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I&B मंत्रालय के अंतर्गत आए OTT प्लेटफॉर्म्स, गालियों और सेक्स को बना लिया था कमाई का जरिया

मान लीजिए कि आप टीवी पर बैठ कर कुछ देख रहे हैं और आपका पूरा परिवार आपके साथ बैठा हुआ है, अचानक से माँ-बहन की गालियाँ दी जानी लगे और पोर्न चालू हो जाए? डिजिटल कंटेंट प्लेटफॉर्म्स ने कुछ ऐसा ही माहौल बना दिया था। OTT प्लेटफॉर्म्स के साथ यही समस्या थी। हर वो चीज जो टीवी पर नहीं आ सकती या सिनेमा हॉल्स में नहीं दिखाई जा सकती, उन्हें वहाँ दिखाया जा रहा था। अब वो ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल्स के साथ-साथ I&B मंत्रालय के अंतर्गत आ गए हैं

एकता कपूर के प्लेटफॉर्म ‘ऑल्ट बालाजी’ पर भी एक बी-ग्रेड शो ‘गन्दी बात’ आई थी, जिसमें अश्लीलता के अलावा कुछ था ही नहीं और इसके सहारे एक तरह से पोर्नोग्राफी को मुख्यधारा में लाया जा रहा था। इसमें महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के नाम का आपत्तिजनक रूप से इस्तेमाल किया गया था। ये बस एक उदाहरण है, ‘पाताल लोक’ और ‘मिर्जापुर’ से लेकर ‘आश्रम’ तक, ऐसी चीजें लगातार होती रही हैं।

क्यों ज़रूरी था OTT प्लेटफॉर्म्स का नियंत्रण?

अब तक जितने भी वेब सीरीज आए हैं, उनमें कहानी जो भी हो लेकिन अश्लीलता ठूँसने पर पूरा जोर लगाया गया। उनके ऊपर किसी का नियंत्रण नहीं था। उन्हें किसी सेंसर बोर्ड से प्रमाण-पत्र नहीं लेना था। सेक्स और गालियों का मिश्रण कर के कुछ भी बना दिया, जिसे बच्चे भी देख रहे हैं। ऐसा कुछ तो है नहीं, जिससे बच्चों को ऐसे हानिकारण कंटेंट्स देखने से रोका जा सके। हर किसी का एक्सेस था ही, लॉगिन करो और देखो।

इंटरनेट पर एक से एक सामग्रियाँ उपलब्ध हैं। अगर किसी वेबसाइट को प्रतिबंधित कर दिया जाता है तो फिर VPN की मदद से या अन्य तरीकों से उसे देखने के कई माध्यम हैं। लेकिन, सामस्य ये थी कि अमेज़न, हॉटस्टार, एमएक्स प्लेयर, ऑल्ट बालाजी और नेटफ्लिक्स जैसे बड़े ब्रांड्स ऐसी-ऐसी सामग्रियों को मुख्यधारा में जोड़ कर उसका समान्यीकरण कर रहे थे, जो भद्दे और अश्लील होते हैं और महिलाओं के लिए भी अपमानजनक होते हैं।

हाल ही में रिलीज हुई कई वेब सीरीज में इसका उदाहरण भी देखा गया था, जिनमें न सिर्फ हिन्दूफोबिया को जम कर बढ़ावा दिया गया, बल्कि सेक्स दृश्यों और माँ-बहन की गालियों को ही फोकस में रखा गया। महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वालों ने भी महिलाओं के लिए लगातार आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग करने वाले इन वेब सीरीज पर चुप्पी साधे रखी। जो मन बना दो, परोस दो और रीच टीवी-सिनेमा से भी ज्यादा।

इससे पहले ‘इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ एक सेल्फ-रेगुलेशन कोड लेकर आया था, जिसे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नकार दिया था। इस पर 15 OTT प्लेटफॉर्म्स ने हस्ताक्षर कर के सेल्फ-रेगुलेशन की बात की थी। चूँकि सरकार ने भी सेल्फ-रेगुलेशन की बात कहते हुए सेंसरशिप की व्यवस्था को नकार दिया था, इन प्लेटफॉर्म्स ने उम्र की सीमाओं, कंटेंट के बारे में पूरी जानकारी और एक्सेस कंट्रोल सहित कई मुद्दों पर पारदर्शी बनने की बात कही थी।

हिन्दू जनजागृति समिति ने चलाया था Online हस्ताक्षर अभियान

पिछले कुछ वर्षों में अमेजॉन प्राइम, नेटफ्लिक्स, अल्ट बालाजी, झी 5 जैसे अनेक OTT Apps बडे प्रमाण पर प्रचलित हो रहे है, जिनपर नए नए वेब सीरिज आते रहते है । यह वेब सीरिज बिना किसी प्रमाणपत्र या सेन्सॉर किए रिलीज किए जाते है । सेन्सॉर न होने के कारण इनमें अश्लीलता, गाली-गलौच का उपयोग, व्यसनाधीनता, हिंसा यह प्रचुर मात्रा में दिखाई जाती है । इनपर अब तक किसी का नियंत्रण नहीं था, इसलिए हिन्दू जनजागृति समिति ने इसके विरूद्ध Online हस्ताक्षर अभियान चलाकर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से OTT Platforms पर अनुशासन लगाने की मांग की थी ।

केंद्रीय IB मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने की थी सेल्फ-रेगुलेशन की बात

हाल ही में ऑपइंडिया के सम्पादक अजीत भारती ने भी केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का इंटरव्यू लिया था, जिसमें उनसे इस विषय में सवाल पूछे गए थे। केंद्रीय मंत्री से जब पूछा गया कि डिजिटल मीडियम में फिलहाल किस तरह की चुनौतियाँ हैं? तो उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा था कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है और उनका मानना है कि डिजिटल मीडिया खुद ही इसे सेल्फ रेग्युलेट करे, लेकिन अगर उन्हें मदद चाहिए, तो वो मदद करने के लिए भी तैयार हैं। उन्होंने आगे कहा था:

“इसके अच्छे और बुरे दोनों तरह के नतीजे आ रहे हैं। इसलिए हमने OTT प्लेटफॉर्म को कहा है कि वो सेल्फ-रेग्युलेशन की अच्छी व्यवस्था करें। डिजिटल मीडिया से भी कह सकते हैं, क्योंकि कंटेंट ऑर्गेनाइज्ड होता है। लेकिन डिसऑर्गेनाइज्ड कंटेंट पर लगाम कसना थोड़ा मुश्किल है। एक मैकेनिज्म बनाइए, जिसकी विश्वसनीयता हो और किसी को भी इससे शिकायत न हो और उसके कारण सुधार होता रहे और अगर कोई नहीं करता है तो क्या करना है, इसका विकल्प हमेशा सरकार के पास खुले होते हैं।”

केंद्र सरकार ने तो इन प्लेटफॉर्म्स को कई बार मोहलत दी। मार्च 2020 की शुरुआत में ही उन्हें एक संस्था बना कर ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ तैयार करने के लिए 100 दिनों का समय दिया गया था। नई दिल्ली में 45 मिनट तक चली बैठक में इन प्लेटफॉर्म्स ने ‘डिजिटल कंटेंट कंप्लेंट काउंसिल (DCCC)’ का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था और अमेज़न प्राइम ने तो ऐसे किसी भी विचार पर आपत्ति भी जताई थी।

ऐसा नहीं है कि इससे पहले सरकार ने उन्हें नियम-कायदे बनाने को नहीं कहा था। अक्टूबर 2019 में भी प्रकाश जावड़ेकर ने उन्हें टोका था और कहा था कि वो खुद से अपने टर्म्स लेकर आएँ, जिस पर सब एकमत हो सकें। DCCC का गठन कर कर के फ़रवरी 2019 में रिटायर्ड जज एपी शाह को उसका अध्यक्ष बनाया गया था। मंत्री का सीधा कहना है था जो चीजें परिवार साथ में देखता है, उन्हें नियंत्रित किया जाना आवश्यक है।

इन प्लेटफॉर्म्स की खासियत ये है कि इसका इस्तेमाल कर के सरकारी योजनाओं और कानूनों को गलत रूप में पेश किया जा सकता है। चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बढ़ावा मिलता है और महिलाओं का अपमान किया जाता है। एक खास नैरेटिव बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। धार्मिक भावनाओं को आहत करने और राष्ट्रीय प्रतीक चिह्नों का अपमान किया जाता है। और आजकल तो कॉमेडी शो भी खास एजेंडे के तहत इस पर डाले जाते हैं।

असल में इससे पहले जो सेल्फ-रेगुलेटरी मैकेनिज्म बनाया गया था, उसमें प्रतिबंधित कंटेंट्स को लेकर कोई क्लासिफिकेशन नहीं था, ऐसा सरकार का मानना था। इनके संगठनों में मात्र एक स्वतंत्र सदस्य थे, जो जाहिर है कि माइनॉरिटी में होता। फिर तो सब कुछ वैसे ही चलता, जैसे चलता आ रहा था। इसीलिए, अब उनका सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आने से प्रतिबंधित कंटेंट्स के प्रसारण को रोकने में मदद मिलेगी।

सोमवार (नवंबर 9, 2020) को ही केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर वाला गैजेट नोटिफिकेशन जारी किया, जिसमें बताया गया है कि सभी OTT प्लेटफॉर्म्स अब I&B मंत्रालय के अंतर्गत आ गए हैं। अभी तक इन कंटेंट्स के नियंत्रण के लिए न कोई ऑटोनोमस बॉडी है और न ही कोई क़ानून है। मीडिया के लिए PCI है और सिनेमा के लिए सेंसर बोर्ड, लेकिन ये अब तक खुले ही बेलगाम घूम रहे थे।

अब सवाल है कि आगे क्या? अब सरकार इन कंटेंट्स को नियंत्रित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करेगी और उन्हें इसका पालन करना पड़ेगा। अब कंटेंट्स बच्चों के देखने लायक नहीं हैं तो उन्हें अलग से क्लसिफाई करना पड़ेगा और स्पष्ट रूप से बताना होगा कि कौन से कंटेंट किस कैटेगरी में आते हैं। प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह इनके लिए भी नियम-कायदे होंगे। हालाँकि, ये किस तरह का होगा – ये कुछ दिनों में स्पष्ट होगा। फ़िलहाल तो ये OTT प्लेटफॉर्म्स I&B मंत्रालय के अंतर्गत लाए गए हैं।

संदर्भ : OpIndia

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