‘कर्नाटक राज्य कांग्रेस सरकारने हिन्दुओंके मठोंके सरकारीकरणका विधेयक पारित किया एवं पश्चात कांग्रेस पक्षने ही जनक्षोभके भयसे इस विधेयकको कार्यान्वित न करनेका निर्णय लिया ! हिन्दुओंके मठोंके सरकारीकरणका लिया गया कितना बडा निर्णय तथा उतना ही बडा उस विषयमें हुआ यह ‘बच्चोंका खेल’ ! ऐसा बच्चोंवाला खेल न होने हेतु ही पूर्वकी कालावधिमें राज -पुरोहितोंके मार्गदर्शनके अनुसार राज्यका कामकाज चलता था । राजपुरोहित केवल धर्मशास्त्रमें ही नहीं, अपितु राज्यशास्त्र, अर्थशास्त्र, न्यायशास्त्र इत्यादि सभी शास्त्रोंमें विद्वान रहते थे । विद्वत्ताके साथ ही साधनाके कारण उनकी बुद्धि सात्त्विक रहनेसे उनके निर्णय योग्य अर्थात प्रजाके हितमें ही रहते थे । राजसत्तापर धर्मसत्ताका ऐसा नियन्त्रण रहनेके कारण ही राज्यका कामकाज धर्माधिाqष्ठत होता था, जिससे प्रजा सभी दृष्टिसे सुखी रहती थी ।
हिन्दु बन्धुओ, वर्तमान समयके निरर्थक लोकतन्त्रकी चलरही यह दुरावस्था कितने समयतक केवल देखते रहेंगे ? आदर्श धर्माधिष्ठित राज्यका कामकाज पुनः उत्पन्न करनेके लिए एक ही पर्याय है, ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करना ! यह न भूलें कि ‘हिन्दू राष्ट्र’की स्थापनाके योगदानमें ही आपका एवं आपकी भावी पीढीका हित है ! इसलिए हिन्दू जनजागृति समिति एवं सनातन संस्थाद्वारा किए जानेवाले प्रयासोंमें सम्मिलित होकर राष्ट्र एवं धर्मकर्तव्यका पालन करें !’
– (पू.) श्री. संदीप आळशी (२६.१२.२०१४)