हिन्दू जनजागृति समिति एवं सनातन संस्था के विविध फेसबुक पन्नों पर प्रतिबंध लगाने का सत्र विगत २ वर्ष से चल रहा है । विश्वविख्यात ‘टाइम’ नियतकालिक ने अब इस विषय पर विस्तृत भाष्य किया है । इसके कारण इस प्रतिबंध के पीछे ‘टाइम’ ही है, यह अब स्पष्ट हो रहा है । ‘टाइम’ के बताने पर इस वर्ष फेसबुक की ओर से सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति के अनेक पन्ने बंद किए गए । उससे पूर्व भी सनातन संस्था के पन्ने पर और समिति के पन्ने पर प्रतिबंध लगाने के पीछे ‘टाइम’ का हाथ हो सकता है अथवा उनके समान विचारधारावालों का अथवा वामपंथियों का भी हाथ हो सकता है । एक राष्ट्र एवं धर्मप्रेमी संगठन के सामाजिक संकेतस्थल के पन्नों पर प्रतिबंध लगाने की मांग करना क्या ‘टाइम’ की दादागिरी नहीं है ? क्या ‘टाइम’ को सनातन संस्था अथवा हिन्दू जनजागृति समिति ने किया हुआ कार्य ज्ञात है ? क्या ‘टाइम’ अनेक संतों द्वारा गौरवान्वित और संगठनों की पसंगा के जितना तो है ?
राष्ट्रप्रेमियों की बदनामी
‘टाइम’ के कारनामे हमें ज्ञात हैं । यह नियतकालिक पहले विश्वस्तर पर अच्छा लेखन करने के लिए प्रसिद्ध था । उसमें कुछ लेख अभ्यासपूर्ण होते थे; परंतु अब वह बात नहीं रही । अब इस नियतकालिक में किए जानेवाले लेखन को हिन्दूद्वेष की तीव्र गंध आती है । विश्व के पहले क्रम के लोकतांत्रिक देश भारत के करोडों लोगों ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के पद के लिए चुना । तब विश्वस्तर पर उनकी प्रशंसा हुई थी । जब नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्रीपद का एक कार्यकाल समाप्त हो रहा था, तब के चुनाव से पूर्व पत्रकार आतीश तासिर ने नरेंद्र मोदी का वर्णन ‘भारत का विभाजन करनेवाला प्रमुख’, इस प्रकार विकृत पद्धति से किया था । एक पत्रकार द्वारा इतने लोकप्रिय व्यक्ति पर अपनी मर्यादाएं लांघकर भाष्य करना, उसके लिए झूठे संदर्भ देना और स्वयं का प्रतिकूल मत व्यक्त करना, इससे उनका व्यक्तिद्वेष दिखाई देता है । पत्रकार तासिर के पिता पाकिस्तानी वंश के हैं, इसका यहां उल्लेख करना होगा । उसके उपरांत भारत ने तासिर का पारपत्र रद्द कर उन्हें पटकनी दी; परंतु इस पत्रकार का खुमार कितना है, यह इससे दिखाई देता है । ‘टाइम’ के विरुद्ध कार्यवाही करने की चेतावनी के उपरांत नरेंद्र मोदी पर प्रशंसा की वर्षा करनेवाला लेख प्रकाशित किया गया ।
भारतद्वेष को समर्थन ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत के किसानों के हित के लिए बनाए गए २ कानूनों के विरुद्ध कुछ लोगों ने किसानों को भडकाकर चलाए गए आंदोलन में खलिस्तानियों ने घुसपैठ की थी । इस आंदोलन में अनेक अप्रिय घटनाएं हुईं । यह आंदोलन तो सरकार को अस्थिर बनाने के लिए किया गया एक योजनाबद्ध षड्यंत्र था, यह बात ‘टूलकिट’ प्रकरण से सामने आई । तब भी ‘टाइम’ ने अपने मुख्य पन्ने पर महिला किसान आंदोलनकारी का छायाचित्र छापकर उसका इन अप्रिय घटनाआें के लिए समर्थन है, यह दिखाई दिया था । ‘टाइम’ के इस कृत्य के कारण उसकी आलोचना भी हुई । ‘टाइम’ अमेरिका का नियतकालिक है । वहां के लेखक और पत्रकारों का यहां की हिन्दू संस्कृति और संगठनों का अध्ययन नहीं है । उसे विकृत पद्धति से रखने का (अथवा जानबूझकर वैसे करने का) उनका प्रयास रहा है । ‘टाइम’ अपनी प्रतिष्ठा का उपयोग हिन्दुत्वनिष्ठों को बदनाम करने और उनके विरुद्ध झूठे आरोप लगाने के लिए कर रहा है । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यह एक अलग ही सूत्र है; परंतु उसका अनुचित लाभ उठाकर अन्यों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटना, इसे क्या कहें ? क्या ‘टाइम’ यह जानता है कि सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति के कार्य के कारण कितने लोगों के जीवन में आनंद फैला है ?, कितने परिवार अच्छे पथ पर चल रहे हैं ? और कितने लोगों की बुरी आदतें छूट गई हैं ? इस पर बिना कोई विचार कर ‘टाइम’ की ओर से किया गया यह विकृत प्रयास निश्चितरूप से निंदनीय है । इससे क्या अब ‘टाईम’ का खराब ‘टाइम’ (समय) तो आरंभ नहीं हुआ है ?, इसकी आशंका उत्पन्न हो रही है । ऐसी घटनाएं होती रही, तो उनकी पाठकसंख्या अल्प होने के साथ ही भारत में ‘टाइम’ के प्रति प्रतिकूल मत तैयार होगा, इसमें कोई संदेह ही नहीं है !