दिल्ली दंगों के मामले में गिरफ्तार जेएनयू का पूर्व छात्र उमर खालिद को लेकर कई नए खुलासे हुए है। जिसके जरिए इस बात के सबूत मिले है कि खालिद ने ही दंगों की साजिश रचने में अहम भूमिका निभाई थी। पुलिस को उसके मोबाइल फ़ोन से दंगों से संबंधित 40 जीबी डेटा बरामद हुआ है। बता दें फ़ोन के फोरेंसिक रिपोर्ट विश्लेषण के जरिए यह बात सामने आई है। इसकी जाँच की जा रही है।
गौरतलब है कि दिल्ली दंगों के आरोपित उमर खालिद को स्पेशल सेल ने 10 दिन की पुलिस रिमांड में रखा है। पुलिस चार्जशीट में इस बात का उल्लेख किया है कि किस तरह उमर खालिद ने पहले से दंगों की पूरी तैयारियाँ कर ली थी। साथ ही उसने इस कार्य के लिए विभिन्न संगठनों से मदद और आम जनता के समर्थन पाने के लिए भड़काऊ भाषण का प्रयोग किया था।
स्पेशल सेल उमर खालिद के कारनामों की चार्जशीट 17 सितंबर से पहले कड़कड़डूमा कोर्ट में दायर करेगी। रिपोर्ट के अनुसार चार्जशीट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि खालिद ने 2019 में सीएए के विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए दिल्ली दंगों साजिश रचने की तैयारी दिसंबर में ही शुरू कर दी थी। अपने भड़काऊ भाषणों की वजह से उसे मुस्लिम लोगों का समर्थन मिलता चला गया। इतना ही नहीं उसने दंगों को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए वामपंथी और समुदाय विशेष संगठनों का सहारा भी लिया।
चार्जशीट में यह बात भी सामने आई कि खालिद ने उन्हीं जगहों को धरना प्रदर्शन के लिए चुना था, जहां मुस्लिम जनसंख्या ज्यादा थी और आसपास मस्जिद भी हो ताकि बिना किसी रुकावट के वह मस्जिदों का पूर्ण रूप से इस्तेमाल कर सके। ऐसे स्थलों का चुनाव लाउडस्पीकर के जरिए भीड़ बुलाने और मुस्लिम महिलाओं की बढ़चढ़ कर भागीदारी के लिए भी किया गया था। ताकि पुलिस महिलाओं की वजह से ज्यादा बल प्रयोग न कर सके।
चार्जशीट में कहा गया है कि आम जनता को भड़काने और लोगों को आक्रोशित करने के लिए ही ऐसी सड़क को जाम किया गया था जहां लाखों की संख्या में लोगों का रोज आना जाना होता था। ताकि आपस में लोगों का टकराव हो सके और दो समुदायों में दंगा भड़के। वाट्सअप ग्रुप बना कर लोगों को बरगलाने का काम भी किया जाता था। खालिद ऐसे ही कई व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ा हुआ था।
चार्जशीट में कहा गया है कि खालिद ने पहले जामिया विश्वविद्यालय को अपने साजिश को अंजाम देने के लिए चुना था। लेकिन पुलिस ने उसके इरादे को नाकाम कर दिया। जिसके बाद उसने 15 दिसंबर को शाहीनबाग का इलाका चुना। और शांतिपूर्ण धरने की आड़ में गहरी साजिश की शुरुआत की। इसके अलावा तुर्कमान गेट, सदर बाजार, शास्त्री नगर, सीलमपुर, चाँदबाग, कर्दमपुरी, शाहदरा, निजामुद्दीन, वजीराबाद, जाफराबाद आदि मुस्लिम बाहुल्य इलाकों पर स्थायी रूप से लोगों को धरने पर बैठाया गया।
खालिद ने शरजील इमाम, खालिद सैफी और अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर लोगों को धरना प्रदर्शन के लिए उकसाने का काम किया था। साथ ही अलग-अलग प्रदर्शन स्थल पर कमेटियों का गठन भी किया गया था। जो उन्हें आवश्यक जनकारियाँ प्रदान करते थे। वहीं पिंजरा तोड़ की सदस्यों को महिलाओं को एकत्रित करने और उन्हें धरने से जोड़ने का काम सौंपा गया था।
पिंजरा तोड़ के सदस्यों में मुख्य जिम्मेदारी अथरा व रवीश को दी गई थी। अथरा को दिल्ली पुलिस स्पेशल ने यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया है। वहीं रवीश अभी भी पुलिस गिरफ्त से फरार है। अदालत ने रवीश को भगोड़ा भी घोषित कर दिया है। गुलफिश उर्फ गुल, नताशा नरवाल, देवांगना कलिता व सुभाषिनी को भी पुलिस गिरफ्तार कर पूछताछ कर चुकी है। जिसमें इन सदस्यों ने खालिद को लेकर कई खुलासे किए है।
संदर्भ : OpIndia
‘नास्तिक वामपंथी’ बन इस्लामी एजेंडे को बढ़ावा देने वाला उमर खालिद को 10 दिन की पुलिस रिमांड
September 14, 2020
दिल्ली दंगों के मामले में रविवार की रात गिरफ्तार किए उमर खालिद को अदालत ने 10 दिन की पुलिस हिरासत में भेजने का आदेश दिया है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र उमर खालिद को दिल्ली पुलिस ने दंगों की साज़िश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया था। वह गैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोपित है। पुलिस ने कहा है कि बहुत जल्द इस मामले में चार्जशीट दाखिल की की जाएगी।
जैसा उम्मीद थी वैसा ही हुआ, उमर खालिद की गिरफ्तारी के बाद पूरी लिबरल गैंग का प्रलाप चालू हो गया। कुछ ने तो यूएपीए ख़त्म करने की माँग उठा दी और वहीं कुछ ने उसे ऐसा नेता बताया जिसकी देश को ज़रूरत है। कुछ लोगों ने तो यहां तक कह दिया कि उसकी गिरफ्तारी सिर्फ इसलिए हुई है क्योंकि वह मुस्लिम है। लेकिन उमर खालिद ने पिछले कुछ सालों में अपनी इस तरह की छवि खुद ही बनाई है।
उसके साथ जो कुछ भी हो रहा है वह उसकी गतिविधियों का ही नतीजा है। फ़िलहाल दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत ने उमर खालिद को 10 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया है। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उसे सोमवार को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए अदालत में पेश किया था। न्यायाधीश अमिताभ रावत ने 11 पन्नों में यह आदेश सुनाया है।
उमर खालिद का नाम सबसे पहली बार चर्चा में आया 2016 के ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ प्रकरण के बाद। 9 फरवरी 2016 को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में आतंकवादी अफज़ल गुरु की बरसी के मौके पर विरोध-प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शन की वजह थी आतंकवादी अफज़ल गुरु का पुण्य स्मरण (टुकड़े टुकड़े गैंग के लिए)। उस प्रदर्शन के दौरान ऐसे कई नारे लगाए गए जो डरावने और हैरान करने वाले थे, उन नारों में सबसे ज़्यादा विवादित थे भारत तेरे टुकड़े होंगे-इंशाअल्लाह, इंशाल्लाह और भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जंग रहेगी।
घटना की जानकारी मिलते ही सरकार हरकत में आई और सबसे पहले तथाकथित कॉमरेड कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी हुई। इतना ही नहीं रिहा किए जाने के पहले 10 हज़ार रुपए का जुर्माना भी देना पड़ा। इसके अलावा उमर खालिद को एक सेमेस्टर के लिए निष्कासित कर दिया गया था। उमर खालिद को भी इस मामले में कन्हैया कुमार के साथ गिरफ्तार किया गया था। जेएनयू में हुई नारेबाजी के मामले में चार्जशीट दायर की थी और कन्हैया कुमार, उमर खालिद समेत अन्य गिरफ्तार किए गए थे।
मज़े की बात है कि उमर खालिद का पिता भी प्रतिबंधित इस्लामी संस्था ‘सिमी’ (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया) का सदस्य था। इस संस्था से अलग होने के बाद वह ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का सदस्य बना। उमर खालिद के पिता ने ही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से राम मंदिर निर्माण पर आए आदेश के विरोध में पुनर्विचार याचिका दायर करने का ऐलान किया था।
उमर खालिद के पिता ने पश्चिम बंगाल की जंगीपुर सीट से वेलफेयर पार्टी ऑफ़ इंडिया के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। इसमें कोई हैरानी की नहीं होनी चाहिए कि मुर्शिदाबाद ज़िले में आने वाला यह संसदीय क्षेत्र मुस्लिम बाहुल्य है। सिमी का पूर्व सदस्य फ़िलहाल जमात-ए-इस्लामी हिन्द की केन्द्रीय सलाहकार समिति का सदस्य है। इसके अलावा वह बाबरी मस्जिद कोआर्डिनेशन कमेटी का संयोजक भी रह चुका है।
उमर खालिद ने एक बात पर हमेशा ज़ोर दिया है कि वह वामपंथी और नास्तिक है। जबकि ऐसे बहुत कम ही मौके होते हैं जब वह अपने मजहबी रूप से समर्पित पिता से असहमत होता हो। लखनऊ के नेता कमलेश तिवारी को जिहादियों ने इस्लाम के विरुद्ध ईशनिंदा करने के लिए जान से मार दिया था। इस घटना के ठीक दो दिन बाद उमर खालिद लगातार हिंदुओं को कोस रहा था। जिससे लोगों का इस बात से ध्यान हट जाए कि मुस्लिम समाज के कुछ लोगों में कट्टरता का स्तर कितना ज़्यादा बढ़ गया है। इसके बाद उसने अपने एक लेख में पैगम्बर मोहम्मद के सामने नतमस्तक होने की बात का बचाव भी किया। इतना सब कुछ तब जब वह खुद को नास्तिक करार देता है।
जेएनयू से सामने आए नारेबाजी विवाद के बाद उमर खालिद, टाइम्स नाउ पर अर्नब गोस्वामी के साथ एक चर्चा में भी शामिल हुआ था। बात करते हुए उमर ने मुखर होकर अफज़ल गुरु का समर्थन करना शुरू कर दिया। ठीक इसी तरह अरुंधति रॉय ने भी अफज़ल गुरु को फाँसी दिए जाने पर सवाल खड़े किए थे। इसके बाद उमर ने साक्षात्कार में सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात कही। उसके मुताबिक़ ऐसे बहुत से लोग थे जिन्होंने इस बात पर सवाल उठाया था कि अफज़ल गुरु भारत की संसद पर हुए हमलों में शामिल था भी या नहीं।
खुद को नास्तिक वामपंथी बताने वाले उमर खालिद ने यहां तक कह दिया था कि अफज़ल गुरु को निष्पक्ष ट्रायल तक नहीं मिला था। इसके बाद उसने यह बात भी मानी कि उस दिन नारे लगाए गए थे, लेकिन वह कुछ कश्मीरियों ने लगाए थे। उसने अंत तक एक आतंकवादी का समर्थन करते हुए दूसरों पर कट्टरता का आरोप लगाया। उसका कहना था कि पूरे तंत्र में न्याय के लिए कोई जगह नहीं है। इसके बाद उमर खालिद ने कहा कि भारतीय सेना ने कश्मीर में लाखों लोगों को मारा और औरतों के साथ बलात्कार किया। इसके ठीक बाद अर्नब गोस्वामी ने चर्चा के दौरान ही उमर खालिद को देश विरोधी कह दिया।
22 फरवरी 2016 को उमर खालिद ने जेएनयू में एक भाषण दिया था। भाषण में उसने कहा था कि भारत और पाकिस्तान के खराब रिश्तों के लिए अमेरिका ज़िम्मेदार है। एक पाकिस्तानी शायर का उल्लेख करते हुए उमर ने कहा “हिंदुस्तान भी मेरा है और पाकिस्तान भी मेरा है पर इन दोनों मुल्कों पर अमेरिका का डेरा है।” इसके बाद उमर ने अपने विरोधियों को अमेरिका का एजेंट तक बता दिया।
उमर खालिद यूनाइटेड अगेंस्ट हेट (UAH) का भी हिस्सा रह चुका है, जिसने सीएए के विरोध में PUCL और अन्य के साथ मिल कर अभियान चलाया था। PUCL एक ऐसा संगठन है जिसके तार अर्बन नक्सल से जुड़े हुए हैं और इसके कई लोग भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए थे। वहीं UAH खुद भीम आर्मी, जमात-ए-इस्लामी, उलेमा-ए-हिंद और अल्पसंख्यक अधिकार जैसे संगठनों से जुड़ा हुआ है। UAH के संस्थापक खालिद सैफी को दिल्ली दंगों की साज़िश रचने के मामले में गिरफ्तार किया गया था।
दिल्ली दंगों में उमर खालिद की भूमिका सबसे पहली बार तब सामने आई जब 20 फरवरी को उस पर विवादित भाषण देने का आरोप लगा। उसने अपने भाषण में कहा मुस्लिमों को डोनाल्ड ट्रंप के सामने यह दिखाना ही होगा कि वह देश की सरकार के विरुद्ध लड़ रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप 24 फरवरी को भारत की यात्रा पर आए थे और इसी दिन से दंगे और हिंसा शुरू हो गई थी।
दिल्ली दंगों के मामले में दायर की गई चार्जशीट में साफ़ लिखा है कि उमर खालिद दंगों के मुख्य आरोपित खालिद सैफी की मदद से ताहिर हुसैन के संपर्क में था। खालिद सैफी ने 9 जनवरी को ताहिर हुसैन और उमर खालिद के बीच शाहीन बाग़ में बैठक कराई थी।
ऐसे में उमर खालिद भले कितना भी नास्तिक वामपंथी होने का दावा कर ले पर उसकी हरकतों से सब साफ़ है। कई मीडिया संस्थानों ने उसे एक नास्तिक के तौर पर दिखाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उसकी गतिविधियों के साफ़ है कि वह इस्लामी कट्टरपंथियों से बहुत अलग नहीं है। फ़िलहाल जब उसकी गिरफ्तारी हो चुकी है ऐसे में अदालत तय करेगी कि दंगों के मामले में उसकी असल भूमिका क्या रही।
संदर्भ : OpIndia