रत्नागिरी (महाराष्ट्र) : छत्रपति शिवाजी महाराज के सैनिकों ने स्वराज्य पर हुए आक्रमण को स्वयं पर हुआ आक्रमण मानकर संघर्ष किया । आज हमें भी देवता, देश एवं धर्म पर हो रहा आक्रमण स्वयं पर हुआ आक्रमण है, ऐसा लगना चाहिए । आज मंदिर रक्षा, गोरक्षा, लव जिहाद जैसी समस्याओं का वैधानिक पद्धति से विरोध करना आवश्यक है । पहले किसी भी राष्ट्र पर आक्रमण हुआ, तो वह राष्ट्र भारतियों की सहायता लेता था; क्योंकि भारत विजयश्री प्राप्त करनेवाले योद्धाओं की भूमि है । जिस प्रकार लोकमान्य तिलकजी ने स्वयं में निहित असामान्यत्व को पहचानकर ‘भले कितने भी संकट क्यों न आएं और बादल भी फूट पडे; तब भी मैं उन पर पैर रखकर खडा रहूंगा और मेरी भारतभूमि को स्वतंत्र बनाऊंगा’, ऐसा अंग्रजों से डंके की चोट पर कहा । उसी प्रकार आज हमेंभी राष्ट्ररक्षा हेतु तैयार होने की आवश्यकता है । भारतीय सेना बाहरी शत्रुओं से लडने के लिए सक्षम है; परंतु आंतरिक कलह के कारण बननेवाली स्थिति का सामना करने हेतु और राष्ट्र का आधार बनने हेतु प्रत्येक हिन्दू को स्वयं में निहित असामान्यत्व को पहचानना चाहिए । हिन्दू जनजागृति समिति के युवा संगठक श्री. निरंजन चोडणकर ने ऐसा प्रतिपादित किया । २७ मई २०२१ को रत्नागिरी में सायंकाल ७ बजे ऑनलाइन पद्धति से आयोजित किए गए शौर्यजागृति व्याख्यान में वे ऐसा बोल रहे थे । इस व्याख्यान का सूत्रसंचालन कु. मृण्मयी कात्रे ने किया, तो कु. सुवर्णा सकपाळ ने व्याख्यान का उद्देश्य स्पष्ट किया ।
श्री. निरंजन चोडणकर ने आगे कहा,
१. कुछ दशक पूर्व अंग्रेजों ने भारतियों के पराक्रम को जानकर हमारे हाथों से शस्त्र छीन लिए और जो बचे-कुचे मन के शस्त्र थे, उन्हें मोहनदास गांधी ने अहिंस के नाम पर छीन लिया । आज हम उसी के परिणाम भुगत रहे हैं ।
२. हिन्दुओं को संगठित होना, ही इस समस्या का एकमात्र उपाय है ।
३. छत्रपति शिवाजी महाराज की भांति भगवान से सहायता लेकर भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने हेतु
हम हिन्दूसंगठन की शक्ति को जानकर संगठित होंगे ।
४. इसके लिए हम स्वरक्षा प्रशिक्षणवर्ग के माध्यम से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर सक्षम बनेंगे ।