रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर स्मारक घोषित करने की याचिका पर 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। यह याचिका बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने दायर कर रखी है। चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ से इस पर तत्काल सुनवाई का आग्रह करते हुए इस संबंध में केंद्र सरकार को निर्देश देने की अपील की गई थी।
लाइवलॉ की रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई ने कहा कि इस पर सुनवाई में कुछ वक्त लग सकता है। बेहतर होगा इस मामले में अगले मुख्य न्यायाधीश फैसला लें। उल्लेखनीय है कि सीजेआई बोबडे 23 अप्रैल को रिटायर होने वाले हैं। उनकी जगह जस्टिस वी रमणा लेंगे।
इससे पहले भाजपा नेता ने 23 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि रामसेतु करोड़ों हिंदुओं की आस्था से जुड़ा मामला है। इसलिए इसे तोड़ा न जाए, बल्कि इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए। इस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने और स्वामी की याचिका पर 3 महीने बाद विचार करने को कहा था। लेकिन कोरोना महामारी के कारण पैदा हुए संकट की वजह से इसकी सुनवाई में देरी हुई।
बताते चलें कि तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट पर रामेश्वरम और श्रीलंका के मन्नार द्वीप के बीच चट्टानों की श्रृंखला है। रामायण के अनुसार रावण की कैद से सीता को छुड़ाने के लिए भगवान राम की वानर सेना ने रामसेतु की निर्माण किया था। 2005 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने सेतुसमुद्रम परियोजना का ऐलान किया। इसके तहत कुछ इलाके को गहरा कर समुद्री जहाजों के लायक बनाने के नाम पर रामसेतु को तोड़ना जरूरी बताया गया था। इसका हिंदू संगठनों के साथ साथ पर्यावरणविदों ने भी विरोध किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2007 में रामसेतु के आसपास इस परियोजना के काम पर रोक लगा दी थी। साल 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने शीर्ष अदालत में हलफनामा दायर कर राम के अस्तित्व को ही खारिज करते हुए रामसेतु को तोड़ने की जरूरत पर जोर दिया था। हालाँकि हंगामे के बाद इस हलफनामे को वापस ले लिया गया था और सरकार ने कहा था कि वह रामसेतु को किसी प्रकार का नुकसान पहुॅंचाए बगैर ही इस परियोजना के लिए वैकल्पिक मार्ग की संभावना तलाशेगी।
संदर्भ : OpIndia