गांधी-नेहरू के काल से चली आ रही भारत में झूठा इतिहास सिखाने की प्रथा आज तक चालू है ! – श्री. शंकर शरण, वरिष्ठ लेखक और स्तंभलेखक
महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन करते हुए क्रूर मुगल आक्रमकों को अच्छा कहना आरंभ किया । उनका महिमामंडन किया । उन्हें लगा इससे खुश होकर मुसलमान स्वतंत्रता की लडाई में सहभागी होंगे; परंतु इससे झूठा इतिहास बताने की प्रथा आरंभ हुई । स्वतंत्रता के उपरांत सोवियत कम्युनिस्टों के प्रभावमें देश की शिक्षा प्रणाली में हिन्दू धर्म को निकृष्ट बताया गया । गांधी-नेहरू के काल से गलत इतिहास लिखना आरंभ हुआ । उससे वामपंथी विचारधारा अर्थात हिन्दूविरोधी विचार लोगों पर लादे जाने लगे । हिन्दूविरोधी इतिहास अनेक दशकों से सिखाया जा रहा है । वर्तमान पाठ्यक्रम में भी हिन्दूविरोधी और देशविरोधी सूत्र सकारात्मक कहकर सिखाए जा रहे है, ऐसा रहस्योद्द्याटन वरिष्ठ लेखक और स्तंभलेखक श्री. शंकर शरण ने किया । वे ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ आयोजित ‘सेक्युलर शिक्षा या हिन्दूविरोधी प्रचारतंत्र’, इस ‘ऑनलाइन संवाद’ को संबोधित कर रहे थे । यह कार्यक्रम हिन्दू जनजागृति समिति के जालस्थल Hindujagruti.org, यू-ट्यूब और ट्विटर पर 2853 लोगों ने देखा ।
इस समय ‘भारतीय शिक्षा मंच’ के अखिल भारतीय संयोजक श्री. दिलीप केळकर ने कहा कि, जेएन्यू, और अलीगड मुस्लिम विश्वविद्यालय में भारतविरोधी नारोेंं सहित वीर सावरकर और स्वामी विवेकानंद की प्रतिमाआें का अपमान होने का मूल कारण ‘संपूर्ण जीवन अभारतीय होना’ है । इसलिए हमें शिक्षा सहित न्याय, उद्योग, कला ऐसे सभी क्षेत्रों में भारतीय जीवन पद्धति लानी होगी । इस समय ‘मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी’ के संचालक श्री. विकास दवे ने कहा कि, ‘‘सा विद्या या विमुक्तयेे !’ अर्थात जो शिक्षा मुक्ति देती है, यही सच्ची शिक्षा है । हमारे ऋषि-मुनियों ने आंतरिक ज्ञान को प्रकट करने की शिक्षापद्धति आरंभ की थी । उस शिक्षा के मूल उद्देश्य से आज हम भटक गए है । अच्छी व्यवस्था प्रस्थापित करना हो, तो बचपन से ही धर्म की शिक्षा देना, सर्वश्रेष्ठ शिक्षा है ।’’ इस संवाद को संबोधित करते हुए ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने कहा कि, भारतीय संविधान की प्रस्तावना सभी को समानता का अधिकार देती है; किन्तु प्रचलित शिक्षा में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यकों में भेद तथा असमानता है । संविधान के अनुच्छेद 28 के अनुसार किसी भी धार्मिक शिक्षा को सरकारी अनुदान नहीं दिया जा सकता । इसलिए बहुसंख्यकों को (हिन्दुआेंको) उनके धर्म की शिक्षा नहीं दी जा सकती; परंतु अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यकों को (मुसलमानों को) उनके धर्म की शिक्षा सरकारी अनुदान से दी जा सकती है । यह सीधे-सीधे धर्म के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है और वह मिटाना होगा ।