अल्जीरिया के जाने-माने प्रोफेसर 53 वर्षीय सैद जबेलखिर (Said Djabelkhir) को तीन साल कैद की सजा सुनाई गई है। सोशल मीडिया पोस्ट्स के जरिए ‘इस्लाम का अपमान’ करने के आरोप में उन्हें सजा दी गई है। इस साल की शुरुआत में हदीस (पैगंबर मोहम्मद की शिक्षा) और इस्लाम की कुछ परंपराओं पर सवाल उठाने के बाद उन पर ‘मजहब और इस्लामी परंपराओं का मजाक’ बनाने का आरोप लगा था।
Sidi Bel Abbs विश्वविद्यालय के एक शिक्षक और 7 वकीलों की ‘इस्लाम के अपमान’ की शिकायत के बाद प्रोफेसर जबेलखिर पर मुकदमा चलाया गया। शिकायतकर्ताओं का आरोप था कि उनके फेसबुक पोस्ट के कारण इस्लामी भवनाएँ आहत हुईं।
जमानत पर चल रहे प्रोफेसर ने सजा पर आश्चर्य व्यक्त किया है। न्यूज एजेंसी AFP से चर्चा करते हुए प्रोफेसर जबेलखिर ने कहा कि वह कोर्ट ऑफ कैसेशन में अपील करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वे एक प्रोफेसर हैं न कि एक इमाम। लिहाजा उन्हें कारणों, तर्कों और तथ्यों पर विचार करना होता है और उन्हें अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भी है। शोधकर्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि वह अल्जीरिया में शोध करते हैं।
अल्जीरिया के प्रोफेसर का ‘अपराध’
इस्लाम पर दो पुस्तकें लिखने वाले प्रोफेसर सैद जबेलखिर ने जैसे ही इस्लाम की कुछ परपराओं और हदीसों पर प्रश्न उठाया वो इस्लामिक कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए। प्रोफेसर जबेलखिर ने ईद पर जानवरों की कुर्बानी पर प्रश्न उठाया था और मुस्लिम समाज में छोटी बच्चियों से शादी को भी गलत ठहराया था।
प्रोफेसर जबेलखिर ने यह भी कहा कि कुरान में लिखा हुआ सब कुछ सही नहीं है। उन्होंने कश्ती नूह का उदाहरण देते हुए कहा कि कई मुसलमान कुरान में लिखी हर बात को सही मान रहे हैं। प्रोफेसर के अनुसार मुस्लिम इतिहास और मिथक का अंतर नहीं समझ पा रहे हैं। AFP से चर्चा के दौरान प्रोफेसर जबेलखिर ने कहा कि कुरान के द्वारा आधुनिक समय की अपेक्षाओं, आवश्यकताओं और प्रश्नों का कोई समाधान नहीं मिल सकता।
प्रोफेसर को जान से मारने की धमकी
न्यूज अरब के अनुसार प्रोफेसर जबेलखिर को जान से मारने की धमकियाँ भी मिल रही हैं। शिकायतकर्ता ने कहा कि प्रोफेसर जबेलखिर के विचारों ने उसे मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुँचाया है। अपने बचाव में प्रोफेसर जबेलखिर ने कहा कि उनका उद्देश्य इज़्तिहाद (व्याख्या) है, न कि जिहाद।
प्रोफेसर जबेलखिर को 2019 में भी जान से मरने की धमकी मिली थी, जब उन्होंने रमजान में रोजा की आवश्यकता पर प्रश्न उठाया था। प्रोफेसर ने कहा था कि मुस्लिमों के लिए रोजा जरूरी नहीं है और इसके स्थान पर मुस्लिमों को खाना और पैसों को गरीबों को दान करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि सामान्य परिस्थितियों में तो पैगंबर के सभी साथियों ने भी उपवास नहीं किया था।
अल्जीरिया का ईशनिंदा कानून
अल्जीरिया की 99% जनसंख्या सुन्नी मुसलमानों की है और अल्जीरिया का संविधान भी इस्लाम को राज्य धर्म के रूप में स्वीकार करता है। लेकिन संविधान के अनुच्छेद 36 में आस्था की स्वतंत्रता है। हालाँकि संविधान के इन प्रावधानों के बाद भी अल्जीरिया में धार्मिक स्वतंत्रता पर कई प्रतिबंध हैं। अल्जीरिया में लेखन, पेंटिंग, विचार अथवा किसी अन्य माध्यम से इस्लाम या पैगंबर की कथित अवहेलना पर तीन से पाँच साल की सजा और अर्थदंड का प्रावधान है।
संदर्भ : OpIndia