लगाया गया था कि उसे आतंकवादी संगठनों से आर्थिक मदद मिलती है। इस आर्थिक सहयोग से वह लोक सेवा संबंधी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे मुस्लिम उम्मीदवारों की मदद करता है। यह नोटिस सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी किया गया था।

चैनल के एडिटर इन चीफ सुरेश चव्हाणके ने ‘यूपीएससी जिहाद’ के संबंध में जारी किए गए नोटिस पर दिए गए जवाब को ट्विटर पर साझा किया है। चव्हाणके ने यह भी बताया कि नोटिस का जवाब कुल 1 हज़ार पन्नों में दिया गया है और जल्द ही इसके अन्य अहम हिस्से साझा किए जाएँगे।

उन्होंने ट्विटर पर लिखा, “आज हमने यूपीएससी जिहाद के संबंध में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी किए गए नोटिस का जवाब दिया है। उस जवाब के कवर लेटर का 5 पन्ना आप सभी के साथ साझा कर रहा हूँ। आने वाले कुछ दिनों तक हम अपने हज़ार पन्नों के जवाब के कुछ अहम हिस्से साझा करेंगे, बिंदास बोल।”

भारत सरकार को जवाब देते हुए सुरेश चव्हाणके ने अपने ट्वीट में लिखा, “हमसे कुल 13 सवाल पूछे गए थे, लेकिन हम 63 सवालों का जवाब दे रहे हैं। यह सवाल हमसे सर्वोच्च न्यायालय और सोशल मीडिया माध्यमों द्वारा पूछे गए थे। हमें ऐसा लगा कि इन प्रश्नों को संबोधित करना हमारी ज़िम्मेदारी है। हमारी तरफ से इसे एक ईमानदारी भरा प्रयास माना जाए। हमारे खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर साज़िश रही गई है, उसे उजागर करने में भी हमारी मदद की जानी चाहिए।”

गोबेल्स के लॉ ऑफ़ प्रोपोगेंडा का उल्लेख करते हुए उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, “एक झूठ को इतनी बार दोहराया जाए कि वह सच में तब्दील हो जाए।” कवर लेटर में उन प्रयासों का सिलसिलेवार तरीके से ज़िक्र है जब यूपीएससी जिहाद कार्यक्रम को बंद करने की बात हुई। साथ ही लोगों को भड़काने का भी पूरा प्रयास किया गया और सरकारी संस्थानों को इस मुद्दे पर धोखे में रखा गया।

लेटर में कहा गया है, “इतना कुछ होने के चलते खोजी पत्रकारिता पर आधारित कार्यक्रम कानूनी विवाद में फँस गया। इसके साथ देश की राष्ट्रीय सुरक्षा पर मँडराने वाले एक बड़े खुलासे का पर्दाफ़ाश अधूरा ही रह गया। इस तरह के हालातों का फायदा उठाते हुए साज़िश में शामिल सभी आरोपित सबूत मिटाने की कोशिश में जुट गए हैं। हम इकलौते ऐसे चैनल हैं जिस पर इस तरह की कार्रवाई हुई है, क्योंकि हम पूरी दुनिया की इंसानियत के दुश्मन – कट्टर इस्लामियों की सच्चाई सामने लेकर आ रहे हैं।”

इसके अलाव सुदर्शन चैनल ने यह भी आरोप लगाए कि विरोधी यूपीएससी जिहाद को बंद करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। यह असल मायनों में ‘बुद्धिजीवी स्लीपर सेल है’ जो ज़कात फ़ाउंडेशन को मिलने वाली फंडिंग के आतंकवादी कनेक्शन से देश का ध्यान हटाना चाहते हैं। सुरेश चव्हाणके ने इस बात पर भी जोर दिया कि कार्यक्रम की ब्रांडिंग ‘मुस्लिम विरोधी’ की तरह इसलिए की गई, क्योंकि उन्होंने लोगों से कार्यक्रम देखने का निवेदन किया। इसके अलावा कार्यक्रम के प्रोमो में कट्टरपंथियों की सतही मानसिकता दिखाई गई थी।

सुरेश चव्हाणके ने सवाल पूछते हुए लिखा, “हमने कुछ भारतीय संगठन और विदेशी आतंकवादियों के बीच संबंध खोज कर निकाले हैं। अगर वह आतंकवादी मुस्लिम हैं तो क्या यह हमारी गलती है? क्या समाचार प्रस्तोता बन कर तिलक लगान या भगवा वस्त्र पहनना अपराध है? मुझे अपनी पवित्र संस्कृति और पूर्वजों में पूरी आस्था है, क्या इसकी वजह से मैं मुस्लिम विरोधी बन जाता हूँ?”

23 सितंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने यूपीएससी जिहाद मामले की सुनवाई को टाल दिया था, क्योंकि सरकार ने अदालत को सूचित किया था कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से चैनल को कारण बताओ नोटिस भेजा गया है। नोटिस मूल रूप से इस बात पर आधारित था कि क्या सुदर्शन चैनल ने इस कार्यक्रम में चैनल कोड की अवहेलना की है। यूपीएससी जिहाद मुद्दे पर आधारित इस कार्यक्रम में ज़कात फाउंडेशन (गैर सरकारी संगठन) पर आरोप लगाया गया था कि वह सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे मुस्लिम उम्मीदवारों को प्रशिक्षण देता है। इसके अलावा उसे तमाम आतंकवादी संगठनों से फंडिंग भी मिलती है।

संदर्भ : OpIndia


शो नहीं देखना चाहते तो उपन्यास पढ़ें या फिर टीवी कर लें बंद : ‘UPSC जिहाद’ पर सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़

September 22, 2020

सुदर्शन न्यूज़ के कार्यक्रम ‘UPSC जिहाद’ के प्रसारण पर रोक लगाने की माँग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इस कार्यक्रम में ज़कात फ़ाउंडेशन पर आरोप लगाए जाने से जिनलोगों को परेशानी हैं वे टीवी को नज़रअंदाज़ कर उपन्यास पढ़ सकते हैं या फिर टीवी बंद कर सकते हैं।

अभियोजन पक्ष के वकील की दलीलों को सुनने के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह बात कही। अभियोजन पक्ष कहना था कि ‘UPSC जिहाद’ कार्यक्रम में सुदर्शन न्यूज़ के एडिटर इन चीफ़ सुरेश चव्हाणके ने जो कहा है वह हेट स्पीच की श्रेणी में आता है। अभियोजन पक्ष के वकील ने यह आरोप भी लगाया था कि जो तस्वीरें उम्मीदवारों को परीक्षा में शामिल होने के लिए प्रेरित कर सकती हैं, उसे कार्यक्रम में गलत रूप में पेश कर दिखाया गया है। इतना ही नहीं कार्यक्रम में उन्हें जिहादी षड्यंत्र रचने वाले की तरह दिखाया गया है।

दलीलों को सुनने के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी ने दर्शकों पर वह कार्यक्रम देखने का दबाव नहीं बनाया है। जिन लोगों को उस कार्यक्रम से किसी भी तरह की समस्या है, वह उससे किनारा कर सकते हैं। न्यायालय को केवल एक सूरत में इस केस की सुनवाई में समय खर्च करना चाहिए, अगर वह ज़कात फ़ाउंडेशन पर लगाए गए आरोपों से संबंधित है। इसके अलावा मामले की सुनवाई का कोई और आधार नहीं होना चाहिए।

इसके पहले 3 न्यायाधीशों की पीठ जिसमें न्यायाधीश चंद्रचूड़ के अलावा इन्दू मल्होत्रा और केएम जोसफ शामिल हैं, ने कार्यक्रम के प्रसारण पर रोक लगाने का आदेश दिया था। न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने टोपी, दाढ़ी, हरे रंग और बैकग्राउंड में आन के चित्रण को लेकर आपत्ति जताई थी।

सुदर्शन चैनल का पक्ष रखने वाले अधिवक्ता ने कहा, कार्यक्रम में ज़कात फ़ाउंडेशन को मिलने वाली फंडिंग पर सवाल उठाया गया था। जिस फंडिंग के ज़रिए परीक्षाओं की कोचिंग की आर्थिक मदद की जाती है। इसके अलावा सुरेश चव्हाणके ने कहा था, “देश हित के लिए इस मुद्दे पर सार्वजनिक चर्चा होना बहुत ज़रूरी है कि ज़कात फ़ाउंडेशन जैसी संस्थाओं को फंडिंग कैसे मिलती है?” उन्होंने यह भी कहा कि पूरे 4 कार्यक्रम की शृंखला में ऐसा कहीं नहीं कहा गया है कि एक समुदाय के किसी व्यक्ति को UPSC का हिस्सा नहीं बनना चाहिए।

आज इस मामले में ऑपइंडिया, इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट और अपवर्ड ने ‘इंटरवेंशन एप्लीकेशन’ (हस्तक्षेप याचिका) दायर की थी। ‘फ़िरोज़ इक़बाल खान बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ मामले में अनुमति-योग्य फ्री स्पीच को लेकर रिट पेटिशन दायर की गई थी।

‘हस्तक्षेप याचिका’ में कहा गया है, “सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचार के लिए जो मुद्दे आए हैं, जाहिर है कि उसके परिणामस्वरूप फ्री स्पीच की पैरवी करने वालों पर प्रकट प्रभाव पड़ेगा। साथ ही ऐसी संस्थाओं पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा, जो जनता के लिए सार्वजनिक कंटेंट्स का प्रसारण करते हैं। इसलिए याचिकाकर्ता की ओर से ये निवेदन है कि इन्हें भी इस मामले में एक पक्ष बनाया जाए। इस प्रक्रिया में एक पक्ष बना कर भाग लेने की अनुमति दी जाए।”

संदर्भ : OpIndia


‘UPSC जिहाद’ मामला : ऑपइंडिया, इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट और UpWord ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की ‘हस्तक्षेप याचिका’

September 21, 2020

‘सुदर्शन न्यूज़’ के शो ‘यूपीएससी जिहाद’ के प्रसारण का मसला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। चैनल ने इसके प्रसारण पर लगी रोक हटाने की माँग की है। अब इस मामले में ऑपइंडिया, इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट और अपवर्ड ने ‘इंटरवेंशन एप्लीकेशन’ (हस्तक्षेप याचिका) दायर की है। ‘फ़िरोज़ इक़बाल खान बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ मामले में अनुमति-योग्य फ्री स्पीच को लेकर रिट पेटिशन दायर की गई है।

‘हस्तक्षेप याचिका’ में कहा गया है, “सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचार के लिए जो मुद्दे आए हैं, जाहिर है कि उसके परिणामस्वरूप फ्री स्पीच की पैरवी करने वालों पर प्रकट प्रभाव पड़ेगा। साथ ही ऐसी संस्थाओं पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा, जो जनता के लिए सार्वजनिक कंटेंट्स का प्रसारण करते हैं। इसलिए याचिकाकर्ता की ओर से ये निवेदन है कि इन्हें भी इस मामले में एक पक्ष बनाया जाए। इस प्रक्रिया में एक पक्ष बना कर भाग लेने की अनुमति दी जाए।”

रिट याचिका में अब तक दिए गए आदेशों की बात करते हुए बड़े ही विस्तृत रूप से कई मुद्दों को रखा गया है। अब तक उठाए गए मुद्दों, आए फैसलों और राहत प्रदान करने वाले निर्णयों को ध्यान में रखते हुए इसमें बातें रखी गई हैं। साथ ही इसमें न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार की बात करते हुए सवाल उठाए गए हैं कि क्या प्रशासन की जाँच के दौरान ही कंटेंट्स को प्रसारण के लिए प्रतिबंधित किया जा सकता है या नहीं।

साथ ही एक और महत्वपूर्ण मुद्दा ये उठाया गया है कि आगे स्थानीय प्रशासन या फिर सम्बद्ध अथॉरिटी को इस कंटेंट में कुछ गलत नहीं मिलता है और वो प्रसारण की अनुमति दे देते हैं, तो क्या कोर्ट स्वयं ही प्रशासन का किरदार निभाते हुए इसे प्रतिबंधित कर सकता है? साथ ही इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि कंटेंट्स को देखने-सुनने का अधिकार जनता को है, क्या इस पर विचार किए बिना ही निर्णय लिया जा सकता है?

साथ ही न्यायिक रूप से ऐसे कंटेंट्स को लेकर भी बात की गई है, जिन्हें ‘हेट स्पीच’ के दायरे में रखा जाए। साथ ही पूछा गया है कि हाल की वस्तुस्थिति को विस्तृत रूप से देखे बिना ‘हेट स्पीच’ के अंदर आने वाली सामग्रियों को लेकर क़ानून बनाया जा सकता है या नहीं। हाल के दिनों में मीडिया के एक बड़े वर्ग द्वारा ‘फ्री स्पीच’ के माध्यम से काफी बार बहुत कुछ किया गया है। साथ ही ऑपइंडिया ने अपनी एक रिपोर्ट भी पेश करने की अनुमति माँगी है।

इस रिपोर्ट का टाइटल है- ‘A Study on Contemporary Standards in Religious Reporting by Mass Media’, जिसमें 100 ऐसी घटनाओं का जिक्र है, जब मुख्यधारा के मीडिया संस्थानों ने विभिन्न घटनाओं को लेकर गलत रिपोर्टिंग की जो उनके पहुँच को देखते हुए पाठकों के मन में संशय पैदा करता है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे हिन्दुओं के खिलाफ नैरेटिव बनाया जाता है।

साथ ही कैसे मीडिया के एक बड़े वर्ग द्वारा एक मजहब विशेष के दोषियों को बचाने के लिए उनके अपराध को कम कर के दिखाया जाता है या फिर ह्वाइटवॉश कर दिया जाता है। इसलिए, नैतिकता का मापदंड सिर्फ एक किसी घटना को लेकर लागू नहीं की जा सकती, सेलेक्टिव रूप से कार्रवाई नहीं हो सकती। इस रिपोर्ट में हिन्दूफोबिया की कई घटनाओं को उद्धृत किया गया है।

फैक्ट्स के साथ छेड़छाड़ करना, विवरणों को सेलेक्टिव रूप से साझा करना, चित्रों के जरिए नैरेटिव बनाना, फेक न्यूज़ और ओपिनियन बनाना- इन सबके जरिए ये बताने की कोशिश की गई है कि कैसे मुख्यधारा की मीडिया ने ही एक ट्रेंड सेट किया है, जो अब तक चला आ रहा है। इससे कोर्ट को इस मामले में निर्णय लेने में आसानी होगी। दिल्ली दंगे, मुस्लिमों से जबरन ‘जय श्री राम’ कहलवाना और ‘सैफ्रॉन टेरर’ से जुड़े ऐसे लेखों को उद्धृत किया गया है।

रविवार (सितंबर 20, 2020) को ही सुप्रीम कोर्ट में दिए एक हलफनामे में सुदर्शन न्यूज ने कहा था कि चैनल अपने “बिंदास बोल” शो के “यूपीएससी जिहाद” कार्यक्रम के शेष एपिसोड प्रसारित करते हुए कानूनों का कड़ाई से पालन करेगा। चैनल की तरफ से यह भी कहा गया था कि वह सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा निर्धारित प्रोग्राम कोड का पालन करेगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चैनल की तरफ से हलफनामा प्रस्तुत किया गया था।

संदर्भ : OpIndia


‘UPSC Jihad’ पर सुप्रीम कोर्ट में सुदर्शन न्यूज का हलफनामा, NDTV के ‘हिंदू आतंक’ और ‘भगवा आतंक’ का दिया हवाला

September 20, 2020

रविवार (सितंबर 20, 2020) को सुप्रीम कोर्ट में दिए एक हलफनामे में सुदर्शन न्यूज ने कहा कि चैनल अपने “बिंदास बोल” शो के “यूपीएससी जिहाद” कार्यक्रम के शेष एपिसोड प्रसारित करते हुए कानूनों का कड़ाई से पालन करेगा। चैनल की तरफ से यह भी कहा गया है कि वह सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा निर्धारित प्रोग्राम कोड का पालन करेगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चैनल की तरफ से हलफनामा प्रस्तुत किया गया था।

इसके साथ ही, सुदर्शन न्यूज ने हलफनामे में NDTV द्वारा ‘हिंदू आतंकवाद’ पर प्रसारित कार्यक्रमों का भी उल्लेख किया। चैनल ने बताया कि कैसे NDTV ने अपने कार्यक्रमों में हिंदू संतों की काल्पनिक छवि का इस्तेमाल किया था।

सुदर्शन टीवी ने ‘हिंदू आतंक’ पर NDTV के कार्यक्रम का उल्लेख किया

बता दें कि NDTV ने 2008 और 2010 में ‘हिंदू टेरर’ पर दो कार्यक्रमों का प्रसारण किया था। सुदर्शन न्यूज ने हलफनामे में इन कार्यक्रमों का हवाला दिया और कहा कि इन पर अधिकारियों और सर्वोच्च न्यायालय का ध्यान नहीं गया। हलफनामे में दोनों कार्यक्रम के लिंक थे और इस पर आपत्ति जताई गई कि कैसे चैनल ने हिंदू प्रतीकों और संतों को कहानियों में दिखाया। बरखा दत्त ने दोनों कार्यक्रमों की मेजबानी की थी।

हलफनामे में कहा गया है,“17.09.2008 को एनडीटीवी ने ‘Hindu Terror: Myth or fact?’ शीर्षक से एक कार्यक्रम प्रसारित किया था, जिसकी एंकरिंग बरखा दत्त ने की थी। इस कार्यक्रम में प्रोग्राम के कैप्शन के ठीक बगल में एक हिंदू संत को ‘तिलक’ और ‘चिलम’ के साथ दिखाया गया था। इसके साथ ही संत के हाथ में त्रिशूल भी दिखाया गया था, जो हिंदुओं के सबसे पवित्र प्रतीकों में से एक है और हिंदुओं के देवता भगवान शिव से जुड़ा हुआ है।”

हलफनामा में आगे 26 अगस्त 2010 को एनडीटीवी द्वारा प्रसारित एक अन्य कार्यक्रम का उल्लेख किया गया है। इस कार्यक्रम को भी बरखा दत्त ने ही होस्ट किया था और इसका शीर्षक “Is ‘Saffron Terror’ real?” दिया गया था। सुदर्शन न्यूज ने बताया कि उक्त एनडीटीवी कार्यक्रम में भगवा रंग के कपड़ों में एक हिंदू सांस्कृतिक सभा दिखाई गई।

NDTV के कार्यक्रमों का उल्लेख महत्वपूर्ण है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में मुसलमानों को चित्रित करने के लिए हरे रंग की टी-शर्ट,मुसलमानों को चित्रित करने के लिए दाढ़ी और टोपी के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई थी। अदालत ने कहा कि चैनल पूरे समुदाय को रूढ़िबद्ध करने की कोशिश कर रहा है।

अदालत ने आँकड़े या इन्फोग्राफिक्स दिखाते हुए मुस्लिम पात्रों की पृष्ठभूमि में आग की लपटों के उपयोग पर भी आपत्ति जताई। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने चैनल के संपादक सुरेश चव्हाणके से उन परिवर्तनों के बारे में सवाल किया था जो यह सुनिश्चित कर सके कि चित्रण एक विशेष समुदाय पर हमला नहीं करता है।

अपने हलफनामे में चैनल ने फिर से उल्लेख किया कि यह किसी भी समुदाय के खिलाफ नहीं है। चैनल सिविल सेवाओं में किसी भी समुदाय से किसी भी योग्य उम्मीदवार के प्रवेश का विरोध नहीं करता है। अदालत ने निषेधाज्ञा आदेश जारी किया था और सुनवाई समाप्त होने तक चैनल को शेष एपिसोड प्रसारित करने से रोक दिया था।

चव्हाणके ने अपने हलफनामे में अदालत से अनुरोध किया कि सभी मानदंडों का पालन करने के उनके आश्वासन पर उन्हें शेष एपिसोड को प्रसारित करने की अनुमति दी जाए। मामले में सुनवाई सोमवार (सितंबर 21, 2020) को जारी रहेगी।

संदर्भ : OpIndia


सुदर्शन टीवी ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि उन्होंने ‘कार्यक्रम का नाम क्यों रखा UPSC जिहाद’

September 17, 2020

गुरूवार को सुदर्शन टीवी के एडिटर इन चीफ़ सुरेश चव्हाणके ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने अपना पक्ष रखा। जिसमें उन्होंने कहा बिंदाल बोल कार्यक्रम के तहत प्रसारित किए जाने वाले यूपीएससी (UPSC) जिहाद इसलिए रखा गया क्योंकि इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि उन्हें मिली जानकारी के मुताबिक़ ज़कात फ़ाउंडेशन की फंडिंग तमाम आतंकवादी संगठनों के द्वारा की जाती है।

राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से चर्चा होनी चाहिए कि ज़कात फ़ाउंडेशन की फंडिंग आतंकवादियों संगठनों द्वारा की जा रही है। उन्होंने इस बात पर भी अपना पक्ष रखा कि 4 कार्यक्रमों की शृंखला में कहीं ऐसा नहीं कहा गया है कि किसी समुदाय के व्यक्ति को यूपीएससी का हिस्सा नहीं बनना चाहिए।

सुदर्शन टीवी ने यह भी कहा ज़कात फ़ाउंडेशन को मदीना ट्रस्ट यूके से फंडिंग मिलती है। डॉक्टर ज़ाहिद अली परवेज़ इस ट्रस्ट के एक ट्रस्टी है। परवेज़ इसके अलावा इस्लामिक फ़ाउंडेशन का भी ट्रस्टी है।

ज़कात फ़ाउंडेशन ने विदेश मंत्रालय को दी गई जानकारी में बताया कि उसे वित्तीय वर्ष 2018-2019 में यूनाइटेड किंगडम की मदीना ट्रस्ट से 13,64,694.00 रूपए मिले थे। मदीना ट्रस्ट हमेशा से भारत विरोधी गतिविधियों के लिए मशहूर रहा है। ऐसी तमाम साक्ष्य और घटनाएँ हैं जिनमें साफ़ तौर पर देखा जा सकता है कि यह ट्रस्ट ऐसी गतिविधियों में शामिल रहा है।

सुदर्शन न्यूज़ का यह कार्यक्रम सुर्ख़ियों में तब आया जब उसने एक कार्यक्रम का प्रोमो जारी किया जिसका प्रसारण 28 अगस्त को किया जाना था। सुरेश चव्हाणके ने बताया कि उनके चैनल द्वारा इकट्ठा की गई जानकारी के अनुसार हाल फ़िलहाल में प्रशासनिक पदों पर और पुलिस विभाग में मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा मुस्लिम उम्मीदवारों को जितने अंक मिले हैं वह भी बाकी उम्मीदवारों की तुलना में कहीं ज़्यादा हैं। इसके बाद तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसके विरोध में मामला दर्ज कराया। जिससे इस कार्यक्रम का प्रसारण रुक जाए।

इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस कार्यक्रम के प्रसारण पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आदेश के पालन पर सहमति जताई थी। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने भी कार्यक्रम के प्रसारण पर रोक लगा दी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने आज ही वकील फ़िरोज़ इकबाल द्वारा कार्यक्रम का प्रसारण किए जाने के मामले में दायर की गई याचिका पर सुनवाई थी।

संदर्भ : OpIndia


सुदर्शन न्यूज़ के ‘UPSC Jihad’ शो पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

September 15, 2020

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार (सितंबर 15, 2020) को सुदर्शन न्यूज के कथित विवादित कार्यक्रम ‘नौकरशाही में मुस्लिमों की घुसपैठ’ पर सुनवाई की। इस पीठ का नेतृत्व न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने किया। इस दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कल के बाद फिर से इस मामले पर विचार किया जाएगा। इसके साथ ही सुदर्शन टीवी पर अगली सुनवाई तक प्रसारण को स्थगित कर दिया गया।

वरिष्ठ वकील दिवान ने इस पर दलील देते हुए कहा, “मैं इसे प्रेस की स्वतंत्रता के रूप में दृढ़ता से विरोध करुँगा। कोई पूर्व प्रसारण प्रतिबंध नहीं हो सकता है। हमारे पास पहले से ही चार प्रसारण हैं, इसलिए हम विषय को जानते हैं। यदि यह एक पूर्व संयम आदेश है तो मुझे बहस करनी होगी। विदेशों से धन पर एक स्पष्ट लिंक हैं।”

जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा, “हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जब आप कहते हैं कि जामिया मिलिया के छात्र सिविल सेवाओं में घुसपैठ करने वाले समूह का हिस्सा हैं, तो फिर हम बर्दाश्त नहीं कर सकते। देश के सर्वोच्च न्यायालय के रूप में, हम आपको यह कहने की अनुमति नहीं दे सकते कि मुस्लिम सिविल सेवाओं में घुसपैठ कर रहे हैं। आप यह नहीं कह सकते कि पत्रकार को यह करने की पूर्ण स्वतंत्रता है।”

वहीं जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा, “हमें विजुअल मीडिया के स्वामित्व को देखने की जरूरत है। कंपनी का संपूर्ण शेयर होल्डिंग पैटर्न जनता के लिए साइट पर होना चाहिए। उस कंपनी के राजस्व मॉडल को यह जाँचने के लिए भी रखा जाना चाहिए कि क्या सरकार एक में अधिक विज्ञापन डाल रही है और दूसरे में कम।”

उन्होंने आगे कहा कि मीडिया खुद के द्वारा निर्धारित मानकों की बेईमानी नहीं कर सकता। डिबेट में एंकर की भूमिका देखने की जरूरत है। जब कोई बोलता है, तो उसे सुनना चाहिए। मगर जब हम टीवी डिबेट को देखते हैं, तो एंकर सबसे अधिक समय लेता है। वह वक्ता की आवाज को म्यूट करके सवाल पूछते हैं। उनका कहना था कि मीडिया की स्वतंत्रता नागरिकों की ओर से है।

जस्टिस चंद्रचूड़ आगे कहते हैं, “इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की शक्ति बहुत बड़ी है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विशेष समुदायों या समूहों को लक्षित करके केंद्र बिंदु बन सकता है। एंकरों की शिकायत यह है कि एक विशेष समूह सिविल सेवाओं में प्रवेश प्राप्त कर रहा है। यह कितनी धूर्तता है?”

उन्होंने आगे यह भी कहा, “इस तरह के धूर्त आरोप यूपीएससी परीक्षाओं पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। बिना किसी तथ्यात्मक आधार के ऐसे आरोप लगाने की अनुमति कैसे दी जा सकती है? क्या मुक्त समाज में ऐसे कार्यक्रमों की अनुमति दी जा सकती है?”

सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस पर दलील देते हुए कहा, “पत्रकार की स्वतंत्रता सर्वोच्च है। जस्टिस जोसेफ के बयानों के दो पहलू हैं। इस तरह से प्रेस को नियंत्रित करना किसी भी लोकतंत्र के लिए विनाशकारी होगा।”

उन्होंने आगे कहा, “इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अलावा एक समानांतर मीडिया भी है जहां एक लैपटॉप और एक पत्रकार लाखों लोगों को अपनी सामग्री पहुंचा सकते हैं। मैं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के बारे में बात कर रहा हूँ। पत्रकार की स्वतंत्रता को सम्मान देकर जस्टिस जोसेफ की चिंताओं को दूर किया जाना चाहिए। बड़ी संख्या में वेब पोर्टल हैं, जिनका स्वामित्व उनके द्वारा दिखाए जाने वाले कार्यों से भिन्न है।”

जस्टिस जोसेफ का कहना था, “जब हम पत्रकारिता की स्वतंत्रता की बात करते हैं, तो यह निरपेक्ष नहीं है। वह अन्य नागरिकों की तरह ही स्वतंत्रता साझा करता है। अमेरिका की तरह भारत में पत्रकारों की कोई अलग स्वतंत्रता नहीं है। हमें ऐसे पत्रकारों की जरूरत है जो अपनी डिबेट में निष्पक्ष हों।”

गौरतलब है कि दिल्ली हाई कोर्ट ने सुदर्शन न्यूज की ‘नौकरशाही में मुस्लिमों की घुसपैठ’ वाली कथित रिपोर्ट के प्रसारण पर रोक लगा दी थी। शुक्रवार 28 अगस्त 2020 को रात आठ बजे इसका प्रसारण होना था। जामिया के छात्रों ने इस पर रोक लगाने को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि यह रिपोर्ट मुसलमानों के खिलाफ घृणा को बढ़ावा देती है।

संदर्भ : OpIndia

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