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मंदिर की वस्त्रसंहिता नग्नता से नहीं; धर्मशास्त्र से संबंधित ! – हिन्दू जनजागृति समिति

सभी मंदिरों में वस्त्रसंहिता लागू करने का मंदिर न्यासियों से आवाहन

शिर्डी के श्री साईबाबा संस्थान ने हाल ही में श्रद्धालुओं को भारतीय संस्कृति के अनुसार सभ्यतापूर्ण वस्त्र परिधान करने का आवाहन किया । इस प्रकार केवल साई संस्थान में ही नहीं; पूरे देश के अनेक मंदिरों में, साथ ही गोवा की चर्च में वस्त्रसंहिता (ड्रेस-कोड) लागू की गई है । मंदिरों में लागू की गई वस्त्रसंहिता नग्नता से नहीं; धर्मशास्त्र से संबंधित है । केवल मंदिर ही नहीं, विविध क्षेत्रों में कौन से वस्त्र पहनने चाहिए, इसके कुछ नियम निर्धारित हैं । वहां कोई नहीं पूछता ‘ऐसे ही वस्त्र क्यों ?’; परंतु हिन्दू देवस्थान यदि ऐसा आवाहन करें, तो तत्काल अन्याय का अर्थहीन शोर मचाया जाता है । मंदिर में श्रद्धा से आनेवाले भक्त और धर्मपरंपरा का पालन करनेवाले श्रद्धालु इस आवाहन का स्वागत ही करेंगे, वे इसे सकारात्मक प्रतिसाद देकर आनंद से इसका पालन करेंगे, ऐसा हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ राज्य के संगठक श्री. सुनील घनवट ने कहा । साथ ही उन्होंने सभी मंदिरों के विश्‍वस्तों से आवाहन किया है कि साई संस्थान की भांति सभी मंदिरों में भारतीय संस्कृति अनुसार वस्त्रसंहिता लागू की जाए ।

मंदिर के पुजारी अर्धनग्न होते हैं, ऐसी अत्यंत अर्थहीन टिप्पणी करनेवाले तथाकथित आधुनिकतावादी, यह भी ढंग से नहीं पढते कि संस्थान ने क्या आवाहन किया है । संस्थान ने कहीं भी तंग कपडों का उल्लेख नहीं किया है । पुरुष-महिला ऐसा उल्लेख नहीं किया है । तब भी अनेक दिन प्रसिद्धि न मिलने के कारण आधुनिकतावादियों ने यह ‘पब्लिसिटी स्टंट’ किया है । संस्थान ने कोई बंधन नहीं डाले हैं । धोती-उपवस्त्र पहननेवाले पुजारियों को अर्धनग्न कहना, बौद्धिक दिवालियापन है । पुलिस का खाकी गणवेश, डॉक्टरों का श्‍वेत कोट, वकीलों का काला कोट, ये सब धर्मनिरपेक्ष शासन द्वारा बनाए गए ‘ड्रेसकोड’ स्वीकार हैं; परंतु मंदिर द्वारा संस्कृतिप्रधान वस्त्र पहनने का केवल आवाहन भी स्वीकार नहीं । यह आधुनिकतावादियों का भारतीय संस्कृतिद्वेष ही है । संभाजीनगर के श्री घृष्णेश्‍वर ज्योतिर्लिंग देवस्थान में कोई पुरुष कमर के ऊपर वस्त्र न पहने, ऐसा नियम है । वह महिलाओं के लिए नहीं है । यहां धर्मशास्त्र में महिलाओं के लज्जारक्षण का विचार किया है; परंतु यह समझने की जिनकी इच्छा ही नहीं है, उन्हें क्या कह सकते हैं ? पैरों तक लंबा श्‍वेत चोगा पहननेवाले ईसाई पादरी पर, तंग पायजमा पहननेवाले मौलवी पर अथवा मुस्लिम महिलाओं द्वारा काला बुरखा पहनने की पद्धति पर टिप्पणी करने का साहस क्या इन आधुनिकतावादियों में है, ऐसा प्रश्‍न भी घनवट ने किया ।

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