मथुरा में स्थित श्रीकृष्ण जन्मस्थान की १३.३७ एकड भूमि का स्वामित्व मिले तथा इस भूमि पर से शाही ईदगाह मसजिद का अतिक्रमण हटाया जाए, इस मांग के संबंध में हाल ही में एक याचिका जिला न्यायालय, मथुरा में प्रस्तुत की गई है । इस निमित्त श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन का ५०० वर्षों का प्रदीर्घ और संघर्षमय इतिहास हिन्दुओं की आंखों के सामने अपनेआप उपस्थित हो गया । अनंत बाधाएं आईं और खडी भी की गईं फिर भी, केवल भगवान श्रीराम के आशीर्वाद से रामजन्मभूमि अभियोग की लडाई हिन्दुओं ने जीती । इसके पश्चात, ‘मथुरा क श्रीकृष्णमंदिर और काशी क श्र विश्वनाथ मंदिर भी इस्लामी अतिक्रमण से मुक्त होगा, यह आशा हिन्दुओं के मन में पल्लवित हुई है । अब इन याचिकाओं के माध्यम से हिन्दुओं की धर्मयात्रा उचित दिशा में आरंभ हुई है । यह घटना, हिन्दुओं में नवचेतना उत्पन्न करनेवाली है ।
मथुरा में जिस स्थान पर श्रीकृष्णमंदिर है, वह शासक कंस के समय ‘मल्लपुरा क्षेत्र नाम से जाना जाता था । वहां कंस का कारागृह था । इसी ऐतिहासिक स्थान पर भगवान श्रीविष्णु के आठवां अवतार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था । इसीलिए, विश्वभर के करोडों हिन्दुओं की नाल इस मंदिर से जुडी है । क्रूरकर्मा औरंगजेब ने वर्ष १६६९ में यह मंदिर तोडकर वहां शाही ईदगाह (नमाज पढने की भूमि) बनाया । यही अतिक्रमण हटाने के लिए उपर्युक्त याचिका प्रस्तुत की गई है ।
कांग्रेसियों की गंभीर चूकें !
भारत पर, अर्थात हिन्दुओं पर लगभग १३०० वर्ष पहले आई क्रूर इस्लामी आक्रमणकारियों की काली छाया आज भी अनेक स्मृतिस्थलों के माध्यम से विद्यमान है । इस्लामी आक्रांताओं ने अपने शासनकाल में अनेक मंदिरों को ध्वस्त कर उसी मलबे से मसजिदें बनवाईं, जिनमें अयोध्या, काशी और मथुरा के आस्थाकेंद्र प्रमुख हैं । ठीक है, देश स्वतंत्र हुआ; परंतु हिन्दुओं के आस्थाकेंद्र हिन्दुओं को सौंपने का कार्य कांग्रेस को करना चाहिए था, जो नहीं हुआ । कांग्रेसियों ने देश पर हिन्दुओं के प्रतिनिधि के रूप में नहीं, अंग्रेजों के उत्तराधिकारी के रूप में राज्य किया । इसलिए, इस्लामी आक्रांताओं ने जिन हिन्दू मंदिरों को तोडा था, वे स्थान और मंदिर हिन्दुओं को आज तक नहीं मिले । स्पष्ट है कि कांग्रेस ने इसके लिए कभी प्रयत्न ही नहीं किया । इस देश में बाबर, औरंगजेब, टीपू सुलतान आदि कट्टर हिन्दूद्वेषी इस्लामी आक्रांताओं को अपना वंशज माननेवाले धर्मांध, कांग्रेस के पारंपरिक मतदाता हैं । इसलिए, उनकी धर्मभावनाओं की रक्षा के लिए हिन्दुओं की धर्मभावनाओं की बलि देना कांग्रेस ने स्वीकार किया । कांग्रेस का हिन्दूद्वेष यहीं नहीं रुका । उसने वर्ष १९९१ में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव के शासनकाल में, प्लेसेस ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोवीजन) एक्ट १९९१ बनाया । इसके अनुसार इस्लामी आक्रमणकारियोंद्वारा आक्रमित हिन्दुओं के पूजास्थल हिन्दुओं को नहीं मिलेंगे, अर्थात मुसलमानों के पास ही रहेंगे । इसलिए, अयोध्या को छोडकर अन्य सभी धार्मिक स्थानों पर १५ अगस्त १९४७ को जो स्थिति थी, वैसी ही रहेगी, यह कानून में लिख दिया गया । इस कानून के अनुसार किसी भी प्रार्थनास्थल का रूपांतर दूसरे धर्म के प्रार्थनास्थल में नहीं किया जा सकता । इसी नियम के अनुसार मथुरा, काशी आदि पर निर्णय रुका है । केवल एक गट्ठा मत पाने के लिए इस्लामी आक्रांताओंद्वारा आक्रमित धार्मिक भवन हिन्दुओं को न मिलें, इसके लिए कानून का सहारा लेने की भयंकर चूक और पाप कांग्रेसियों ने किए हैं । इसके लिए इतिहास ऐसे हिन्दूद्वेषी कांग्रेस को कभी क्षमा नहीं करेगा । प्लेसेस ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोवीजन) एक्ट १९९१ को उच्चतम न्यायालय में अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने चुनौती दी है । इसमें विशेष बात यह है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर का अतिक्रमण हटाने से संबंधित उपर्युक्त याचिका भी अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन और उनके पिता तथा सर्वोच्च न्यायालय के ख्यातनाम अधिवक्ता पू. हरि शंकर जैन के माध्यम से प्रस्तुत की गई है । यदि हम सब हिन्दुओं को उनके पीछे खडा कर पाए, तो यह हमारी साधना होगी । वास्तविक, हिन्दूबहुल भारत में हिन्दुओं को अपने वैधानिक अधिकारों के लिए याचिका प्रस्तुत करना लज्जाजनक है । इस बात का सरकार को विचार करना चाहिए ।
हिन्दू एकता का बल आवश्यक !
श्रीकृष्ण जन्मभूमि की मुक्ति की मांग को गति मिली है । २३ जुलाई २०२० को, साधु-संतों ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि निर्माण न्यास की स्थापना की । इसके अतिरिक्त, भारत में १३ अखाडों ने भी कृष्ण जन्मभूमि की मुक्ति के लिए पहल की है । हाल ही में उनकी बैठक भी हुई । अब कुछ भक्तों ने न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की है । अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन भी अपने ढंग से इसके लिए प्रयास कर रहे हैं । इनके पीछे १०० करोड हिंदुओं को संगठित होकर खडे रहना आवश्यक है । छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस्लामी आक्रमणकारियों से कई मंदिरों की रक्षा की थी । कवि भूषण ने महाराज के इस पराक्रम का वर्णन बहुत ही मार्मिक शब्दों में किया है, जैसे काशी की कला जाति, मथुरा मसजिद होती, शिवाजी न होते तो, सुन्नत होती सबकी । इसीलिए, श्रीकृष्णभूमि को कानूनी मार्ग से अतिक्रमण से मुक्त कराना, छत्रपति शिवाजी महाराज को अपेक्षित कार्रवाई होगी । दूसरी ओर, यह राज्य और केंद्र सरकार का दायित्व है कि वह श्रीराम जन्मभूमि की भांति श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति के अभियोग में विलंब न करे । सरकार को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है कि सभी प्रमाण हाथ में होने पर सरकारी स्तर पर कहीं भी समय व्यर्थ न जाए । इसके लिए सरकार को अन्यायपूर्ण कानूनों को तुरंत रद्द करना चाहिए । इसी प्रकार, हिंदुओं की एकजुट मांग है कि इस अभियोग को तत्काल न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना चाहिए और हिन्दुओं को उनकी श्रीकृष्ण जन्मभूमि वापस दिलाने के प्रामाणिक प्रयास किए जाने चाहिए ।